रामदिनेश यादव / मुंबई
विधानसभा चुनाव में पहली बार वोट डालनेवाले युवा महायुति सरकार से नाराज हैं। इस नाराजगी का कारण है कि महायुति ने शिक्षा और रोजगार के मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया है। चुनाव में बड़ी-बड़ी घोषणाएं करनेवाली महायुति युवाओं से जुड़े मुद्दों को नजरअंदाज कर रही है। शिक्षा, नौकरी, रोजगार आदि को लेकर महायुति कोई जवाब नहीं दे रही है। इन मुद्दों को दबाने के लिए वह सांप्रदायिक मुद्दों को हवा दे रही है। उल्लेखनीय है कि इस चुनाव में १८-१९ वर्ष के बीच के ३७,८९४ युवा ऐसे हैं, जो पहली बार वोट डालेंगे। मुंबईकरों से जब इस चुनाव के बारे में बात की गई तो ९० फीसदी युवाओं का कहना था कि वे शिक्षा व रोजगार जैसे मुद्दे पर वोट देंगे।
‘महायुति’ के कार्यकाल में हुई सरकारी स्कूलों की दुर्दशा!
इस बार मुंबई में महायुति का सूपड़ा साफ होना तय है। इसकी वजह है युवा मतदाता। वे महायुति सरकार से खफा हैं। इनमें प्रमुख है सरकारी स्कूलों की दुर्दशा। आम आदमी के बच्चे इन्हीं स्कूलों में पढ़ते हैं, पर महायुति सरकार के आने के बाद इनकी हालत काफी खराब हो गई। ‘ईडी’ सरकार ने इन स्कूलों की व्यवस्था को नजरअंदाज किया, जिससे बच्चों की शिक्षा खासी प्रभावित हुई है।
मुंबई के युवाओं की क्या मांग है, वे क्या चाहते हैं और पहली बार वोट देने वाला युवा इस चुनाव को लेकर क्या सोचता है? यही समझने के लिए जब युवाओं से बात की गई तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि महायुति में युवाओं को लेकर मुद्दों का अभाव दिख रहा है। युवाओं से बात करने के बाद यह पता चला कि मुंबई के युवा शिक्षा, रोजगार, विकास और अच्छा इंप्रâास्ट्रक्चर चाहते हैं। युवाओं से बात करने के बाद यह बात सामने आई कि ९० प्रतिशत युवा शिक्षा, विकास और रोजगार के मुद्दे पर वोट देना चाहते हैं। युवाओं का मानना है कि शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और रोजगार जैसे मुद्दे उनके लिए खास महत्व रखते हैं। यदि काम करनेवाली सरकार नहीं आई तो युवाओं का भविष्य भी दांव पर लग सकता है।
अश्विनी दुबे ने कहा कि सरकारी स्कूलों की हालत में आघाड़ी सरकार के कार्यकाल में बदलाव आ रहा था। अच्छी शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है, जिसके लिए आघाड़ी सरकार प्रयास कर रही थी, लेकिन बाद में महायुति सरकार ने कुछ नहीं किया और सरकारी स्कूलों की हालत खराब हो गई। इसी तरह तेजस दुबे ने कहा कि आज के युवा यह जानते हैं कि हमारे राष्ट्र और समाज के लिए क्या बेहतर है, किसे वोट देना चाहिए, कौन-सी पार्टी आनेवाले भविष्य को सुनहरा बनाएगी। एक अन्य युवा मुख्तार खान के मुताबिक, बचपन से झोपड़पट्टियों में रहने के बाद एक बात समझ में आ गई है कि गरीबों का कोई नहीं होता। वडाला के वसीम शेख ने कहा कि हमारी चॉल में ही अनेक समस्याएं हैं, लेकिन हर चीज को नजरअंदाज किया जाता है। आघाड़ी सरकार के काल में हमें कुछ बेहतर आस नजर आई थी, लेकिन पिछले ढाई वर्षों में निराशा हाथ लगी है।