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सवाल हमारे, जवाब आपके?

८०० से अधिक आम दवाओं की कीमतों में दोगुनी वृद्धि का निर्णय लिया गया है। नई दरें १ अप्रैल, २०२४ से लागू हो जाएंगी। पहले ही महंगाई के कारण भूख से परेशान जनता अब बीमारी से परेशान होगी।
 लोगों का दर्द समझ नहीं पा रही है सरकार
बढ़ती हुई महंगाई ने वैसे ही आम नागरिकों की कमर तोड़कर रखी है। ऐसे में अब दवाएं भी महंगी हो जाएंगी तो आम आदमी क्या करेगा? ऐसा भी नहीं था कि दवाइयां बहुत सस्ती थीं, लेकिन जैसे-तैसे आम जनता इसे अपनी प्राथमिकता मानते हुए, प्राथमिकता क्या कहें, मजबूरी में दवाइयां खरीदती ही है। लेकिन लगता है सरकार से यह भी देखा नहीं जा रहा। आखिर, सरकार आम लोगों का दर्द क्यों नहीं समझ पा रही है और यदि समझ भी रही है तो उसे अनदेखा क्यों कर रही है।
– सूरज मिश्रा, मीरा रोड
लोगों की पहुंच से दूर हो जाएंगी दवाएं
इस निर्णय से गरीब और आम नागरिकों को और अधिक दिक्कतें आ सकती हैं। सरकार को जनता के हित में सोचना चाहिए और दवाओं की कीमतों को कम करने के उपायों पर विचार करना चाहिए। सरकार को पता होना चाहिए कि ८०० से अधिक आम दवाओं की कीमतों में दोगुनी वृद्धि करने से कितनी दवाएं आम लोगों की पहुंच से दूर हो जाएंगी।
– अमित तिवारी, सांताक्रुज
सरकार की असफलता है यह
स्वास्थ्य सेवा आम नागरिक की बुनियादी जरूरत है। यह सरकार का फर्ज है कि वह उन्हें या तो मुफ्त में या फिर मामूली दरों पर स्वास्थ्य सेवा मुहैया करवाए। लेकिन सुविधाएं मुहैया करवाने की बजाय दवाइयां महंगी कराना या दवाइयों की कीमतों में लगाम कसने पर सरकार का असफल होना कहीं न कहीं यह दर्शाता है कि सरकार की यह प्राथमिकता नहीं रही है। नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करवाना सरकार का कर्तव्य है। लेकिन बढ़ती दवाओं की कीमतें यह साबित करने के लिए काफी हैं कि वो अपने कर्तव्य से विमुख हो रही है।
– नीरज दुबे, कांदिवली
 आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा बुरा असर
इस निर्णय के प्रभाव को समझकर सरकार को उचित कदम उठाना चाहिए। आम लोगों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए उपायों का विकास किया जाना चाहिए। यह निर्णय जनता के लिए बहुत हानिकारक है। सरकार को जल्द से जल्द इसे रद्द करना चाहिए, ताकि आम लोगों पर और अधिक बोझ न बढ़े। इस निर्णय के प्रति आम लोगों का विरोध होना ठीक है। ऐसा कदम सरकार के उद्देश्यों के खिलाफ है और इससे लोगों की आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ेगा।
– कल्पना सिंह, नालासोपारा
 तो सरकार बैकफुट पर क्यों चली जाती है
जेनेरिक दवाइयों को यह सरकार जिस तरह से प्रमोट कर रही थी उससे रिलीफ के तौर पर हम मान ही रहे थे कि दवाइयों की बढ़ती कीमतों ने इस रिलीफ पर पानी फेर दिया। तकरीबन ९० फीसदी वो दवाएं जो विशेष मानी जाती हैं उनकी कीमतें बढ़ीं, लेकिन अब तो बेतहाशा बढ़ती कीमतों ने आम आदमी की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से तोड़ दिया है। बीच में एक बार सरकारी आदेश जिसमें कहा गया था कि डॉक्टर जेनेरिक दवाइयों को ही पर्ची में लिखकर दिया करेंगे, को भी डॉक्टरों के एक बड़े वर्ग ने मानने से इनकार कर दिया। ऐसे मामले जिनसे सीधे सरकार को लाभ होता है उन पर जबरदस्ती चाबुक चलाकर सरकार अमल करवा लेती है, लेकिन जब आम नागरिकों का मसला आता है तो सरकार बैकफुट पर चली जाती है। आखिर, ऐसा क्यों?
– निर्मला जोशी, बोरीवली

अगले सप्ताह का सवाल?
केंद्र सरकार चुनावी घोषणाओं में युवाओं को रोजगार देने की गारंटी देती फिर रही है, जबकि देश में ८३ फीसदी युवा बेरोजगार हैं। २०१२ की तुलना में इस सरकार के कार्यकाल में युवा बेरोजगारी तीन गुना बढ़ गई है। क्या केंद्र सरकार की यही गारंटी है। इस पर आपका क्या कहना है?
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