-किनारा होटल मामले में हाई कोर्ट ने ठहराया दोषी
-मृतकों के परिजनों को `५० लाख देने का दिया आदेश
सामना संवाददाता / मुंबई
साल २०१५ में कुर्ला के होटल सिटी किनारा में आग लगने से आठ लोगों की मौत के लगभग दस साल बाद, मुंबई हाई कोर्ट ने मंगलवार को मनपा को लापरवाह ठहराते हुए निर्देश दिया कि वह प्रत्येक मृतक के परिजनों को ५० लाख रुपए का मुआवजा १२ सप्ताह के भीतर अदा करे।
मनपा द्वारा नियमों के विपरीत अनुमति देने पर तीखी टिप्पणी करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा, `यह अधिकारियों की अपने वैधानिक कर्तव्यों के निर्वहन में घोर विफलता’ थी, जो कि आग लगने का `प्रत्यक्ष कारण’ बनी। न्यायालय ने कहा कि मनपा को उसके अधिकारियों के कार्यों, चूक और लापरवाही के लिए `विकराल रूप से उत्तरदायी’ ठहराया जा सकता है। बता दें कि यह आग १६ अक्टूबर २०१५ को होटल के रेस्तरां में लगी थी, जिसमें आठ लोगों की जान चली गई थी। मृतकों में सात डॉन बॉस्को इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड कॉलेज के स्नातक छात्र और एक स्टर्लिंग इंजीनियरिंग कंसल्टेंट्स का ३२ वर्षीय कर्मचारी शामिल था। न्यायमूर्ति बीपी. कोलाबावाला और न्यायमूर्ति फिरदोस पी. पूनावाला की पीठ ने यह पैâसला सात छात्रों के माता-पिता और आठवें मृतक की पत्नी द्वारा दायर २०१८ की याचिका पर सुनाया था। याचिका में फरवरी २०१७ के लोकायुक्त के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें लोकायुक्त ने जांच की मांग को ठुकराते हुए कहा था कि राज्य सरकार पहले ही प्रत्येक मृतक के परिजनों को १ लाख रुपए की सहायता राशि दे चुकी है। इसके बाद ही परिजन हाई कोर्ट पहुंचे थे। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नौशाद ने तर्क दिया कि होटल बिना उचित अनुमति, विशेष रूप से अग्निशमन विभाग से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) के चल रहा था और मनपा निरीक्षकों का कर्तव्य था कि वे उसे बंद कराते।
सुरक्षा नियमों के उल्लंघन का परिणाम
वहीं मनपा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ए.वाई. सखारे ने दलील दी कि यह घटना होटल के मालिक और संचालक की लापरवाही और सुरक्षा नियमों के उल्लंघन का परिणाम थी इसलिए मनपा को मुआवजा देने के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। हालांकि, अदालत ने लोकायुक्त का आदेश रद्द करते हुए कहा कि उन्होंने यह नहीं माना कि १ लाख रुपये केवल एक अस्थायी राहत थी और उन्होंने याचिकाकर्ताओं को दी जाने वाली वास्तविक मुआवजा राशि पर विचार नहीं किया।