मोदी सरकार बेपरवाह…पाकपरस्त तुर्किए की हिंदुस्थान में घुसपैठ!..पडघा में मिले आइसिस सेल से जुड़े नाम

सामना संवाददाता / मुंबई

पडघा में एटीएस द्वारा की गई छापेमारी और १५ लोगों को हिरासत में लिए जाने के बाद हैरान कर देनेवाली जानकारी सामने आई है। हिरासत में लिए गए लोगों के घरों की तलाशी के दौरान जो कागजात हाथ लगे हैं, उनसे यह जानकारी मिली है कि पडघा के कुछ युवाओं ने तुर्किए के चक्कर लगाए थे। इस तरह की जानकारी मिलने के बाद एटीएस के कान खड़े हो गए हैं और यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि युवाओं का तुर्किए जाने का मकसद क्या था? तुर्किए आइसिस का गढ़ है। ऐसे में पुलिस सूत्रों का मानना है कि पडघा में आइसिस का स्लीपर सेल सक्रिय है।
बता दें कि तुर्किए में आइसिस संगठन काफी सक्रिय है। इसी लिहाज से पुलिस को शक है कि तुर्किए गए युवाओं का कहीं आइसिस से कोई कनेक्शन तो नहीं?
देश के खिलाफ काम
जांच एजेंसियों को शक है कि पडघा स्थित बोरीवली के रहनेवाले साकिब नाचन की ओर से एक संगठित स्लीपर सेल तैयार किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत के खिलाफ काम करना था। यह स्लीपर सेल मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी विचारधाराओं से प्रभावित कर भड़काने का काम कर रहा था।
गिरफ्त में रियल इस्टेट एजेंट
तीन दिन पहले ही एटीएस की २० टीमों में शामिल २५० से ज्यादा पुलिसकर्मियों ने पडघा में छापेमारी की थी। छापेमारी में साकिब नाचन के अलावा ६० वर्षीय फराक जुबेर को भी हिरासत में लिया गया है। फराक जुबेर रियल इस्टेट के एजेंट का काम करता है। उन पर प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन सिमी के सदस्य होने का आरोप है।
हाल ही में खुफिया जानकारी के आधार पर पडघा में एटीएस ने छापा मारकर कई संदिग्धों को हिरासत में लिया है। जांच एजेंसियों को यह भी शक है कि पडघा में एक स्वतंत्र शरिया प्रशासनिक ढांचा तैयार किया गया था, जिसमें १०० से ज्यादा मुस्लिम युवाओं को शामिल किया गया था। इसके अलावा यह भी संदेह है कि एक स्वतंत्र सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी तैयार किया गया था, जिसके माध्यम से ये युवक विदेशी आतंकी संगठन के संपर्क में थे। इस कार्रवाई में कुल १९ मोबाइल फोन जब्त किए गए हैं। फोन की जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेजा गया है। जांच एजेंसियां सभी फोन और सोशल मीडिया ऐप्स की गहराई से जांच करने में जुट गई हैं। साथ ही पडघा के क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है और संबंधित युवकों का बैकग्राउंड खंगाला जा रहा है।
पडघा में बनाया स्वतंत्र शरिया प्रशासनिक ढांचा!
हाल ही में खुफिया जानकारी के आधार पर पडघा में एटीएस ने छापा मारकर कई संदिग्धों को हिरासत में लिया है। जांच एजेंसियों को यह भी शक है कि पडघा में एक स्वतंत्र शरिया प्रशासनिक ढांचा तैयार किया गया था, जिसमें १०० से ज्यादा मुस्लिम युवाओं को शामिल किया गया था। इसके अलावा यह भी संदेह है कि एक स्वतंत्र सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी तैयार किया गया था, जिसके माध्यम से ये युवक विदेशी आतंकी संगठन के संपर्क में थे। इस कार्रवाई में कुल १९ मोबाइल फोन जब्त किए गए हैं। फोन की जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेजा गया है। जांच एजेंसियां सभी फोन और सोशल मीडिया ऐप्स की गहराई से जांच करने में जुट गई हैं। साथ ही पडघा के क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है और संबंधित युवकों का बैकग्राउंड खंगाला जा रहा है।
क्या आरोप लगाए?
दूसरी ओर गिरफ्तार किए गए लोगों के परिवार ने वकील के जरिए यह मालूम करने की कोशिश की है कि जांच एजेंसी ने आखिर १५ युवकों के खिलाफ क्या आरोप लगाए हैं? उन्होंने यह भी कहा है कि हिरासत में लिए गए युवकों में से कोई भी अवैध गतिविधि में शामिल नहीं था। आतंकवाद तो दूर की बात है।

 

संपादकीय :  तीन पार्टियों का तमाशा…

महाराष्ट्र में फडणवीस, शिंदे और अजीतदादा की महागठबंधन सरकार में इस समय जोरदार नाराजगी की नौटंकी चल रही है। प्रचंड बहुमत वाली सरकार में ये लात-घूंसे, आरोप-प्रत्यारोप और रूठना-मनाना देखकर महाराष्ट्र की जनता का मुफ्त में मनोरंजन हो रहा है। मंत्रिमंडल का शिंदे गुट वित्त मंत्री यानी अजीत पवार से नाराज है। नाराजगी का मुख्य कारण ‘पैसा’ या ‘निधि’ बताया जा रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो पुरानी बीमारी ने एक बार फिर सिर उठा लिया है। शिंदे गुट का यही असंतोष और शिकायत शिवसेना को तोड़ने और महाविकास आघाड़ी सरकार को गिराने के समय भी थी और आज भी जारी है। नाराजगी के उसी बवासीर ने शिंदे के मंत्रियों को फिर से परेशान कर रखा है। उस समय मूल शिवसेना के साथ बेईमानी करते हुए शिंदे के लोगों ने अजीत पवार को ‘विलन’ ठहराया था। हालांकि, जेल जाने की बजाय वही अजीत पवार शिंदे के पदचिह्नों पर चलते हुए सरकार में शामिल हो गए और वित्त मंत्री भी बन गए। मंत्रिमंडल में सभी विभागों की नब्ज वित्त विभाग या कहें अजीतदादा के पास आती है और दादा के पास ये नब्ज होने की वजह से कई लोगों की जान बिलबिलाने लग गई। मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक के बाद फंड की कमी से परेशान मंत्रियों की नाराजगी फूट पड़ी। ‘दादा पैसा नहीं देते भाई’, यह रोना रोते हुए शिंदे गुट के मंत्रियों ने असंतुष्टों के सरदार से मुलाकात की। ‘सह्याद्रि’ गेस्ट हाउस में हुई बैठक में फंड की कमी से परेशान मंत्रियों ने शिंदे के सामने अजीत पवार की शिकायतों का पिटारा खोल दिया। ‘वित्त मंत्री अजीतदादा हमारे विभाग के विकास कार्यों में रोड़ा डाल रहे हैं। अगर वित्त विभाग और वित्त मंत्री हमें पैसा नहीं देंगे, तो हम विकास कार्य कैसे करेंगे?’ ऐसी
व्याकुलता कहें या तिलमिलाहट
इन मंत्रियों ने व्यक्त किया। ऐसा कहा जाता है कि यह बैठक अजीत पवार को टार्गेट बनाने के लिए आयोजित की गई थी। इस बैठक में उप मुख्यमंत्री शिंदे ने अपने गुट के सभी मंत्रियों के विभागों की स्वतंत्र समीक्षा की। उन्होंने प्रत्येक मंत्री को बुलाकर उनके विभागों के काम के बारे में जानकारी ली। तब, ‘अजीतदादा हमारे विभाग को पैसे नहीं देते हैं। फिर काम कैसे होगा और अगर काम नहीं हुआ, तो हम चुनाव का सामना कैसे करेंगे और जनता को क्या जवाब देंगे?’, ये सवाल इस बैठक में जनहित के मुद्दे को लेकर व्याकुल मंत्रियों ने उठाए। चूंकि सभी की शिकायतों की प्रकृति और ‘लक्ष्य’ एक ही थी, इसलिए असंतुष्ट लोगों के सरदार ने उन्हें यह समझाते हुए समय काटा कि वे इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री फडणवीस और उप मुख्यमंत्री अजीत पवार से बात करके कोई रास्ता निकाल लेंगे। दरअसल, महायुति सरकार में शिंदे खुद ही मुंह दबाए पिट रहे हैं जिसके चलते इस असंतोष पर स्यापा करने का कोई रास्ता भी नहीं बचा है। हो सकता है इसलिए असंतोष होने पर सातारा के गांव में जाकर खेतों में स्ट्रॉबेरी गिनने जैसे मसले का हल निकलने का रास्ता उन्होंने अपने साथी मंत्रियों को दिया होगा। इस समय महाराष्ट्र में इस बात को लेकर बड़ी चर्चा है कि घोड़बंदर से वसई तक सड़क निर्माण के तीन हजार करोड़ का आटा कौन सा घोड़ा खा गया। इस मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार की सुप्रीम कोर्ट में काफी फजीहत हुई। आटा खाने वाले टेंडर रद्द करने पड़े। मुख्यमंत्री फडणवीस ने
वह फैसला
मेरे समय का नहीं था कहकर अपने हाथ झटक लिए। यह अब छिपा नहीं है कि मुख्यमंत्री का इशारा किस ओर था और टेंडर रद्द करने के पीछे किसका अदृश्य हाथ था। इस महागठबंधन सरकार के असंतोष, कलह और नाराजगी की नौटंकी का अंत जो भी होना हो, होगा, लेकिन तब तक महाराष्ट्र की जनता को तीन दलों के इस तमाशे को मजबूरी वश सहना पड़ेगा। बीच में, भाजपा विधायकों ने गृहमंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की थी और वित्त मंत्री अजीत पवार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। भाजपा विधायकों ने अमित शाह से मुलाकात कर शिकायत की कि अजीत पवार को समझाया जाना चाहिए। इस पर अमित शाह ने अपने विधायकों को डबल इंजन सरकार का आदर्श कानमंत्र दिया, ‘उनके पीछे इतना पड़ जाओ कि अजीत पवार खुद मेरे पास शिकायत लेकर आएं।’ यह महाराष्ट्र में महागठबंधन सरकार में ऐसा मनोरंजक महानाट्य चल रहा है। अगर अजीत पवार १३२ विधायकों वाली भाजपा और अमित शाह द्वारा बनाई गई शिंदे पार्टी को नचा रहे हैं, तो यह कहना पड़ेगा कि इस सरकार में सिर्फ अजीत पवार ही खुश हैं और यह अजीत दादा का कौशल्य है। सरकार किसी भी पार्टी की हो, लेकिन सरकार में असंतुष्टों की कोई पार्टी नहीं होती। शिंदे गुट उद्धव ठाकरे की सरकार से भी असंतुष्ट था और अब फडणवीस सरकार से भी उनका असंतोष जारी है। असंतोष की बीमारी की जड़ सत्ता, पद, धन, अहंकार और राजनीतिक महत्वाकांक्षा में है। असंतोष की इस बीमारी की कोई दवा नहीं है। एक बार जब यह जड़ पकड़ लेती है, तो और मजबूत होती जाती है। ऐसा न हो कि फडणवीस सरकार में असंतोष का जो तीन पार्टियों का तमाशा चल रहा है, उससे भविष्य में मंत्रिमंडल में गुटों की लड़ाई न भड़क उठे!

‘विराट’ गम में बदली कोहली की जीत

-मातम में बदला आरसीबी की जीत का जश्न

-चिन्ना स्वामी स्टेडियम में एक दर्जन से ज्यादा लोग कुचले गए

-आईपीएल इतिहास का काला दिन साबित हुआ ४ जून

-प्रशासन को नहीं था भीड़ का अंदाज

-३५ हजार के स्टेडियम में उमड़ी तीन लाख की भीड़!

सामना संवाददाता / बंगलुरु

स्टार क्रिकेटर विराट कोहली की मौजूदगी में आरसीबी की टीम ने १८ वर्षों के इंतजार के बाद आईपीएल चैंपियन बनने का गौरव पाया। मगर कुछ ही घंटे में कोहली की यह जीत ‘विराट’ गम में बदल गई। टीम के स्वागत के लिए ३५ हजार की क्षमता वाले स्टेडियम में तीन लाख की भीड़ उमड़ पड़ी। इसके बाद वहां मची भगदड़ में करीब एक दर्जन लोगों की गिरने व कुचले जाने से मौत हो गई। कई दर्जन लोग घायल हो गए। प्रशासन व पुलिस को इतनी भीड़ जुटने का अंदाज नहीं था और यह आईपीएल के इतिहास का काला दिन साबित हुआ।
बंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम के भीतर आरसीबी की जीत का जश्न चल रहा है। यह जश्न उस समय फीका पड़ गया, जब स्टेडियम के बाहर अचानक बेकाबू हुई भीड़ में भगदड़ मच गई। जीत के इस जश्न ने देखते ही देखते एक के बाद एक लाशें बिछ गर्इं। इसमें न केवल ११ लोगों की मौत हो गई, बल्कि ३३ घायल हो गए। `मौत’ की इस भगदड़ में किसी ने अपना भाई खोया तो किसी ने अपना पिता, तो किसी ने अपना पति। वे सभी बेचारे गए तो थे जीत का जश्न मनाने, लेकिन उन्हें क्या पता कि यह जश्न उनकी जिंदगी का आखिरी सेलिब्रेशन साबित होगा। इसे विडंबना ही कहेंगे कि जिस वक्त बाहर मासूम को जानें जा रही थीं, उस समय अंदर बैठकर आरसीबी के `चैंपियंस’ चियर्स यानी सेलिब्रेशन में मस्त थे। घटना के एक घंटे बाद ही खिलाड़ी फोटो खिंचवाने में व्यस्त थे। इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है। हालांकि, बीसीसीआई ने इस मामले में अपनी चुप्पी को तोड़ते हुए आयोजकों पर सवाल खड़े किए हैं। साथ ही बीसीसीआई सचिव ने कहा कि आयोजकों को अच्छी तैयारी के साथ कार्यक्रम करना चाहिए था। आरसीबी की विक्ट्री परेड का मजा उस वक्त किरकिरा हो गया, जब चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर उसके पैंâस दबकर, कुचलकर अपनी जिंदगी गवां बैठे।
…तो बच जाती ११ जानें
बंगलुरु में बुधवार को बड़ा हादसा हो गया। एम चिन्नास्वामी क्रिकेट स्टेडियम के बाहर भगदड़ मचने से ११ लोगों की मौत हो गई और कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। हादसा आईपीएल २०२५ की विजेता आरसीबी टीम की विक्ट्री परेड से पहले हुआ, जिसका आयोजन एम चिन्नास्वामी क्रिकेट स्टेडियम में होना था। स्टेडियम का गेट खुलते ही लोगों की भगदड़ मच गई। गेट के बाहर पैंâस का हुजूम उमड़ पड़ा था। इस घटना के बाद अब आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। कई लोग खराब इंतजाम और प्रशासन की लापरवाही को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
जश्न के बीच आया अटैक
रॉयल चैलेंजर्स बेंगलोर ने आईपीएल-२०२५ में इतिहास रच दिया। आईपीएल ने फाइनल में पंजाब किंग्स की टीम को हराकर आईपीएल की ट्रॉफी अपने नाम की। आरसीबी के पहली बार आईपीएल ट्रॉफी जीतते ही हर तरफ जश्न का माहौल था। इस दौरान कर्नाटक के बेलगावी जिले के अवराडी गांव में एक ऐसी घटना घटी, जहां आरसीबी की जीत का जश्न मनाते समय एक प्रशंसक का दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई।

रावलपिंडी से १० किलोमीटर दूर नूर खान एयरबेस अमेरिकी कब्जे में!

-पाकिस्तानी एक्सपर्ट का सनसनीखेज खुलासा

-पाक सेना को भी वहां जाने की नहीं है इजाजत

-१० मई को भारत के ब्रह्मोस ने बनाया था निशाना

सामना संवाददाता / नई दिल्ली

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भारत ने पाकिस्तान के कई एयरबेस को तबाह किया था। इनमें से एक था रावलपिंडी के सैन्य मुख्यालय से १० किलोमीटर दूर का नूर खान एयरबेस। इसे ब्रह्मोस मिसाइल से निशाना बनाया गया था। इसके बाद ही सबसे पहले ट्रंप ने सीजफायर का ट्वीट किया था। अब एक पाकिस्तानी डिफेंस एक्सपर्ट इम्तियाज गुल ने दावा किया है कि नूर खान एयरबेस पर पाकिस्तान का नहीं बल्कि अमेरिकी सैनिकों का कब्जा है। वहां पर पाकिस्तानी आर्मी को भी जाने की अनुमति नहीं है।
बता दें कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने अपने सैन्य हवाई अड्डों पर हुए नुकसान को खूब छिपाने की कोशिश की, लेकिन सैटेलाइट तस्वीरें दुनिया के सामने आ जाने के बाद उसे आखिरकार सच कबूल करना पड़ा। भारत ने पाकिस्तान के ११ एयरबेस को निशाना बनाया था, लेकिन इनमें सबसे महत्वपूर्ण नूर खान (चकलाला) एयरबेस था।
अमेरिका ने चुपके से पाकिस्तान में छिपा रखी है अपनी आर्मी!
पाकिस्तान के नूर खान एयरबेस से महज १० किमी की दूरी पर पाकिस्तानी सेना का मुख्यालय है। भारत ने अपने ब्रह्मोस मिसाइलों से इसे ध्वस्त कर दिया था। भारत के हमले में इस एयरबेस का काफी ज्यादा नुकसान हुआ। इस एयरबेस के बारे में पाकिस्तान के एक सुरक्षा विशेषज्ञ इम्तियाज गुल ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। गुल का दावा है कि नूर खान एयरबेस पाकिस्तानी नहीं, बल्कि अमेरिकी सेना का ठिकाना है। इससे साफ है कि अमेरिका ने चुपके से पाकिस्तान में अपनी आर्मी छिपा रखी है। रिपोर्ट के मुताबिक, एक वीडियो में इम्तियाज गुल ने दावा किया है कि पाकिस्तान वायु सेना का नूर खान एयरबेस कथित तौर पर अमेरिका के नियंत्रण में है। गुल का दावा है कि पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों को भी एयरबेस में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं है। इससे पाकिस्तान की संप्रभुता पर सवाल उठ रहे हैं और देश के लोगों की अपनी जमीन पर विदेशी प्रभाव और पारदर्शिता की कमी पर चिंताएं बढ़ गई हैं। गुल के दावे के अनुसार, पाकिस्तान सेना के अधिकारियों को एयरबेस पर कोई नियंत्रण नहीं है। इसे अमेरिकी सेना क्षेत्र में अपने प्रभाव और सैन्य अभियानों के लिए अपने नियंत्रण में रखे हुए है। गुल ने कहा है कि अमेरिकी विमानों को बार-बार नूर खान एयरबेस पर देखा गया है, लेकिन उनके कार्गो के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है। यानी यह साफ नहीं है कि ये विमान क्या ले आ रहे हैं और क्या ले जा रहे हैं। गुल के दावों से पाकिस्तानी सोशल मीडिया पर एक हलचल देखी जा रही है। इसकी वजह इसका राजधानी इस्लामाबाद से कुछ ही किमी दूर रावलपिंडी में होना है। यह पाकिस्तानी आर्मी के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण सुविधा है।

धारावीकरों पर अन्याय नहीं होने देंगे…मुंबईभर में करेंगे आंदोलन… उद्धव ठाकरे ने धारावी के नागरिकों को दिया भरोसा

सामना संवाददाता / मुंबई

कुर्ला स्थित मदर डेयरी की जमीन उद्योगपति गौतम अडानी को देने का पैâसला महायुति सरकार ने लिया है। इसके खिलाफ धारावीकरों में गहरी नाराजगी और असंतोष के साथ ही चिंता व्याप्त है। इसी के मद्देनजर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे ने कल धारावीकरों को भरोसा दिलाया कि किसी भी स्थिति में धारावीकरों पर अन्याय नहीं होने देंगे। अगर जरूरत पड़ी तो शिवसेना मुंबईभर में आंदोलन करेगी।
‘धारावी बचाव आंदोलन कृति समिति’ और धारावी के विभिन्न सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों ने कल `मातोश्री’ निवासस्थान पर जाकर शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि महायुति सरकार धारावीकरों के साथ अन्याय कर रही है और इसके खिलाफ लड़ने के लिए उन्हें शिवसेना का समर्थन चाहिए। इस पर उद्धव ठाकरे ने पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से संवाद साधा और उनकी बात ध्यानपूर्वक सुनी। साथ ही आश्वस्त किया कि शिवसेना पूरी ताकत से धारावीकरों के साथ खड़ी थी, है और आगे भी रहेगी। इस मौके पर शिवसेना नेता व युवासेनाप्रमुख आदित्य ठाकरे, सांसद संजय राऊत, पूर्व सांसद विनायक राऊत, विधायक महेश सावंत और शिवसेना सचिव साईनाथ दुर्गे आदि उपस्थित थे।

गिरीश महाजन हैं फडणवीस मंत्रिमंडल के सबसे भ्रष्ट मंत्री!

-ठेकेदार अभिषेक कौल है महाजन का दलाल

-खोके के लिए दबा रखी हैं ३५० फाइलें

-संजय राऊत का जोरदार हमला

सामना संवाददाता / मुंबई

-देवेंद्र फडणवीस के मंत्रिमंडल में गिरीश महाजन सबसे भ्रष्ट मंत्री हैं। शिवसेना पर टिप्पणी करने वाले गिरीश महाजन के भ्रष्टाचार की पोल खोलते हुए शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता व सांसद संजय राऊत ने जोरदार तरीके से हमला बोला। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी और महाराष्ट्र सरकार पर जोरदार हमला बोलते हुए कहा कि ठेकेदार अभिषेक कौल गिरीश महाजन के लिए दलाली करता है और पैसे वसूलता है। लेन-देन न होने की स्थिति में आपदा प्रबंधन विभाग की करीब साढ़े तीन सौ फाइलें मंजूरी के बिना दबा दी गई हैं।
पत्रकार परिषद में संजय राऊत ने कहा कि भाजपा और उनके घाती गुट के मंत्री मंत्रालय में कोई काम ही नहीं कर रहे हैं। उनका सिर्फ एक एजेंडा दूसरे दलों को तोड़ना ही है। उन्होंने आरोप लगाया कि गिरीश महाजन के पास आम जनता के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण विभाग आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी है, लेकिन महाजन के कार्यालय में अभिषेक कौल नाम का एक दलाल बैठा है, जिसका फोन आए बिना एक भी फाइल मंजूर नहीं करते हैं। महाजन के भ्रष्ट होने की वजह से ही भाजपा की केंद्रीय समिति उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करने का विरोध कर रही थी। संजय राऊत ने कहा कि गिरीश महाजन के भ्रष्टाचार के सबूत हम मुख्यमंत्री फडणवीस को देने को तैयार हैं। वे कार्रवाई नहीं करेंगे यह मुझे पता है, लेकिन फडणवीस के मंत्रिमंडल में क्या कोई काबिल मंत्री है, यह महाराष्ट्र को पता चलना चाहिए। महाजन के दलाल मंत्रालय के बाहर लेन-देन करके फाइलें मंजूर करते हैं। मंत्रालय की प्रत्येक फाइलों पर वजन रखे बिना उसे आगे नहीं भेजा जाता है। इस तरह का सीधा आरोप उन्होंने लगाया। संजय राऊत ने कहा कि देवेंद्र फडणवीस ने अपने चारों ओर साधुसंतों की मंडली को एकत्रित कर रखा है, उसमें से एक साधु गिरीश महाजन हैं। कुंभ मेला के निमित्त हुई बैठक में फडणवीस साधु-संतों के चरण स्पर्श कर रहे थे, लेकिन उन्होंने फडणवीस, एकनाथ शिंदे, प्रफुल्ल पटेल इन ईडी पीड़ित साधु-संतों के भी पैरों पर गिरना चाहिए, क्योंकि उनकी वजह से ही फडणवीस शिवसेना की फूट का आनंद ले सके हैं, अन्यथा उनकी तपस्या कभी पूरी नहीं हुई होती।

खान के घर किलकारी

हेडिंग पढ़कर कहीं आप ये मत समझ लीजिएगा कि आमिर खान के नक्शे कदम पर चलते हुए सलमान को भी फिर किसी से मोहब्बत हो गई है और वे जल्द इस मोहब्बत का प्रमाण देनेवाले हैं। दरअसल, अपने सल्लू मियां के घर नन्हा मेहमान आनेवाला तो है, लेकिन उसके पिता हैं सलमान खान के छोटे भाई अरबाज खान, जिन्होंने दो साल पहले वर्ष २०२३ में सेलिब्रिटी मेकअप आर्टिस्ट शूरा खान से निकाह किया था। हालांकि, पिछले कुछ दिनों से बेबी बंप फ्लॉन्ट करती शूरा खान की प्रेग्नेंसी पर सबकी नजर तो थी ही, लेकिन खुद शूरा खान के मुंह से ये सुनकर ये बात कंफर्म हो चुकी है। वैसे हमारी मिसेस चटर-पटर ने जब से ये खबर सुनी हैं, वे बेहद खुश हैं, क्योंकि अपने सल्लू मियां के पापा की बजाय बड़े पापा बनने से उन्हें इस बात की तसल्ली हो चुकी है कि उनका रास्ता अब भी साफ है।

लोक विमर्श : दुनिया के कूटनीतिक तनाव में… छात्र क्यों बन जाते हैं कमजोर कड़ी?

लोकमित्र गौतम

पहले कनाडा के साथ हुए तनाव के कारण, उसके पहले यूक्रेन पर हुए रूस के हमले के कारण और आज कल अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कारण इन दिनों भारत के लाखों छात्र जो अमेरिका, कनाडा या यक्रेन में पढ़ रहे हैं, वो बहुत किस्म की समस्याओं के चक्रव्यूह में फंस गये हैं। अचानक राष्ट्रपति ट्रंप की इस सनक के चलते कि राजनीतिक झुकाव वाले छात्रों को अमेरिका में दाखिला नहीं दिया जाएगा, उधर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पर कई तरह के प्रतिबंध लगा देने के कारण भी इन दिनों अमेरिका में मौजूद करीब तीन से साढ़े तीन लाख छात्रों के बीच कम से कम ५० से ५४ हजार छात्रों के सिर पर अपनी पढ़ाई के पूरी न होने या अधूरी रह जाने की तलवार लटक रही है। चाहे भारत और कनाडा के बीच तनाव की बात रही हो या यूक्रेन पर रूस द्वारा हमला किए जाने की बात हो रही हो या फिर राष्ट्रपति ट्रंप की अमेरिकी विश्वविद्यालयों के वैंâपस में छात्रों के यहूदी विरोधी झुकाव के प्रदर्शन का कारण रहा हो। आखिर इन सब वजहों में भारत के उन छात्रों का क्या कसूर है, जो अपने मां-बाप की गाढ़ी कमाई को खर्च करके अमेरिका में उच्च शिक्षा के लिए गये हैं। वास्तव में ये सिर्फ भारतीय छात्रों पर आई आफत नहीं है, असल बात तो यह है कि आजकल किसी भी वजह से दुनिया के विभिन्न देशों के बीच आपसी तनाव का शिकार उस देश के छात्र हो जाते हैं, जिनका उस तनाव से कोई लेना-देना नहीं होता।
गुणवत्ता को लेकर सरकार उदासीन
भारत से हर साल विदेश पढ़ने जाने वाले छात्रों की संख्या लाखों में है और यह लगातार बढ़ रही है। साल २०२४ के आंकड़ों की बात करें तो लगभग ७.५ लाख से ज्यादा भारतीय छात्र विदेशों में उच्च शिक्षा पाने के लिए गए थे, जबकि २०१६ में यह संख्या ४.५ लाख के आस-पास थी। लेकिन कोरोना के बाद इस संख्या में जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई। क्योंकि २०२० में जहां विदेश में पढ़ने वाले छात्र ५.९ लाख थे, वहीं २०२४ में उनकी संख्या ७.५ लाख से ज्यादा हो गई। भारत से लगातार विदेश में जाकर पढ़ाई करने वाले छात्रों की संख्या बढ़ रही है। इसके कई कारण हैं। एक तो १९९० के दशक के बाद भारत में उदारीकरण के चलते बड़े पैमाने पर जो विदेशी कंपनियां आई हैं, वे ऐसे प्रोफेशनल्स की मांग ज्यादा कर रही हैं, जिनके पास विदेशी डिग्रियां होती हैं या दूसरे शब्दों में भारत में विदेशी कंपनियों के आने के बाद विदेशी डिग्रियों की मांग बढ़ी है, जिससे कार्पोरेट जगत में अपना चमकदार वैâरियर बनाने के लिए बड़ी संख्या में भारतीय छात्र पढ़ने के लिए विदेशों की ओर रूख कर रहे हैं। दूसरी बड़ी वजह यह है कि अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में हाल के दशकों में इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस और मेडिकल क्षेत्रों में अवसरों की भारी बढ़ोतरी हुई है। इससे इन देशों में पढ़ाई करके इन अवसरों के पाने की उम्मीद में बड़ी संख्या में भारतीय छात्र विदेश जा रहे हैं।
विदेशों में पढ़ाई के आकर्षण का भारतीय छात्रों के लिए एक तीसरा कारण यह है कि साल २०१० के बाद भारतीय बैंकों और गैरबैंकिंग संस्थानों ने एजुकेशन लोन बड़ी उदारता से देना शुरू किया है, जिससे विदेशों में पढ़ाई करना अब सिर्फ अमीर लोगों का शौक नहीं रहा, बल्कि आम मध्यम वर्ग के लोगों का भी बैंकों और गैरबैंकिंग वित्तीय संस्थानों से लोन लेकर इसके प्रति रुझान बढ़ा है। कोविड-१९ के बाद दुनिया के कई विकसित देशों ने विदेशी छात्रों को पोस्ट स्टडी वर्क वीजा-पीआर स्कीम और कई तरह की स्कॉलरशिप भी पेश की हैं, जिनके कारण भी विदेश पढ़ने जाने वाले छात्रों की संख्या में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई है। लेकिन इन सबके अलावा कुछ कारण हमारे शैक्षिक संस्थानों की कमी के भी हैं, जिन पर अकसर हम बात करने की बजाय चुप रह जाते हैं। दरअसल, भारत की शिक्षा प्रणाली खास करके उच्च शिक्षा में संसाधनों की बेहद कमी और व्यावहारिक ज्ञान का इसमें नितांत अभाव है। जिस कारण भारत में उच्च शिक्षा पूरी करने वाले छात्रों को अनुसंधान में जो एक्सपोजर की जरूरत होती है, जिन संसाधनों का होना अनुसंधानों के लिए महत्वपूर्ण होता है, ऐसी तमाम कमियों से गुजरना पड़ता है, जिस कारण भारत में उच्च शिक्षा पूरी करने वाले छात्रों को न तो सही से व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है और न ही अपने देश में वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लायक दक्षता हासिल होती है।
यही कारण है कि गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई के लिए भी बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों को विदेशी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों की तरफ रुख करना पड़ता है। फिर एक बात यह भी है कि भारत के टॉप टैक्नो और मेडिकल संस्थानों मसलन आईआईटी, आईआईएम, एआईआईएमएस आदि में सीटें बहुत सीमित होती हैं और योग्य छात्रों की संख्या बहुत ज्यादा होती है, इस कारण सबको प्रवेश नहीं मिल पाता और बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना पड़ता है। इस सबके अलावा कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जैसे देशों ने हाल के सालों में परमानेंट रेजिडेंट और रोजगार का भी लालच दिया हैं। जिस कारण भी इन देशों में भारत के मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चे येन-केन प्रकारेण रूप से जाना चाहते हैं। साथ ही अब पढ़ाई केवल ज्ञान प्राप्त करने का जरिया नहीं है, बल्कि डिग्री एक स्टेट्स सिंबल है। आज के माहौल में किसी अंतर्राष्ट्रीय पहचान वाले संस्थान की डिग्री होने का मतलब रोजगार की गारंटी और समाज में प्रतिष्ठा पाने का जरिया है इसलिए भी विदेशों में जाकर पढ़ाई करना अब जरूरी हो गया है।
छात्र टार्गेट, सरकार मौन
लेकिन अपने जीवन को निखारने और सफल बनाने के लिए जो छात्र भारी मेहनत करके विदेश पढ़ने के लिए जाते हैं, उन सबका जीवन इन देशों के आपसी राजनीतिक संबंधों और कूटनीतिक विवादों के चक्रव्यूह में फंसकर रह जाता है। मसलन जब २०२३-२४ में भारत और कनाडा के द्विपक्षीय राजनयिक रिश्तों में खटास आयी, तो कनाडा ने हजारों भारतीय छात्रों के पढ़ाई वीजा रद्द कर दिये और कुछ को तो बीच में विदेशी विश्वविद्यालयों से अपनी पढ़ाई छोड़कर भारत वापस आना पड़ा। इसी तरह ब्रिटेन ने जब पढ़ाई के बाद डिपेंडेंट वीजा पर रोक लगाई, तो भी कई भारतीय छात्रों ने अपना दाखिला रद्द करवा दिया और कई तो दाखिला लेने के बाद भी वापस आ गये। राजनीतिक तनाव के कारण सिर्फ सरकारें ही छात्रों पर प्रतिबंध जैसे जुर्म नहीं ढातीं, बल्कि कई बार विदेशी विश्वविद्यालय के खुद अपने रवैये में बदलाव आ जाता है। जिस कारण वे भारतीय छात्रों के साथ भेदभाव करने लगते हैं। उनकी अतिरिक्त जांच शुरू कर देते हैं और कई बार बतौर सजा भारतीय छात्रों को हाईरिस्क कैटेगिरी में रख देते हैं। जिससे भारतीय छात्रों की पढ़ाई बाधित होती है और उन्हें या तो पढ़ाई छोड़कर वापस आना पड़ता है या पढ़ाई करने के बाद भी भविष्य के लिए जो उम्मीदें लेकर गए होते हैं, विदेशों में उनकी वे उम्मीदें पूरी नहीं होती।
हाल के सालों में तो भारत के विरुद्ध दुनिया के कई देशों में नस्लवाद और सांस्कृतिक असुरक्षा की भावना भी बड़े पैमाने पर पनपी, जिस कारण ऑस्ट्रेलिया, कनाडा यहां तक कि अमेरिका आदि में भारतीय छात्रों के साथ खूब भेदभाव होते देखे गए हैं, जिससे परेशान होकर बहुत बड़ी संख्या में छात्र या तो पढ़ाई बीच में ही छोड़कर देश वापस आ जाते हैं या फिर पढ़ाई करने के बाद भी उन्हें अपनी मंजिल हासिल नहीं होती। मतलब यह कि भारतीय छात्र जिनका पढ़ने के अलावा दूसरा और कोई मकसद नहीं होता और वे पढ़कर अपना भविष्य बेहतर बनाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा देते हैं, उन छात्रों का बिना कोई कसूर हुए भी भारत के साथ अगर उन देशों के कूटनीतिक रिश्ते बिगड़ते हैं, जहां वे पढ़ाई के लिए गये होते हैं, तो भविष्य चौपट होने की आशंका बनी रहती है यानी छात्र कूटनीति की सबसे कमजोर कड़ी बनकर रह जाते हैं। सवाल है इसके लिए आखिर क्या किया जाना चाहिए? सबसे पहले तो यह कि भारत के छात्र विदेश में पढ़ने जाते हैं तो बड़े पैमाने पर भारत से विदेशी मुद्रा विदेश जाती है, लगभग ३० से ३५ बिलियन डॉलर भारत के सारे विदेश पढ़ने जाने वाले छात्र हर साल अपनी पढ़ाई पर खर्च करते हैं। दूसरे शब्दों में हर साल भारत से ३० से ३५ बिलियन डॉलर की रकम विदेश चली जाती है, क्योंकि भारत में गुणवत्तापूर्ण उच्च शैक्षिक संस्थान नहीं हैं, तो सबसे पहले भारत सरकार और यहां के कार्पोरेट जगत को इस भारी भरकम रकम को विदेश जाने से बचाने के उद्देश्य से अपने देश में कम से कम तीन से चार दर्जन उच्च गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक संस्थान विकसित करने होंगे, ताकि भारत की गाढ़ी कमाई यूं विदेश न जाए।
दूसरी बड़ी बात यह है कि जब भारत के छात्र किसी देश में बड़े पैमाने पर शिक्षा हासिल करने के लिए जाते हैं, तो सरकार का यह दायित्व बन जाता है कि वह उन देशों के साथ द्विपक्षीय छात्र नीति या शिक्षा नीति पर समझौते करे, ताकि उन देशों के साथ राजनीतिक रिश्ते बिगड़ने का खामियाजा छात्रों को न भुगतना पड़े। एक और महत्वपूर्ण बात भारत सरकार को यह करनी होगी कि जैसे बड़े पैमाने पर भारत में विदेशी कंपनियां आ रही हैं, उसी तरह विदेशी विश्वविद्यालयों को भी हमें अपने यहां आमंत्रित करना चाहिए, जिससे देश में उच्च शिक्षा का गुणवत्तापूर्ण माहौल भी बनेगा और विदेश जाकर पढ़ाई करने से जो स्टेट्स सिंबल हासिल होता है, वह भी हासिल होगा। इस तरह सरकार को अगर अपने छात्रों की जरा भी चिंता है तो उसे ये कदम तुरंत उठाना चाहिए, ताकि कूटनीतिक मनमुटाव का वे शिकार न हों।
(लेखक विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान, इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में वरिष्ठ संपादक हैं)

‘कॉकटेल २’ परोसेंगे शाहिद-रश्मिका

‘कॉकटेल’ के शौकीनों के लिए हमारी मिसेस चटर-पटर एक ऐसी खबर लाई हैं कि सुनते ही आपका चेहरा गुलाब हो जाएगा। अरे, अरे रुकिए जनाब, हम उस कॉकटेल की बात नहीं कर रहे हैं, जिससे आपकी आंखें गुलाबी हो जाएं, बल्कि हम तो वर्ष २०१२ में आई दीपिका-सैफ-डायना की ट्राएंगल लव स्टोरी पर बनी फिल्म ‘कॉकटेल’ की बात कर रहे हैं। जी हां, लगभग १३ साल बाद फिल्म के निर्देशक होमी अदजानिया एक बार फिर ‘कॉकटेल २’ के साथ आ रहे हैं। हालांकि, इस बार दीपिका-सैफ की बजाय होंगे शाहिद कपूर और रश्मिका मंदाना। इसके अलावा डायना पेंटी वाले किरदार के लिए तलाश जारी है। हमारी मिसेस चटर-पटर ने ये भी बताया है कि इस फिल्म की शूटिंग इसी साल अगस्त में शुरू हो जाएगी, क्योंकि मेकर्स चाहते हैं कि फिल्म अगले साल वर्ष २०२६ में बनकर रिलीज हो जाए।

जूते की नोक पर

पिछले ८ सालों से टॉलीवुड और बॉलीवुड में अपनी अदाकारी से नेशनल क्रश बन चुकी रश्मिका मंदाना को तो आप जानते ही होंगे। जी हां, वही ‘अपुन झुकेगा नहीं साला’ कहनेवाले पुष्पा को अपने पैरों में झुकाने का माद्दा रखनेवाली रश्मिका, जिन्होंने आज भले सबको अपना दीवाना बना रखा है, लेकिन एक दौर वो भी था, जब उन्हें काफी क्रिटिसाइज किया जाता था। हमारी मिसेस चटर-पटर की मानें तो एवरेज लुकिंग रश्मिका आज न सिर्फ खूबसूरती में, बल्कि अपनी अदाकारी में भी लाजवाब हैं और उसका प्रमाण है उनकी ब्लॉकबस्टर हिट फिल्में। तो आज सक्सेस के घोड़े पर सवार रश्मिका जहां अपने संघर्ष के दिनों में उन पर भरोसा रखनेवालों की शुक्रगुजार हैं, वहीं उन्हें क्रिटिसाइज करनेवालों को वे अपने जूते की नोक पर रखती हैं।