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सवाल हमारे, जवाब आपके?

रेल हादसों में हर साल सैकड़ों लोगों की मौत होती है। आखिर क्या कारण है कि तमाम प्रयासों के बावजूद इस तरह के हादसे रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं? क्या इसके लिए पूर्णतया रेलवे जिम्मेदार है या फिर व्यवस्था? इस पर आपका क्या कहना है?

कागजों पर बनती हैं योजनाएं
सरकार का ध्यान केवल चुनावी वादों पर होता है, आम जनता की सुरक्षा पर नहीं। रेलवे में सुधार की बात तो होती है, पर काम जमीन पर नहीं दिखता। सिस्टम में भ्रष्टाचार के कारण रेलवे दुर्घटनाओं में कमी नहीं आ रही। रेलवे अधिकारी केवल कागजों में योजनाएं बनाते हैं, हकीकत में कुछ नहीं होता।
– सूरज मिश्रा, मीरा रोड

जवाबदेही की है कमी
सरकारी तंत्र में जवाबदेही की कमी है इसलिए हादसे होते रहते हैं। बजट का सही उपयोग नहीं होता, सिर्फ घोषणाएं की जाती हैं। रेलवे में तकनीकी सुधार की बजाय पुराने तरीकों पर ही भरोसा किया जा रहा है।
– कविता पांडे, सांताक्रुज

नीतियों में दूरदर्शिता की कमी
सरकार की नीतियों में दूरदर्शिता की कमी है, जिससे हादसे नहीं रुकते। सुरक्षा के नाम पर केवल दिखावा किया जाता है, वास्तविक काम नहीं। निगरानी तंत्र की कमजोरी के कारण हादसे होते हैं और किसी को सजा नहीं मिलती।
– अमित मिश्रा, सांताक्रुज

रेलवे कर्मचारियों पर है अधिक दबाव
रेलवे कर्मचारियों की संख्या कम होने के कारण उन पर काम का अत्यधिक दबाव पड़ रहा है। लोको पायलटों के पंद्रह फीसदी पद खाली हैं। यह रेलवे विभाग में एक महत्वपूर्ण श्रेणी का पद है। उन्हें पर्याप्त आराम नहीं मिलता है और यहां तक ​​कि अपने पारिवारिक कार्यक्रमों में भी शामिल होने के लिए छुट्टियां नहीं मिलती हैं। यदि दो ट्रेनें एक ही लाइन पर आ जाएं तो दुर्घटनाओं को रोकने में मदद करने के लिए भारत में निर्मित ऑटोमेटिक ट्रेन कोलिजन प्रिवेंशन सिस्टम ‘कवच’ इस रूट पर उपलब्ध नहीं था। अब तक, १,४६५ किमी रूट और १२१ ट्रेन इंजनों में ही कवच सिस्टम इंस्टॉल हुआ है।
– किरन पांडे, दादर

नियमित रखरखाव का है अभाव
हिंदुस्थान में बीते ७० सालों के दौरान कई बार रेल हादसे सामने आए हैं। इनमें एक अहम वजह ये भी है कि तापमान के उतार-चढ़ाव के कारण धातु से बनी रेल की पटरियां गर्मी के महीनों में पैâलती हैं और सर्दियों में सिकुड़ती हैं। उन्हें नियमित रखरखाव की आवश्यकता होती है। थोड़ी भी लापरवाही बरतने पर ये बड़े हादसे का रूप ले लेती है। इसके अलावा रेल हादसों के लिए रखरखाव और धन की कमी भी बड़ी वजह है।
– सरिता त्रिवेदी, बोरीवली

…तो भारतीय रेल से उठ जाएगा विश्वास
हिंदुस्थान जैसे विशाल देश में जहां ढाई करोड़ लोग अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए रोज रेल मार्ग से ही यात्रा करते हैं, वहां यदि इस तरह की मानवीय अथवा तकनीकी लापरवाही या साजिश को रोका नहीं गया तो वह दिन दूर नहीं, जब उनका विश्वास रेल मार्ग से यात्रा करने से उठ जाएगा और वो फिर से आदमयुग में अपने जीवन को वापस ले जाने की कल्पना करने लगेंगे।
– कल्पना दीक्षित, विक्रोली

अगले सप्ताह का सवाल?
`मध्य रेल के नए प्लान के मुताबिक हार्बर लाइन की ट्रेनें सीएसएमटी तक न जाकर सैंडहर्स्ट रोड तक ही जाएंगी। इससे सीएसएमटी तक जानेवाले यात्रियों को काफी तकलीफों का सामना करना पड़ेगा। इस पर आपकी क्या राय है?
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