जन्म दिया जिस मां ने,
मुक्त किया तूने इस जग से,
सौम्य चेहरा तेरा,
चिर निद्रा में सो गई।
पास नहीं है तू…
रूह सदा साथ बनी रहेगी।
आंचल में मुझे दुलार मिला,
अब मेरे नसीब में नहीं।
देह तेरी मेरी नजरों में,
जी भर के लिपट कर रो लूं।
जन्म दिया तीन गुणों को,
सेवा करूं तेरी चरण बनकर।
काश पुनर्जन्म हो हमारा,
कृष्ण गोविंद और जगदीश फिर मिलेंगे।
अवसान मुद्रा में मैंने देखा,
मानो गहन नींद में सो रही।
दरकार मुझे नहीं किसी की,
तेरा आशीष बना रहे,
यही सबके लिए फलदाई।
पयान किया श्री चरणों में
तेरी राह आसान बनी,
यही कामना हमारी।
तेरे जाने से सूना-सूना सा आंगन और द्वारा
मन ठहरा-ठहरा सा हो गया।
एक दिन आना एक दिन जाना,
यही नियति है सारी सृष्टि की।
क्या लिखूं क्या नहीं लिखूं,
फिर जी भर के रो लूं,
पयान किया तूने शुभ दिन,
जैसे अवसान हुआ किसी संत जन का।
– गोविंद सूचिक `अदनासा’
हरदा-मध्य प्रदेश