अमिताभ श्रीवास्तव
इसे कहते हैं देश के लिए जीतना। हिंदुस्थानी खिलाड़ियों को सीखना चाहिए यह जज्बा, जो टेनिस के नोवाक जेकोविच में है। जेकोविच सितसिपास से भिड़ रहे थे। ६-३ से पहला सेट जीतने के बाद दूसरे सेट में चोटिल हो गए। ऐसे समय जब वो सितसिपास से यह मैच लगभग हारने की कगार पर थे। सर्बिया के दर्शक एकदम खामोश हो गए। जेकोविच की हालत इस मैच को छोड़ देने जैसी हो चुकी थी। उनके चिकित्सक ने आकर कुछ राहत दी तो जेकोविच कोर्ट में फिर उतरे, मगर अबके तो दर्द से कराह उठे। सर्बिया के दर्शक जो अब तक जोकोविच के लिए उत्साहवर्धन कर रहे थे, उनके छुके सिर और आंखों में आंसू थे कि जेकोविच का अब खेलना कठिन है। यह जेकोविच ने देखा और अपने चिकित्सक से पेन किलर दवा ली। दवा लेकर वो अपने देश के लिए कोर्ट में फिर उतरे और अबकी बार अपने विरोधी को टाई ब्रेकर में जाकर मात दी। अपना मैच लगभग गंवा चुके जेकोविच ने अपने देश के दर्शकों के लिए चोट की परवाह किए बिना मैच खेला और जीता। यह होता है देश के लिए खेलना और उसका जज्बा।
यह तो अन्याय है
पेरिस ओलिंपिक के जरिए विश्व में यह सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो गया, क्योंकि यह मुक्केबाजी में महिलाओ के प्रति अन्याय है। अब इस संदर्भ में तर्क जो भी दे दिए जाएं, किंतु यह सरासर अन्याय है कि एक महिला खिलाड़ी से पुरुष खिलाड़ी भिड़े वो भी महिला बनकर। दरअसल, मामला यौन परिवर्तन का है, जो मान्य किया गया किंतु है सरासर गलत। मुक्केबाजी स्पर्धा में एक बायोलॉजिकल पुरुष इमान खलीफ को एक महिला खिलाड़ी के साथ मुकाबले की अनुमति देने का मामला सामने आया। ओलिंपिक में एक बायोलॉजिकल पुरुष इमान खलीफ को पेरिस में एक महिला के रूप में लड़ने की अनुमति दी गई। मुकाबले में इमान ने कथित तौर पर इटली की महिला मुक्केबाज एंजेला वैâरिनी की नाक तोड़ दी। वैâरिनी ने खलीफ से २ जोरदार मुक्के खाने के बाद ४६ सेकंड के भीतर मुकाबला छोड़ दिया। उसने कहा ओलिंपिक मुक्केबाजी में यह असामान्य है। वैâरिनी ने अपना हेलमेट फर्श पर फेंक दिया और चिल्लाई- यह अन्याय है। पेरिस ओलिंपिक में हुई इस घटना को लेकर पुरी दुनिया सन्न है। हैरी पॉटर की लेखिका जेके राउलिंग ने एक्स पर पोस्ट डालकर पेरिस ओलिंपिक में हुई इस घटना की निंदा करते हुए इसे ‘अपमानजनक’ बताया। इस लिस्ट में एलन मस्क भी शामिल हुए।
खत्म होती चुनौतियां
ओलिंपिक में हिंदुस्थानी चुनौतियां धीरे-धीरे खत्म होने के कगार पर पहुंच रही हैं। वहीं जो मेडल हैं, वो केवल शूटिंग में दर्ज हुए हैं। शूटिंग के अलावा जिनसे तगड़ी उम्मीद थी जैसे तिरंदाजी, मुक्केबाजी, बैडमिंटन उसमें हिंदुस्थानी एथलीट लगभग बाहर हो चुके हैं। अब भाला फेंक, गोला फेंक और कुश्ती से बड़ी आस है। ऐसा आखिर क्यों होता है कि हम हर ओलिंपिक में केवल उम्मीदें टूटती हुई देखते हैं। सैकड़ों एथलीट खेलते हैं, गिनती के जीतते हैं और वो जिनसे उम्मीद भी नहीं होती। दरअसल, यह सारा हमारे ओलिंपिक के लिए तैयारी कराने तथा फेडरेशन द्वारा सिलेक्शन की खामियां हैं। हालांकि, पिछले वर्षों से आज खेलों में बहुत विकास हुआ है, धन लगा है और सुविधाओं के मामले में भी जबरदस्त विकास है। इसके बावजूद कुछ खिलाड़ियों के प्रति उदारता और केवल ओलिंपिक के लिए खिलाड़ी न बनाने की मुहिम की कमी से यह हालत होती है। समय रहते इस कमी के बड़े गड्डे को भरते हुए हिंदुस्थान को ओलिंपिक के लिए ही तैयार करना चाहिए खिलाड़ी, वरना हर बार चुनौतियों को इसी तरह खत्म होते हुए ही देखेंगे।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार व टिप्पणीकार हैं।)