-नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित अध्ययन से हुआ खुलासा
जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी तेजी से विनाश की ओर बढ़ रही है। धरती की कई प्रणालियों को टिपिंग का खतरा है। पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (पीआईके) के शोधकर्ताओं के अध्ययन में सामने आया कि मानवजनित जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी की अहम प्रणालियों जैसे बर्फ की चादरें और महासागरीय परिसंचरण पैटर्न के टिपिंग तत्वों में भारी अस्थिरता आ रही है। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित किया गया है। जलवायु विज्ञान में टिपिंग प्वाइंट एक महत्वपूर्ण सीमा है, जिसे पार करने पर जलवायु प्रणाली में बड़े, त्वरित और अक्सर अपरिवर्तनीय परिवर्तन होते हैं।
शोध के नतीजे बताते हैं कि १.५ डिग्री से अधिक तापमान के हर दसवें हिस्से के साथ टिपिंग के खतरों में वृद्धि होती है। यदि दो डिग्री से अधिक वैश्विक तापमान बढ़ जाए तो टिपिंग के खतरे और भी तेजी से बढ़ेंगे। वर्तमान जलवायु नीतियों के चलते दुनियाभर में इस सदी के अंत तक तापमान के लगभग २.६ डिग्री तक बढ़ने का अनुमान है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि अगले २० से ३० सालों मे पृथ्वी का तापमान टिपिंग प्वाइंट तक पहुंच जाएगा। शोधकर्ताओं के मुताबिक, आने वाली शताब्दियों और उससे आगे भी टिपिंग के खतरों को प्रभावी रूप से सीमित करने के लिए हमें नेट-जीरो या कुल शून्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को हासिल करना और इसे बनाए रखना होगा।