विक्रम सिंह/सुल्तानपुर
मानवीय संवेदनाओं के तारों को कंपा देने वाली ये दास्तां है यूपी के सुल्तानपुर शहर की। यहां बीच शहर रामलीला मैदान ओवरब्रिज के पास फुटपाथ पर चीथड़ों में लिपटा पड़ा ठिठुरता कंपता एक नेत्रहीन शख्स दस दिनों से पड़ा रहा। किसी राहगीर की संवेदना जगी तो सोशल मीडिया में भी इस घटनाक्रम का जिक्र हुआ लेकिन इंसानियत बस सोशल प्लेटफॉर्म पर दुःख जताती इमोजी’ज में पसीज कर रह गई। जुम्बिश तक न हुई! ऐसे में आगे आए
शराफत अली बब्बू ,उनके दो छोटे बच्चे और आज़ाद समाजसेवा समिति की टीम। जिसने साबित किया कि ‘इंसानियत’ और ये समाज अभी जिंदा है।
घटनाक्रम यूं है। दस दिनों से एक दृष्टिहीन बेसहारा गंदगी में लिपटा हुआ जीर्णशीर्ण अवस्था में शहर के रामलीला ओवरब्रिज के निकट पड़े होने की सूचना आज़ाद समाज सेवा टीम से जुड़े शराफत खान बब्बू को प्राप्त हुई। तब से लगातार वे अपने दो छोटे बच्चों मो. हुसैन व बेटी हलीमा फिर्दोस के साथ उसके नहलाने धुलाने व भोजन आदि की व्यवस्था में लग गए। यही नहीं उन्होंने उसके जिला जवार और गांव आदि की भी खूब पड़ताल की। मानसिक रूप से स्वस्थ किंतु नेत्रहीन व्यक्ति जब शराफत की शराफत से हिल मिल गया तो अपनी समस्त जानकारी भी उनसे शेयर की। जिसके आधार पर व्यक्ति की शिनाख्त सोनू पुत्र नन्कऊ (४०) रायबरेली जनपद के सलोन तहसील थाना नसीराबाद के ग्राम सभा बंधन का पुरवा के रूप में हुई। अब शराफत ने अपनी संस्था आज़ाद समाज सेवा समिति कणसाथियों की मदद ली। उस नेत्रहीन व्यक्ति के घर पर कई बार संपर्क किया लेकिन परिजन उसको लेने को तैयार नहीं हुए।ऐसे में शराफत साथियों के साथ जा पहुंचे नेत्रहीन को लेकर उसके गांव ! ग्राम प्रधान तुलसीराम से भेंट हुई और उन्होंने अपना कर्तव्य निभाया। सोनू को अपनी सुपुर्दगी में लेकर उसके भरण-पोषण का जिम्मा लिया। ऐसे में नेत्रहीन सोनू भी अपने गांव आकर पुलकित हो उठा। सवाल फिर वहीं है कि ..कौन है असल मजहब इंसानियत या फिर ‘सियासत’ में रोजाना सुर्खियों में रहने वाला हिंदू -मुसलमान !