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इतिहास को सहेजने में रेलवे फेल! …केवल पट्टिकाओं को संभालना हैरिटेज का संरक्षण नहीं …एलफिंस्टन ब्रिज को लेकर रेलवे का अजीबोगरीब निर्णय

सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई में एलफिंस्टन ब्रिज को लेकर रेलवे ने एक अजीबो-गरीब कदम उठाया है। रेलवे का दावा है कि वह पुल पर लगी १९१३ और १९११ की हेरिटेज पट्टिकाओं को सहेज कर रखेगी, लेकिन असल में यह पुल ध्वस्त करने का निर्णय पहले से ही लिया जा चुका है। रेलवे को शायद यह समझने की जरूरत है कि इतिहास को सहेजने का मतलब सिर्फ पट्टिकाओं को उठाना नहीं, बल्कि उस पुल और उसकी पहचान को बनाए रखना है, जिसने शहर के विकास में एक अहम भूमिका निभाई है।
गौरतलब है कि पुल की लोहे की रैलिंग पर एक पट्टिका है, जिस पर लिखा है कि जीआईपीआर, परेल ब्रिज, १९१३, ठेकेदार बोमनजी रुस्तमजी और दूसरी धातु की पट्टिका पर पीएनडब्ल्यू मैकलेलन पैनिनसुला रेलवे है, जो अब सेंट्रल रेलवे के नाम से जाना जाता है। यह वही रेलवे है, जिसने बॉम्बे (अब मुंबई) और ठाणे के बीच पहली ट्रेन चलाई थी।
लेकिन अब रेलवे इन ऐतिहासिक पट्टिकाओं को तो सहेजेगा, लेकिन पुल को ध्वस्त कर देगा। इसके अलावा एलफिंस्टन ब्रिज को ध्वस्त करके अब उसे डबल डेकर पुल में बदलने का खेल शुरू हो चुका है।
यह नया पुल शिवड़ी-न्हावाशेवा अटल सेतु से जुड़ा होगा, जो पूर्व-पश्चिम कनेक्टिविटी बनाए रखेगा। साथ ही एमएमआरडीए ने एक ४.५ किलोमीटर लंबी एलिवेटेड सड़क बनाने का प्रस्ताव दिया है, जिससे वाहन वर्ली से दक्षिण-मुंबई और बांद्रा तक सीधे पहुंच सकेंगे।

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