सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई के कालाचौकी, परेल स्थित ओम साई कैंसर रेजिडेंस को मनपा ने अवैध निर्माण बताकर गिराने का आदेश दिया था। यह इमारत ४,६०० वर्गफुट में फैली हुई है और इसमें ६२ कमरे, १० टॉयलेट, १० बाथरूम, किचन और ऑफिस बने हुए हैं। यहां टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में इलाज कराने आनेवाले गरीब मरीज रहते हैं, जो होटल या किराए का घर लेकर नहीं रह सकते हैं।
पहले किराएदार बनाया, फिर अवैध घोषित किया
बिनॉय गुप्ता, जो इस आश्रय को चला रहे हैं ने कोर्ट में बताया कि यह इमारत १९६० से पहले बनी थी। १९९५ से उनकी पत्नी यहां रह रही थीं और २०१९ में उनके निधन के बाद २०२१ में मनपा ने खुद गुप्ता के नाम किराएदारी ट्रांसफर की। कोविड के बाद इसे गरीब वैंâसर मरीजों के लिए चैरिटी के रूप में चलाया जाने लगा। वहीं मनपा का दावा है कि यह अवैध निर्माण है, क्योंकि इसके कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं मिले हैं और यह १९६२ से पहले के रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हैं।
मनपा ने मार्च २०२४ में नोटिस जारी किया। अप्रैल २०२४ में तोड़-फोड़ का आदेश दिया और फरवरी २०२५ को ट्रायल कोर्ट ने स्टे देने से इनकार कर दिया। इसके बाद गुप्ता ने ५ फरवरी को हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट की जस्टिस गौरी गोडसे ने मनपा की कार्रवाई पर २४ फरवरी तक रोक लगा दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर यह निर्माण अवैध था तो २०२१ में मनपा ने खुद गुप्ता के नाम किराएदारी क्यों ट्रांसफर की? अगर इसे गिराने का पैâसला किया गया था तो वहां रह रहे गरीब वैंâसर मरीजों के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की गई?