मुख्यपृष्ठस्तंभसम-सामयिक : भगदड़ से हो रही हैं मौतें का जिम्मेदार कौन?

सम-सामयिक : भगदड़ से हो रही हैं मौतें का जिम्मेदार कौन?

वीना गौतम

कब सुधरेगी रेल्वे!
एक बार फिर हुई भगदड़ और देखते ही देखते १८ लोगों ने अपनी जान गवां दी। साथ ही अभी भी २ दर्जन से ज्यादा घायलों में से कई लोगों की हालत नाजुक है इसलिए अचरज नहीं होगा अगर मरनेवालों की अंतिम संख्या इससे ज्यादा हो। गुजरी १५ फरवरी २०२५ को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन में अपार भीड़ थी। ऐसा होना ही था। जिस तरह १४४ सालों बाद आए इस बार के दुर्लभ कुंभ का प्रचार हुआ है, वैसे में भला कौन ऐसा धर्मभीरु शख्स नहीं होगा, जो इस खास कुंभ में नहाकर स्वर्ग की लालसा नहीं रखेगा! इसलिए १५ फरवरी २०२५ को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की त्रासदी के लिए कुछ हद तक सभी जिम्मेदार हैं। रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म मैनेजमेंट, राजधानी दिल्ली की पुलिस व्यवस्था और खुद आम लोग यानी तीर्थयात्री भी। मगर चूंकि रेलवे स्टेशन की व्यवस्था संभालने की बुनियादी जिम्मेदारी रेलवे स्टेशन प्रशासन की है इसलिए इस भगदड़ और उससे होनेवाली मौतों की सबसे ज्यादा और अक्षम्य जिम्मेदारी रेलवे के स्टेशन प्रशासन की ही है।
निश्चित रूप से इस मैनेजमेंट की जिम्मेदारी रेल मंत्री को लेनी चाहिए और अगर वह इस्तीफा न भी दें तो खुद से उन्हें यह वादा को करना ही चाहिए कि भविष्य में ऐसी गलतियां न दोहराई जाएं। हालांकि, रेलवे की जांच कमेटी की घोषणा हो गई है। स्टेशन के सभी सीसीटीवी फुटेज सूचना के मुताबिक सुरक्षित कर दिए गए हैं और एनाउंसमेंट सिस्टम की रिकॉर्डिंग भी सील की गई है, क्योंकि दिल्ली पुलिस का दावा है कि यह भगदड़ रेलवे स्टेशन पर हुई गलत एनाउंसमेंट का नतीजा है। मगर हमें नहीं भूलना चाहिए कि दूसरे पर आरोप मढ़कर हर कोई खुद के बचाव का रास्ता ढूंढ़ता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत में रेलवे स्टेशनों में होनेवाला प्रसारण बहुत ही घटिया दर्जे का होता है। इसकी पहली खामी तो यह होती है कि भले भारत दुनियाभर में डिजिटल तकनीकी में माहिर होने के तौर पर जाना जाता हो, लेकिन आज भी हमारे रेलवे स्टेशनों में होनेवाला प्रसारण आमतौर पर डिजिटल नहीं है, इस कारण उच्चारण इतना खराब होता है कि कानों को पूरी तरह से लगा देने के बाद भी अगर आपको रेलवे प्रसारणों को सुनने की आदत और अभ्यास नहीं है तो ९० पर्सेंट गारंटी है कि आप नहीं समझ पाएंगे कि प्रसारण में क्या कहा जा जा रहा है, क्योंकि सीधे माइक के सामने बोल देने पर जो उच्चारण प्रसारित होता है, वह बिल्कुल फटे बांस की आवाज जैसा होता है। अगर कुछ सूचनाएं स्टूडियो स्तर के प्रसारण वाली होती हैं तो उनमें पता नहीं ये किसका सुझाव है कि सूचनाओं के आगे-पीछे और बीच में इतना ज्यादा और तेज ध्वनि का संगीत ठूंसा जाता है कि काम की सूचना तो समझ में आती नहीं है, कान तेज आवाज वाले संगीत से जरूर परेशान हो जाते हैं इसलिए सबसे पहले तो रेलवे प्रशासन को स्टेशनों पर होनेवाले प्रसारणों को लेकर संवेदनशील होना चाहिए।
भीड़ मैनेजमेंट में शून्य!
जहां तक बात भीड़ के मैनेजमेंट की है तो फिर वही पुरानी बात सामने आती है कि हम यूं तो दुनिया के लिए सबसे ज्यादा स्किल्ड मैनपॉवर होने के लिए जाने जाते हैं, विशेषकर आईटी क्षेत्र के लिए, लेकिन खुद हम अपने यहां सार्वजनिक व्यवस्थाओं में न तो डिजिटल वाइस का इस्तेमाल करते हैं और न ही दुनिया में किस तरह आधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक का इस्तेमाल करके भीड़ को व्यवस्थित किया जाता है, इससे भी कुछ नहीं सीखते। यही कारण है कि पिछले महज सात महीनों में देशभर में एक दर्जन से ज्यादा भीड़ की भगदड़ की घटनाएं हो चुकी हैं और इनमें करीब आधा दर्जन ऐसी घटनाएं हैं, जिनमें सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गवां दी है।
१५ जनवरी २०२५ को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन में मची भगदड़ में जहां ४ बच्चों व महिलाओं सहित १८ लोग कुचलकर मारे गए, वहीं २९ जनवरी २०२५ को मौनी अमावस्या के अवसर पर महाकुंभ प्रशासन के मुताबिक, ३० श्रद्धालुओं की मौत हुई और लगभग ६० लोग घायल हो गए। हालांकि, गैर सरकारी खबरें एक नहीं, बल्कि तीन भगदड़ों की बात करती हैं और मारे गए लोगों की संख्या को भी प्रसारण की संख्या से कई गुना ज्यादा बताती हैं। इसी साल की जनवरी माह में ८ जनवरी को तिरुपति बालाजी के मंदिर आंध्र प्रदेश में मुफ्त दर्शन पास हासिल करने के लिए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी थी, जिस कारण हुई भगदड़ में ६ लोगों की मौके पर ही मौत हो गई और ३५ से ज्यादा बुरी तरह से घायल हो गए। पिछले साल २ जुलाई २०२४ को भीड़ की भगदड़ की ऐसी ही घटना राजधानी से १४० किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के हाथरस में घटी थी, जहां नारायण साकार हरि उर्फ भोलेबाबा के सत्संग के दौरान मची भगदड़ में १२१ लोगों की मौत हो गई थी, जिसमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे थे। ऐसी ही और भी कई घटनाएं पिछले कुछ महीनों के भीतर ही घटी हैं, जो इस बात का सबूत हैं कि हिंदुस्थान में बार-बार भगदड़ से कुचलकर होनेवाली मौतों के बाद भी न तो शासन-प्रशासन, न ही आयोजक और न ही आम लोग ही भीड़ और भगदड़ को लेकर जरा भी संवेदनशील होते हैं, क्योंकि आज जब दुनिया की आबादी ८ अरब से ज्यादा है तो अकेले हिंदुस्थान में ही भीड़ समस्या थोड़े है। दुनिया में सबसे ज्यादा भीड़भाड़ वाले रेलवे स्टेशन जापान के होते हैं, जहां मुंबई के जनसैलाब बने रेलवे स्टेशनों से भी ज्यादा इंसानी रेला उमड़ता है, लेकिन इतनी भीड़ के बावजूद टोक्यो मेट्रो सिस्टम और दुनिया में सबसे ज्यादा भीड़भाड़ वाला रेलवे स्टेशन ओसाका पूरे साल स्टेशन को भगदड़ से करीब-करीब मुक्त रखता है। पिछले पांच सालों में यहां भगदड़ से एक भी इंसान की मौत नहीं हुई और न ही कोई घायल हुआ और शायद १० से १५ सालों में भी कोई एकाध दुर्घटना हुई हो तो हुई हो वर्ना आसानी से दुनिया के सबसे ज्यादा भीड़भाड़ वाली जापानी रेल व्यवस्था में दुर्घटना नाम की कोई चीज नहीं होती।
नई तकनीक से दूरी
ऐसा नहीं है कि जापान को दुर्घटना न होने का कोई ईश्वरीय वरदान प्राप्त है। वास्तव में यह बेजोड़ मानवीय सजगता अपने काम में सौ फीसदी ईमानदारी से मुस्तैदी या और आम लोगों यानी यात्रियों के सिविक सेंस या नागरिक जागरूकता के कारण शून्य दुर्घटनाओं का नतीजा हासिल होता है। टोक्यो मेट्रो सिस्टम और जापान में रेलवे स्टेशन का मैनेजमेंट ऐसे प्रशिक्षित ‘कुशिया’ कर्मचारियों को भीड़ को व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी सौंपता है, जो स्टेशनों को ऐसी किसी भी दुर्घटना से बचाते हैं। भीड़ को नियंत्रित करने में ये प्रशिक्षित कर्मचारी कुशिया यात्रियों को संयमपूर्वक ट्रेन में चढ़ने-उतरने में मदद करते हैं और कड़ाई से खुद भी अनुशासित रहते हैं तथा यात्रियों को भी अनुशासित रखने में मददगार होते हैं। जापान के रेलवे स्टेशनों में आधुनिक तकनीक के जरिए जीरो टॉलरेंस के स्तर पर सुरक्षा व्यवस्था का प्रबंध किया जाता है। हर समय एक्टिव मोड में मौजूद एआई वैâमरे यात्रियों की संख्या का न सिर्फ पल-पल विश्लेषण करते रहते हैं, बल्कि आनेवाली परेशानियों का भी अनुमान लगा लेते हैं और पहले ही उसे टालने के लिए मुस्तैद हो जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह भीड़ को नियंत्रित करनेवाले कुशिया कर्मचारी बेहद प्रशिक्षित और विनम्र होते हैं, ताकि यात्री इनसे किसी तरह का तनाव या परेशानी न महसूस करें।
अकेले जापान ही भीड़ को दुर्घटना रहित नियंत्रित करने का रिकॉर्ड नहीं बनाया, बल्कि यूनाइडेट किंगडम जो लंदन में मैराथन और विंबलडन चैंपियनशिप के दौरान भारी भीड़ से गुजरता है, वह भी इसे नियंत्रित करने के लिए क्राउड साइंस नामक तकनीक का इस्तेमाल सफलतापूर्वक करता है। यहां डायनमिक बैरियर सिस्टम भीड़ की गति को धीमा करने के लिए इस्तेमाल होते हैं और रियल टाइम ट्रैकिंग तकनीक से प्रतिभागियों की गतिविधियों पर नजर रखते हैं। इस सिस्टम की सबसे खूबी हाई रिस्क जोन में जियो फेंसिंग और पब्लिक इंफॉर्मेशन को लगातार डिस्प्ले करती हैं। इंग्लैंड में भी भगदड़ से होनेवाली दुर्घटनाएं लगभग शून्य रहती हैं। अत: हम जबकि आधुनिक इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में इतने माहिर हैं तो खुद अपने यहां इस तरह की व्यवस्था क्यों नहीं कर सकते। हमें बार-बार होनेवाली भगदड़ से दुर्घटनाओं की पृष्ठभूमि में यह समझना ही होगा।
(लेखिका विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान, इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में कार्यकारी संपादक हैं)

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