नरेंद्र गुप्ता
किसी जीव के दुख को देखकर उसे दूर करने की इच्छा करना, उसके लिए प्रयास करना ही जीवदया है। हमें प्रत्येक जीव के प्रति प्रेम व दया भाव रखना चाहिए। मानवता का यही धर्म है। प्राचीनकाल में भी देवी-देवताओं के साथ पशु-पक्षी का संबंध होना पशु संरक्षण का प्रतीक माना गया है। जानवर और इंसान एक-दूसरे पर निर्भर हैं। जब हम एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, तो हमें जानवरों के साथ आम लोगों की तरह व्यवहार करना चाहिए। पशुओं के साथ हमें प्यार से रहना चाहिए। बेशक, जानवर हमारी भाषा नहीं बोलते हैं, लेकिन संवेदनाएं मनुष्यों के समान रहती हैं। पशु-पक्षियों के प्रति होने वाले अत्याचार, क्रूरता और अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। बीमार पक्षियों और घायल जानवरों का इलाज कराना भी मानव का धर्म है। होली का त्योहार आ रहा है। शरारती लोग मूक जीवों जैसे श्वान, बिल्ली, गाय आदि पशुओं पर रंग डाल देते हैं, रंग में हानिकारक केमिकल होते हैं, मूक जीव अपने शरीर को साफ करने के लिए जीभ से चाटते हैं एवं केमिकल उनके पेट में चला जाता है और बीमार पड़ जाते हैं। गुलाल आदि सिंथेटिक रंगों से बने होते हैं, जिससे जीवों में त्वचा की एलर्जी एवं नाक में संक्रमण हो सकता है इसलिए त्योहार मनाते समय मूक जीवों का ध्यान रखना चाहिए।