लोकमित्र गौतम
साल की शुरुआत में झटका
जब किसी हफ्ते में शेयर बाजार की शुरुआत ब्लैक मंडे और अंत ब्लैक प्रâाइडे से हो तो बाजार के हाहाकार का अंदाजा लगाया जा सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे चमकते हुए पिछले तीन दशकों में शेयर बाजार के लिए यह सबसे डरावना समय है। पिछले २९ सालों में शेयर बाजार में पूंजी के नजरिये से इतनी बड़ी गिरावट पहले कभी नहीं देखी गई। इस साल की शुरुआत से यानी १ जनवरी २०२५ से २८ फरवरी २०२५ तक अकेले नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी-५० इंडेक्स करीब १५ फीसदी तक नीचे गिर गया है। सितंबर २०२४ से २८ फरवरी २०२५ तक निवेशकों की लगभग १ ट्रिलियन डॉलर संपत्ति या रुपए में समझें तो ८५ लाख करोड़ रुपए डूब गए हैं। अकेले फरवरी २०२५ में ही सेंसेक्स ४,००० अंकों से भी नीचे गिर चुका है, फरवरी के २८ दिनों में ही बाजार ५ फीसदी से ज्यादा गिरा है। इस अवधि में बीएसई (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) में सूचीबद्ध कंपनियों का कुल बाजार पूंजीकरण ४० लाख करोड़ रुपए से ज्यादा घट गया है। अकेले २८ फरवरी २०२५ को ही सेंसेक्स १,४१४ अंकों की डुबकी लगाकर ७३,१९८ में और निफ्टी ४२० अंक गिरकर २२,१२५ अंकों में बंद हुआ। इस एक अकेले दिन की गिरावट से बीएसई में सूचीबद्ध कंपनियों का बाजार पूंजीकरण ९.६१ लाख करोड़ रुपए घटकर ३८३.४९ लाख करोड़ रुपए रह गया। ३० सितंबर २०२४ को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड कंपनियों का मार्वेâट वैâप ४७४ लाख करोड़ रुपए था, जबकि २८ फरवरी को यह घटकर ३८३.४९ लाख करोड़ रुपए रह गया यानी ५ महीनों में निवेशकों की पूंजी ९० लाख करोड़ रुपए तक घट गई।
इस गिरावट का बाजार में इतना व्यापक असर पड़ा है कि हर तरफ निराशा का गहन कुहासा छा गया है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले ३ दशकों से लगातार जिस मजबूती से आगे बढ़ रही थी, उसे पहली बार इतना जबर्दस्त धक्का लगा है कि निवेशकों का मनोविज्ञान बहुत गहरे तक हिल गया है। हालांकि, बाजार में निवेशकों की उम्र का कोई सटीक आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन हम सब जानते हैं कि पिछले तीन दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था जिस युवा आवेग से आगे बढ़ी थी, उसमें सबसे ज्यादा भागीदारी युवाओं की ही रही है। सिर्फ अर्थव्यवस्था ही नहीं, बल्कि मौजूदा भारतीय समाज भी एक युवा समाज के तौरपर ही जाना जाता है। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिछले पांच महीनों में यानी सितंबर २०२४ से २८ फरवरी २०२५ तक लगातार शेयर बाजार में जो रह-रहकर गिरावट के भूचाल आए हैं, उनसे सबसे ज्यादा प्रभावित भारत के युवा निवेशक ही हुए हैं। दुनिया के आर्थिक मामलों में सबसे सटीक रिपोर्टिंग करने वाली न्यूज एजेंसी ‘रायटर’ ने लिखा है कि भारत के शेयर बाजार में ऐसी भारी गिरावट पिछले २९ सालों में कभी नहीं देखी गई। जब महज कुछ महीनों के भीतर निवेशकों के ८५ से ९० लाख करोड़ रुपए स्वाहा हो गए हों। हैरानी की बात यह है कि जितनी भारी गिरावट भारत के शेयर बाजार में देखी गई है, वैसी गिरावट ठीक इसी समय दुनिया में कहीं और नहीं देखी गई।
ट्रंप टेरर का असर
पिछले पांच महीनों में अगर दुनिया के शेयर बाजार को देखें तो अमेरिकी का डाओ जोंस इंडेक्स ३० सितंबर २०२४ को ४२,३३० के स्तर पर था और २७ फरवरी २०२५ को ४३,२४० के स्तर पर बंद हुआ यानी इन करीब ५ महीनों में यह गिरा नहीं, बल्कि ९१० अंक (२.१४ प्रतिशत) चढ़ा है। इसी तरह चीन का बाजार शंघाई कंपोजिट ३० सितंबर २०२४ को ३,३३६ के स्तर पर था और २७ फरवरी २०२५ को यह ३,३८८ के स्तर पर बंद हुआ। मतलब यह कि पिछले ५ महीनों में ये ५२ अंक (१.५५ प्रतिशत) चढ़ा है। हांगकांग का हैंगसेंग इंडेक्स ३० सितंबर २०२४ को २१,१३३ अंकों पर था और २७ फरवरी २०२५ को यह २३,७१८ के स्तर पर बंद हुआ। मतलब यह कि यह २५८५ पॉइंट (१२.२३ प्रतिशत) चढ़ा है। जर्मनी का स्टॉक मार्वेâट डीएएक्स ३० सितंबर २०२४ को १९,३२४ के स्तर पर था और २७ फरवरी २०२५ को यह २२,३७८ के स्तर पर बंद हुआ। कहने का मतलब पिछले ५ महीनों में यह ३०२४ अंक (१५.८ प्रतिशत) चढ़ा है। वहीं लंदन स्टॉक एक्सचेंज का एफटीएसई दा फाइनेंशियल टाइम्स स्टॉक एक्सचेंज-१०० इंडेक्स जहां ३० सितंबर २०२४ को ८,२३६ के स्तर पर था, वह २७ फरवरी २०२५ को बढ़कर ८,७५६ के स्तर पर बंद हुआ यानी पिछले पांच महीनों में यह ५२० पॉइंट (६.३१ प्रतिशत) चढ़ा है, जबकि ठीक इसी समय भारतीय शेयर बाजार ने इतिहास का सबसे बुरा परफॉर्म किया है। अब के पहले इतना बुरा परफॉर्म भारतीय बाजार ने १९९५ में ही किया था, जब निफ्टी ने सितंबर १९९५ से अप्रैल १९९६ तक लगातार आठ महीने तक करीब ३१ फीसदी गिरा था।
अगर भारत के शेयर बाजार की तात्कालिक गिरावट की कोई सबसे बड़ी वजह है तो वह डोनाल्ड ट्रंप की अनिश्चित और अचंभे से भरी टैरिफ धमकियां हैं। राष्ट्रपति ट्रंप पिछले एक महीने के अपने कार्यकाल में तीन बार करीब-करीब धमकी देने के स्तर पर यह दोहरा चुके हैं कि टैरिफ के मामले में अमेरिका जैसे को तैसा रवैया अपनाएगा। मतलब भारत जितना टैरिफ अमेरिकी आयात पर लगाएगा, उतना ही टैक्स अमेरिका भारतीय आयात पर लगाएगा। इस धमकी के कारण भारत के शेयर बाजार रह रहकर धड़ाम-धड़ाम गिर रहे हैं। लेकिन दुनिया के शेयर बाजारों का इतिहास गवाह है कि कोई भी बाजार कितनी बार ही पाताल यात्रा न कर लें, लेकिन अंत में उसे ऊपर उठना ही होता है, यही शेयर बाजार का स्थाई चरित्र है इसलिए युवा निवेशकों को धैर्य नहीं खोना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पिछले दो दशकों से भारत के युवा निवेशक ही शेयर बाजार के कर्ता-धर्ता रहे हैं, वही इसकी अगुआई करते रहे हैं इसलिए कहर भी उन्हीं के कंधों पर सबसे ज्यादा टूटा है। लेकिन ये भयानक, डरावने और काले दिन भी गुजर जाएंगे, जैसे अतीत में कई बार ऐसे स्याह दिन आते जाते रहे हैं। इसलिए भारत के युवा निवेशकों को अपनी भावनाएं नियंत्रण में रखना होगा। वो इस गिरावट से घबराकर इतने ज्यादा निराश न हों कि उन्हें लगने लगे कि सब कुछ खत्म हो गया। बाजार का अपना एक चक्र होता है और इस चक्र का गणितीय नियम यह भी है कि जो बाजार जितने नीचे धंसेगा, उतने ही ऊपर उछलेगा। इसलिए हिम्मत रखें।
ट्रेंड देखकर निवेश खतरनाक
वैसे भी शेयर बाजार में निवेश करने के पहले का सबसे जरूरी पाठ यही होता है कि यहां घबराकर और जल्दबाजी में कोई निर्णय न लें। क्योंकि हर गिरावट के बाद अनिवार्य रूप से उछाल आता ही है। भले अनुमान के कुछ पहले आ जाए या कुछ ज्यादा ही डराए। युवा निवेशकों के लिए यह ऐतिहासिक गिरावट एक बड़ा सबक और भविष्य के लिए ट्रेनिंग भी हो सकती है कि वे बाजार में निवेश करने के पहले निवेश के डायवर्सिफिकेशन मॉडल की ताकत को समझें। मसलन शेयर बाजार में एक ही वैâटेगिरी के शेयर में कभी भी पूरा दांव लगाना अक्लमंदी नहीं होती। निवेश के लिए कई तरह के वैâप चुनें। म्युचुअल फंड, गोल्ड ईटीएफ, बॉण्ड्स और रियल एस्टेट जैसे विकल्पों की भी अनदेखी न करें। एसआईपी यानी सिस्मेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान में भरोसा जताएं। निवेश के एक बड़े हिस्से का रिस्क लेने के बावजूद कुछ पैसे एसआईपी पर भी लगाएं, इसका जोखिम हमेशा कम होता है। एकमुश्त का जोखिम हमेशा आर-पार का होता है, जबकि एसआईपी का गणित ही नहीं विज्ञान भी इसके उलट है। यह भी याद रखें कि इमरजेंसी फंड कभी भी शेयर बाजार में न लगाएं। अगर बाजार के मौजूदा भूचाल में कुछ युवा ऐसा करके नुकसान खा चुके हैं तो उन्हें इस नुकसान को भविष्य के सबक के रूप में याद रखना चाहिए और इमरजेंसी फंड को शेयर बाजार में कभी नहीं लगाना चाहिए। शेयर बाजार के लिए वही पैसा निवेश के खातिर सबसे उपयुक्त होता है, जो कम से कम तीन से पांच साल तक आपके पास एक अतिरिक्त पूंजी के रूप में मौजूद हो, उसके बिना कोई काम न रुक रहा हो। हालांकि, यह बात बार-बार दोहराई जाती है, फिर भी इसे याद रखना चाहिए कि शेयर बाजार में निवेश करने के पहले फंडामेंटल और टेक्निकल रिसर्च कर लेनी चाहिए। सिर्फ ट्रेंड देखकर निवेश करना अपने साथ धोखा है। गंभीर निवेशक बनने के लिए कंपनियों की बैलेंस शीट, उनके फ्यूचरिस्टिक प्लान और उस क्षेत्र विशेष की विकास दर को मौजूदा और अनुमानित भविष्य के साथ तालमेल बिठाकर ही निवेश की दिशा में आगे बढ़ें।
(लेखक विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में वरिष्ठ संपादक हैं।)