वन अधिकार कानून के नाम पर छलावा
जंगल पर हक मांगने वालों के साथ धोखा!
सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र के पेंच टाइगर रिजर्व के आसपास बसे ग्रामीणों ने वन विभाग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें वन अधिकार कानून (एफआरए) के तहत जमीन के हक से वंचित कर दिया गया। हंसराज समेत १६ गांवों के ५६ लोगों का दावा है कि उन्हें जुर्माने की रसीद देकर धोखे से उनके दावे खत्म करवा दिए गए। ग्रामीणों के अनुसार, उन्हें बताया गया था कि यह जुर्माने की रसीद उनके वन अधिकार का सबूत बनेगी, लेकिन बाद में पता चला कि दस्तावेज पर उनके दावे छोड़ने का उल्लेख था।
कैसे दिया गया धोखा?
वन अधिकार कानून २००६ के अनुसार, जो लोग २००५ से पहले जंगल में रह रहे हैं, वे वहां की जमीन पर हक जता सकते हैं। इसके लिए दस्तावेजी प्रमाण की जरूरत होती है। ग्रामीण जब अपने हक के लिए दस्तावेज जुटा रहे थे, तब वन विभाग ने उन्हें अतिक्रमणकारी बताते हुए जुर्माना लगा दिया। ग्रामीणों ने इसे स्वीकार कर जुर्माना भर दिया, लेकिन बाद में पता चला कि दस्तावेज में लिखा था कि वे अपनी जमीन के दावे से ‘स्वेच्छा से’ पीछे हट रहे हैं।
वन विभाग की सफाई
वन विभाग के अधिकारियों ने ग्रामीणों के आरोपों को खारिज किया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, पेंच टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर प्रभुनाथ शुक्ला का कहना है कि वन क्षेत्र की सीमाएं तय करने के लिए कार्रवाई की गई थी। वहीं रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर जयेश तायड़े ने दावा किया कि गूगल इमेजरी और सरकारी रिकॉर्ड के आधार पर यह कार्रवाई की गई।
ग्रामीणों की लड़ाई जारी
ग्रामीणों का आरोप है कि उन्हें जंगल के संसाधनों तक पहुंचने से रोका जा रहा है और खेती करने नहीं दिया जा रहा है। जब उन्होंने दोबारा अपने दावे दाखिल करने की कोशिश की, तो वन विभाग ने ग्राम पंचायतों को पत्र भेजकर कहा कि ऐसे दावे स्वीकार न किए जाएं। अब ग्रामीण न्याय की मांग कर रहे हैं और अपने अधिकार वापस पाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।