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राज की बात : ट्रंप के रियलिटी शो से मोदीजी के लिए सबक

द्विजेंद्र तिवारी मुंबई

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के बीच पिछले शुक्रवार को हुए सार्वजनिक टकराव ने वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य को हिलाकर रख दिया है। भारत में इस तरह का तमाशा लोकसभा, राज्यसभा या विधानसभाओं में हम देख चुके हैं, जब दो पक्ष इस तरह टकराते हैं। लेकिन किसी विदेशी मेहमान को घर बुलाकर अंतर्राष्ट्रीय बेइज्जती का ऐसा उदाहरण कभी नहीं देखने को मिला। दो राष्ट्र प्रमुखों के बीच बंद दरवाजों के पीछे वाद-विवाद की खबरें आती हैं, लेकिन ट्रंप ने सब कुछ रियलिटी टीवी शो की तरह किया।
आपको याद होगा कि ट्रंप को एक्टिंग का भी शौक रहा है। हॉलीवुड की एक चर्चित और सुपरहिट फिल्म ‘होम अलोन’ में वह ५ सेकंड के एक रोल में दिखे थे। वह कई फिल्मों में इसी तरह दिखे। ‘द अप्रेंटिस’ नामक रियलिटी शो में वह इसी तरह प्रतियोगियों को ‘फायर’ करते हुए नजर आए थे। ‘पिज्जा हट’ सहित दर्जनों विज्ञापनों में वे नजर आए। उनके लिए सब कुछ एक रियलिटी शो है। वे अब राष्ट्रपति हैं, तो भी उनके इस मिजाज में कोई कमी नहीं आई। अमेरिका जैसे सबसे ताकतवर राष्ट्र में अगर ऐसा कोई रियलिटी शो मानसिकता वाला सनकी सत्तारूढ़ हो, तो यह पूरी दुनिया के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है। लोहे की जंजीरों से बंधे लोगों की वीडियो ‘एक्स’ पर डालकर अट्टहास करने वाले और घूम-घूमकर बच्चे पैदा करने वाले एलन मस्क जैसे लोग अगर उनके नीति निर्माता हैं, तो दुनिया को बहुत सतर्क रहने की जरूरत है।
कूटनीति की कब्र
एक तरह से ट्रंप ने कूटनीति की कब्र खोदना शुरू कर दिया है और अब वैश्विक राजनीति में खतरों, ब्लैकमेल और धमकी के व्यापक इस्तेमाल का रास्ता खोल दिया है। अब देशों को बारीक कूटनीतिक वार्ताओं में शामिल होने की जरूरत खत्म हो रही है। इसके बजाय, दुनिया एक ऐसे चरण में प्रवेश कर रही है, जहां शक्ति और लाभ अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को निर्धारित करते हैं। कूटनीति लंबे समय से शांतिपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की आधारशिला रही है, जो बातचीत और समझौते के लिए एक मंच प्रदान करती है। ट्रंप और जेलेंस्की के बीच खुले विवाद ने दिखाया है कि कूटनीतिक मानदंड खत्म हो रहे हैं। यूक्रेन और पूर्व राष्ट्रपति बाइडेन दोनों की ट्रंप द्वारा खुली आलोचना, साथ ही यूक्रेन का समर्थन जारी रखने में उनकी उदासीनता, विदेश नीति के प्रति एक नए खतरनाक दृष्टिकोण को दर्शाती है। बारीकी और नफासत से होनेवाली वार्ताओं के बीच खुली धमकियों की ओर यह बदलाव पारंपरिक कूटनीतिक तरीकों के टूटने का संकेत है।
ट्रंप का व्यवहार एक ऐसी दुनिया की ओर इशारा करता है, जहां राष्ट्र अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए धमकी और जबरदस्ती का उपयोग करना बेहतर समझते हैं।
निरंतर विदेश नीति का मिथक टूटा
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक लंबे समय से चली आ रही मान्यता यह है कि नेतृत्व परिवर्तन के बावजूद राष्ट्रों की विदेश नीतियां कमोबेश बरकरार रहती हैं। ट्रंप का आचरण इस मिथक को तोड़ता है और यह प्रदर्शित करता है कि आज अंतर्राष्ट्रीय संबंध नेताओं की सनक पर अत्यधिक निर्भर हैं, तथा गठबंधन नाटकीय रूप से बदल सकते हैं। यूक्रेन के प्रति अमेरिका के रुख में अचानक बदलाव से पता चलता है कि जब कोई नया नेतृत्व पदभार ग्रहण करता है, तो विदेश नीतियां कितनी तेजी से बदल सकती हैं, जिससे दीर्घकालिक संबंध अस्थिर हो सकते हैं।
यूक्रेन को और अधिक समर्थन देने में ट्रंप की उदासीनता एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति को उजागर करती है। पहले यूक्रेन को उकसा कर और मदद देकर अमेरिका ने उसे रूस के खिलाफ अनावश्यक युद्ध में झोंक दिया। अब सीधे-सीधे मदद के बदले सौदा कर रहा है।
ट्रंप के व्यवहार ने इस धारणा को तोड़ दिया है कि अमेरिका एक वैश्विक नेता के रूप में हमेशा अपने भागीदारों का समर्थन करेगा। राष्ट्रों को अब अपनी स्वयं की सैन्य और आर्थिक शक्ति बनाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा, क्योंकि सुरक्षा और समर्थन के लिए दूसरों पर निर्भरता तेजी से अनिश्चित होती जा रही है। ये अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी की नाजुकता और एक ऐसी दुनिया में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं, जहां दोस्त जल्दी ही दुश्मन बन सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की इस नई दुनिया में, राष्ट्रों को खतरों और धमकी के शासन का मुकाबला करने के लिए एकजुट होना होगा। वर्तमान में वैश्विक मंच को आकार देने वाली शक्तियों को यह सुनिश्चित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है कि कूटनीति जबरदस्ती में न बदल जाए। राष्ट्रों को वैश्विक शक्ति की बदलती प्रकृति को पहचानते हुए सहयोग करने के तरीके खोजने होंगे।
मोदीजी ‘जेलेंस्की’ न बन जाएं
पिछले दिनों हमारे प्रधानमंत्री भी व्हाइट हाउस हो आए। ट्रंप ने टैरिफ पर धमकी हौले-हौले दी, लेकिन शुक्र है कि मोदी जी के साथ उन्होंने रियलिटी शो नहीं खेला। लेकिन इसका कोई भरोसा नहीं कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा। ट्रंप के निकटवर्ती सहयोगियों को अगर मोदीजी और भारत से अपेक्षित फायदा नहीं हुआ, तो मोदी जी का ‘जेलेंस्की’ होते देर नहीं लगेगी। एलन मस्क टेसला कार और स्टारलिंक पर भारत में अपने पांव पसारना चाहते हैं, जो भारत के कई उद्योगपतियों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। खतरे की जद में मोदीजी के कुछ करीबी उद्योगपति भी हैं। मोदीजी के सामने यह बहुत बड़ी चुनौती है। इस दबावतंत्र के अलावा, अमेरिका से किसी भी तरह की मदद या सहयोग को भूल जाएं मोदी जी। अब तो सीधे आंख में आंख डालकर बात करने और बिजनेस डील या रक्षा सौदा करने की जरूरत है। सबसे पहले एफ-३५ का सौदा रद्द करने की जरूरत है और अपने स्वदेशी हथियार विकसित करने होंगे। ट्रंप की हरकतों से सबक लेना होगा और यह स्पष्ट है कि भारत को अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने और अनिश्चित दुनिया में अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आर्थिक विकास को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
(लेखक कई पत्र पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और
वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)

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