सामना संवाददाता / मुंबई
लातूर, सांगली, पुणे, नांदेड, छत्रपति संभाजी नगर, सोलापुर जिलों में लगभग १४ लड़कियों को अनाथ साबित करने के लिए सरकारी कार्यालयों के दरवाजों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। माता-पिता के बारे में कुछ भी जानकारी न होने के बावजूद इन लड़कियों को उनके माता-पिता के मृत्यु प्रमाणपत्र लाने के लिए कहा गया है। महिला व बाल विकास विभागीय उपायुक्तों ने भी हाथ उठा लिए हैंै, जिसके कारण माता-पिता के बिना पढ़ी इन लड़कियों को १२ महीने बाद भी अनाथ प्रमाणपत्र नहीं मिला है। ऐसे में विभागीय उपायुक्तों की इस अजीबोगरीब कार्रवाई और कामकाज पर सवाल उठने लगे हैं।
उल्लेखनीय है कि राज्य के बाल गृहों में वर्तमान में १० हजार से अधिक बच्चे हैं, जिनमें से कुछ के माता-पिता में से एक, तो कुछ के दोनों ही नहीं हैं। इसके साथ ही कई के माता-पिता किसी अपराध में जेल में हैं। कई के एचआईवी से पीड़ित हैं। कई के गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं, तो कई के माता-पिता दोनों ही दिव्यांग हैं। इनमें से लगभग ६०० बच्चों के माता-पिता नहीं हैं। कुछ को बचपन में ही बाल गृह में छोड़ दिया गया है। कुछ बच्चे अलग-अलग जगहों पर खुले में पाए गए हैं। इस बीच १८ साल पूरे होने के बाद बाल गृह से आगे की पढ़ाई के लिए निकलीं १४ लड़कियों ने अलग-अलग जगहों पर अनाथ प्रमाणपत्र नहीं मिलने की शिकायतें की हैं। यह मुद्दा कल विधान परिषद में सदस्यों ने प्वाइंट ऑफ ऑर्डर के तहत उठाया, जिस पर जांच कर कार्रवाई करने का आदेश सभापति राम शिंदे ने दिया।
विभागीय उपायुक्तों को पत्र,
फिर भी जानकारी नहीं मिली
पुणे के सनाथ वेलफेयर फाउंडेशन की गायत्री पाठक ने पहल करते हुए महिला व बाल विकास आयुक्तालय से संपर्क किया और संबंधित अधिकारियों के सामने स्थिति रखी। उस समय उपायुक्त राहुल मोरे ने विभाग के सभी विभागीय उपायुक्तों को पत्र भेजकर उनसे अनाथ प्रमाणपत्र नहीं मिलने वालों की जानकारी मांगी। प्रमुख पांच मुद्दों पर उपायुक्त मोरे ने जानकारी मांगी, लेकिन दस दिन बीत जाने के बाद भी विभागीय उपायुक्तों की ओर से महिला व बाल विकास आयुक्तालय को कोई जवाब नहीं मिला।