– जीवित रहने तक नहीं बदलेगा सांसों का आना-जाना
– सांस के साथ जुड़कर जिंदगी बदलने का दिया सुझाव
सामना संवाददाता /मुंबई
अंतर्राष्ट्रीय वक्ता, लेखक और शांतिदूत प्रेम रावत ने ९ मार्च को देहरादून के परेड ग्राउंड में हजारों श्रोताओं को संबोधित किया। उन्होंने जीवन के मूल सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस संसार में सब कुछ बदल जाता है, लेकिन जब तक तुम जीवित हो, सांसों का आना-जाना नहीं बदलेगा। यह बनाने वाले की कृपा है। इसलिए इस सांस के साथ जुड़ना सीखो, तब जिंदगी बदल जाएगी, अच्छी हो जाएगी।
उन्होंने यह भी बताया कि उनके संदेश पर आधारित ‘पीस एजुकेशन प्रोग्राम’ दुनियाभर में पांच लाख से अधिक लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाया है।
तीन बार गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम है दर्ज
– स्वयं की आवाज’ पुस्तक के वाचन में सबसे अधिक उपस्थिति (१,१४,७०४ लोग)।
– एक संबोधन में सबसे अधिक दर्शकों की संख्या (३,७५,६०३ लोग)।
– ‘एक से अधिक लेखक पुस्तक वाचन’ में सर्वाधिक दर्शकों की संख्या (१,३३,२३४ लोग)।
इन उपलब्धियों के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें २०१२ का एशिया पैसिफिक ब्रांड लॉरिएट लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड शामिल है। यह सम्मान पहले नेल्सन मंडेला और स्टीव जॉब्स को दिया जा चुका है।
द प्रेम रावत फाउंडेशन और सामाजिक कार्य
प्रेम रावत ‘द प्रेम रावत फाउंडेशन’ के संस्थापक भी हैं, जो भोजन, पानी और शांति जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का कार्य करता है। इसकी ‘जन भोजन’ पहल भारत, नेपाल, घाना और दक्षिण अप्रâीका में प्रतिदिन जरूरतमंद बच्चों और बीमार वयस्कों को पौष्टिक भोजन प्रदान करती है।
उनके व्याख्यानों पर आधारित ‘पीस एजुकेशन प्रोग्राम’ १,४०० से अधिक शैक्षिक एवं अन्य संस्थानों में चलाया जाता है, जिससे अब तक ५ लाख से अधिक लोग लाभान्वित हुए हैं। यह कार्यक्रम १,००० से अधिक जेलों में भी संचालित हो रहा है, जिससे वैâदियों में दोबारा अपराध करने की संभावना कम हुई है। उनकी किताबें ‘स्वयं की आवाज’ और ‘शांति संभव है’ दुनियाभर में सराही गई हैं।
प्रेम रावत वैश्विक शांतिदूत
१९७० के दशक में एक बाल प्रतिभा और युवा आइकन के रूप में शुरुआत करने वाले प्रेम रावत ने करोड़ों लोगों को स्पष्टता, प्रेरणा और जीवन के प्रति गहरी समझ दी है। उनके संदेश ११० से अधिक देशों में सुने जाते हैं, जहां वे हर व्यक्ति को आशा और शांति का मार्ग दिखा रहे हैं। उनके कार्यों को दुनियाभर में सराहा गया है।