नरेंद्र गुप्ता
आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि और प्रदूषण की समस्याओं से जूझ रही है, तब यह समझना अत्यंत आवश्यक हो गया है कि पर्यावरण और जीव-जंतु एक-दूसरे के पूरक हैं। यदि हम अपने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, तो इसका सबसे पहला और गहरा असर जीव-जंतुओं पर पड़ता है और जब जीव-जंतु संकट में आते हैं, तो अंतत: मानव जीवन भी संकटग्रस्त हो जाता है।
पर्यावरण में हर तत्व वृक्ष, जल, वायु, पशु-पक्षी एक-दूसरे से गहराई से जुड़ा हुआ है। यदि हम वृक्षों की कटाई करेंगे या नदियों को प्रदूषित करेंगे, तो इससे न केवल मानव जीवन प्रभावित होगा, बल्कि पशु-पक्षियों का जीवन भी संकट में पड़ जाएगा। इसीलिए पर्यावरण की रक्षा करना भी जीवदया का ही एक रूप है। पर्यावरण वह प्राकृतिक तंत्र है, जिसमें हम सभी जीवित प्राणी रहते हैं, इसमें पेड़-पौधे, जल, वायु, मिट्टी, सूर्य का प्रकाश और समस्त जीव-जंतु शामिल हैं। जीव-जंतु इस पर्यावरण पर पूरी तरह निर्भर रहते हैं।
भोजन के लिए शाकाहारी जीव पेड़-पौधों पर निर्भर हैं और मांसाहारी जीव अन्य जानवरों पर। आश्रय के लिए जंगल, गुफाएं, झीलें, पहाड़, पेड़ आदि उनके घर होते हैं।
प्रजनन और जीवन-चक्र भी मौसमी और पर्यावरणीय कारकों से जुड़ा होता है। यदि इन तत्वों में से कोई भी नष्ट होता है, तो जीव-जंतुओं का जीवन संकट में पड़ जाता है।
जब मनुष्य प्रकृति का दोहन करता है जैसे पेड़ों की कटाई, प्लास्टिक का अंधाधुंध उपयोग, नदियों को प्रदूषित करना, वनों की अंधाधुंध कटाई तो इसका सीधा असर लाखों जीवों पर पड़ता है। बाघ, हाथी, भालू जैसे वन्य जीव अपने प्राकृतिक घर से बेघर हो जाते हैं और मानवीय बस्तियों में आकर मारे जाते हैं। प्लास्टिक खाने से समुद्री जीव मर जाते हैं। कई मछलियों की प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं। जैसे केंचुआ मिट्टी को उपजाऊ बनाता है, मधुमक्खियां परागण करती हैं। अगर पर्यावरण और जीव-जंतु नष्ट होंगे, तो हमारा अस्तित्व भी नहीं बचेगा। जीवदया और पर्यावरण संरक्षण दो अलग विषय नहीं हैं। ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अगर हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुंदर, सुरक्षित और संतुलित दुनिया छोड़ना चाहते हैं, तो अभी से जागरूक बनें और दूसरों को भी जागरूक करें। ‘धरती सिर्फ इंसानों की नहीं है, यह सब जीवों की साझी धरोहर है।’