सूफी खान
आज ईद उलअजहा है। आम भाषा में भारतीय से बकरा ईद कहते हैं। दरअसल, कुर्बानी या सेक्रिफाइस का ये दिन हज के नियमों का एक हिस्सा है और ये इस्लाम से भी ढाई हजार साल पहले से जारी है। बाद में हज को इस्लाम के पांच स्तंभों में भी जगह मिली। इस्लाम पांच नियमों पर आधारित है शहादा, नमाज, जकात, रोजा और हज। हज के लिए कहा गया कि वो मुस्लिम जो शारीरिक और आर्थिक रूप से मजबूत है, उससे उम्मीद की जाती है कि वो अपने जीवन में कम से कम एक बार हज जरूर करें। इस्लामिक वैâलेंडर के १२ वें महीने जिलहिज्जा की ८ वीं तारीख से लेकर १२ वीं तारीख तक हज के अरकान पूरे किए जाते हैं।
ईद उलअजहा पर आज हज के फाइनल अरकान या नियम पूरे किए जा रहें हैं। हज का जिक्र इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद साहब से भी पहले से है यानी उनसे भी करीब ढाई हजार साल पहले पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के जमाने से मिलता है। काबा का निर्माण पैगंबर इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल ने किया था। हज के दौरान की जाने वाली रस्म कुर्बानी उस घटना की याद दिलाती है, जब हजरत इब्राहिम ने अल्लाह के आदेश पर अपने बेटे इस्माइल की लगभग कुर्बानी दे दी थी। लेकिन कहा जाता है कि उसी दौरान आसमानी हस्तक्षेप हुआ और अल्लाह ने उनकी जगह एक मेंढे को रख दिया। ये इब्राहिम की परीक्षा थी। इब्राहिम, जिन्हें ईसाई धर्म और यहूदी धर्म में अब्राहम कहा जाता है। इन तीनों धर्मों में इब्राहिम या अब्राहम की बड़ी हैसियत है। भले ही दुनिया के अलग-अलग मुल्कों में वहां के कल्चर के हिसाब से मुस्लिम महिलाएं पर्दा करें या न करें मस्जिदों में जाएं न जाएं लेकिन हज के दौरान महिला और पुरुषों के दर्मियान पूरी समानता पर जोर दिया गया है। मर्द और औरतें साथ में हज की रस्मों को अदा करते हैं।