राजन पारकर
जब कोई नेता विवादों में घिर जाए, मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़े, चारों ओर से आरोपों की बौछार हो और फिर अचानक ध्यान साधना के लिए इगतपुरी की वादियों में जा बसे, तब समझ लीजिए कि सियासत अब योग-प्राणायाम की गोद में जा चुकी है।
धनंजय मुंडे नाम लो तो प्रकरण सामने आता है। कभी मंत्री, कभी अभियुक्त, कभी रक्षात्मक नेता, अब ‘ध्यानस्थ योगी’ बनकर इगतपुरी के विपश्यना केंद्र में आत्मचिंतन कर रहे हैं। यानी अब तक जो बोले-बोले, अब बाकी सब मौन।
मजा देखिए-चचेरी बहन और कट्टर प्रतिद्वंद्वी पंकजा मुंडे ने भी कह डाला, `धनंजय ने सही विकल्प चुना है।’ सही विकल्प? अब क्या पापों का प्रायश्चित करने के लिए भी जगह फिक्स करनी होगी? मंत्रालय के कॉन्प्रâेंस हॉल को ही मेडिटेशन कक्ष क्यों न बना दिया जाए?
इस ‘विपश्यना ड्रामे’ का सार कुछ यूं है:
`पद गया, प्रतिष्ठा गई, पब्लिक इमेज मिट्टी में मिल गई। अब ‘मन की शांति’ खोजने पहाड़ों में जा रहे हैं। मगर जनता पूछ रही है, ‘पहले जनता की शांति छीन ली, अब खुद ध्यान कर रहे हो?’
इगतपुरी की कुहासेदार वादियों में ध्यान लग रहा है या अगली राजनीतिक चाल की स्क्रिप्ट तैयार हो रही है, ये तो वक्त बताएगा। लेकिन इतना पक्का है कि ये `विपश्यना यात्रा’ एक तरह से छवि सुधारने की ब्रैंड वॉशिंग प्रक्रिया लगती है।
साबुन नया है, लेकिन दाग तो पुराने ही हैं।
अब जनता कह रही है:
`नेता ध्यान कर रहे हैं और जनता संकट में ध्यान मग्न है-कब गैस मिलेगी, कब राशन आएगा!’
तो कहना पड़ेगा
राजनीति में आना आसान है, पर मन की शांति पाना बड़ा कठिन।
`जब राजनीति तप बन जाए और तपस्या सियासत-तब समझो देश को ध्यान की नहीं, जवाबदेही की जरूरत है।’