-मुरारी बापू ने भी कथा के दौरान मांगी माफी
उमेश गुप्ता/वाराणसी
संत मुरारी बापू का सदैव पलके बिछाकर स्वागत करने काशीवासी इन दिनों बापू के काशी में नौ दिवसीय मानस सिंदूर कथा और बाबा विश्वनाथ के दरबार में जलाभिषेक किए जाने को लेकर नाराज हैं। यहां तक कि बापू का प्रतीक पुतला तक फूंक डाला। इसके पीछे इनका तर्क है कि संत मुरारी बापू अपनी पत्नी नर्मदाबा के निधन के तीन दिन बाद ही काशी आए हैं जो शास्त्रों के अनुसार इनका सूतक काल है, लेकिन वे इस दौरान बाबा विश्वनाथ के दरबार में न सिर्फ दर्शन पूजन किए बल्कि नौ दिवसीय श्री राम कथा का प्रवचन भी कर रहे हैं जो शास्त्रो के अनुसार वर्जित है।
दूसरी ओर इन विरोधी के बीच राम कथा के दूसरे दिन मुरारी बापू ने सूतक को लेकर मचे विवाद पर माफी मांगी। उन्होंने कहा, “मेरी पत्नी के निधन के बाद यदि किसी को मेरे दर्शन या कथा कहने से ठेस पहुंची हो, तो मैं क्षमा चाहता हूं। इसके लिए मानस क्षमा कथा भी कहूंगा। मैं प्रभु की कथा करता रहूंगा, यही मेरा संकल्प है।”
गौरतलब है कि मोरारी बापू की यह 958वीं राम कथा है, जो 22 जून तक चलेगी। पत्नी के निधन के महज तीन दिन बाद बापू ने बाबा विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन किया था, जिससे स्थानीय सनातनी समुदाय ने आपत्ति जताई थी। उनका कहना था कि परिजन के निधन के बाद सूतक काल लगता है, जिसमें पूजा-पाठ और धार्मिक प्रवचन नहीं होते।
इस विरोध में कुछ लोगों ने अस्सी चौराहे पर मुरारी बापू का पुतला भी फूंका। जवाब में बापू ने कहा था, “हम वैष्णव हैं। जो नियमित रूप से पूजा-पाठ करते हैं, उन पर सूतक लागू नहीं होता। भगवान का भजन करना शांति देता है, विवाद नहीं।”
हालांकि, अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने मोरारी बापू की आलोचना करते हुए कहा, “सूतक काल में कथा करना निंदनीय है। यह धर्म से हटकर केवल अर्थ की चाह का संकेत है, जो समाज के लिए गलत उदाहरण है।”
दरअसल, बापू ने अपनी पत्नी के निधन के महज तीन दिन बाद काशी आकर बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए थे और कथा भी शुरू की थी। इसे लेकर कई सनातनी संगठनों और संतों ने कड़ा विरोध जताया था। विरोध करने वालों का कहना था कि सूतक काल में पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान नहीं किए जाते, लेकिन मुरारी बापू ने परंपरा को तोड़ा।
स्वामी जी ने आगे कहा, “मुरारी बापू को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वे ब्रह्मचारी, ब्रह्मनिष्ठ या राजा किस श्रेणी में आते हैं, जिन्हें सूतक नहीं लगता? यदि वे संन्यासी हैं, तो क्या उन्होंने जीवित रहते हुए अपना पिंडदान किया है? यह सब समाज को भ्रमित करने जैसा है।”
बता दे कि सूतक काल वह अवधि होती है जिसमें परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु के बाद कुछ दिनों तक धार्मिक कार्यों को वर्जित माना जाता है। सनातन परंपरा के अनुसार, इस दौरान मंदिर जाना, पूजा करना, कथा कहना वर्जित होता है। मोरारी बापू की ओर से इस परंपरा का उल्लंघन करने के आरोप लगाए जा रहे हैं।