डॉ. रमेश ठाकुर
प्रवासियों ने अपने हिस्से का थोड़ा-थोड़ा हिंदुस्तान जोड़कर सिंगापुर में भी है एक छोटा सा ‘भारत’ बसाया हुआ है। ‘लिटिल इंडिया’ कहते हैं उसे, जो वहां बसे भारतीय मूल के लोगों और सनातनी पर्यटकों के लिए सदैव खास स्थान रहा है। ‘लिटिल इंडिया’ को लेकर एक किताब लिखी गई है, जिसे पढ़कर दुनिया के लोग और ज्यादा जान पाएंगे। उस स्थान को लेकर किताब में न सिर्फ दोनों देशों की साझा संस्कृति, बल्कि उसमें सामाजिक परिवर्तन, प्रारंभिक जीवन, परिसर में आयोजित होने वाले तीज-त्योहारों, आकर्षण के विभिन्न केंद्र, महत्वपूर्ण जगहें और प्राचीन काल में व्यापार करने दौरान उत्पन्न हुई चुनौतियों के संबंध में विस्तार से विवरण किया है। 1970 से पहले इस जगह को ‘सेरंगून रोड’ कहते थे।
किताब का नमा ‘लिटिल इंडिया एंड द सिंगापुर इंडियन कम्युनिटी: थ्रू द एजेस’ है, जिसका बीते दिनों भारतीय उच्चायुक्त शिल्पक अम्बुले और सिंगापुर के पूर्व विदेश मंत्री जॉर्ज यो द्वारा संयुक्त रूप से विमोचन किया गया। सिंगापुर में भारतीयों की आबादी इस समय करीब 6 लाख 50 हजार के आस-पास है, जो वहां की कुल आबादी का 10 फीसदी हिस्सा है। ये आबादी तीसरी सबसे बड़ी जातीय समूह में भी शुमार है। किताब सन-1822 में ‘लिटिल इंडिया’ परिसर के मुख्य मार्ग सेरंगून रोड की स्थापना से लेकर अभी तक के कार्य-कलापों का विवरण प्रस्तुत करती है कि किस प्रकार वहां भारतीयों ने वाणिज्यिक और सांस्कृतिक विधा में खुद को चुनौतियों का सामना करके स्थापित किया था।
‘लिटिल इंडिया’ को लेकर 187 पन्नों की लिखी पुस्तक की लेखिका का नाम ‘सौंदरा नायकी वैरावन’ है, जो विश्व प्रसिद्ध राइटर हैं। उन्होंने इससे पहले भी भारतीयों पर आधा दर्जन से अधिक किताबें लिखी हैं। किताब के प्रत्येक पन्नों में उन पहलुओं का वर्णन किया गया है कि कैसे ‘लिटिल इंडिया’ का सिंगापुर में निर्माण हुआ और किसने उस जगह की नींव रखी थी। इसलिए कह सकते हैं कि ये पुस्तक भारतीय समुदाय के लोगों की गतिविधियों का दस्तावेज है। शुरुआती दिनों में ‘लिटिल इंडिया को बसाने में सिर्फ भारतीयों ने ही बिना स्थानीय सहयोग से अपनी भूमिकाएं निभाई। पर उसके बाद वहां की हुकूमत ने बजट आवंटन में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। चुनावों में प्रत्येक सियासी दल भारतीय मूल के वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। सियासी दल बकायदा अपने घोषणा पत्रों में ‘लिटिल इंडिया’ को और विस्तार देने का वादा करते हैं।
ये स्थान इतना फेमस है कि सिंगापुर पहुंचने वाले तकरीबन भारतीय ‘लिटिल इंडिया’ जाना नहीं भूलते। उसका परिसर, रेस्तरां, खानपान और बनावट में भारतीय संस्कृति की खुशबू आती है। भवन में कार्यरत अधिकांश भारतीय ही हैं। इसमें जो होटल हैं, जिनमें प्रत्येक भारतीय व्यंजन मिलते हैं। कहा जाता है कि तमिलनाडु निवासी नारायण पिल्लई सिंगापुर पहुंचने वाले पहले भारतीय थे। सन 1824 में सिंगापुर में मात्र 756 भारतीय रहते थे, लेकिन उसके बाद भारतीयों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ। सभी जानते हैं कि सिंगापुर एक समृद्ध और विविधता से लबरेज देश है, जो दुनिया के देशों का गहरा प्रतिबिंब है। गहरे संबंधों की मजबूत और खूबसूरत गांठें ऐसी बंधी हुई हैं, जो भारत-सिंगापुर को एक सूत में सदियों से बांधी हुई हैं। लिटिल इंडिया का क्षेत्रफल करीब 45 एकड़ में है, जिसके भीतर मंदिर, गुरुद्वारा, मस्जिद व गिरिजाघर भी हैं। देशी मसालों से बनी तरकारियों के जायकों की खुशबू भी फैली होती है।