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हेट स्पीच केस में अब्बास अंसारी को 2 साल की सजा व 3 हजार रुपए का जुर्माना…विधानसभा की सदस्यता भी समाप्त होगी!

मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ

मऊ जिले की कोर्ट ने हेट स्पीच मामले में शनिवार को सुभासपा विधायक अब्बास अंसारी को दो साल की सजा व तीन हजार का अर्थदंड लगाया है। 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान नफरती भाषण और चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन के मामले मे सजा सुनाई गयी है। सीजेएम डाॅ. केपी सिंह ने मामले में पक्षकारों की बहस सुनने के बाद फैसला के लिए 31 मई की तिथि नियत की थी। प्राप्त जानकारी के अनुसार, मामला शहर कोतवाली क्षेत्र का है। मामले में अभियोजन के अनुसार एसआई गंगाराम बिंद की तहरीर पर शहर कोतवाली में एफआईआर दर्ज की गई थी। इसमें सदर विधायक अब्बास अंसारी और अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया था।
आरोप था कि बीते तीन मार्च 2022 को विधानसभा चुनाव के दौरान सदर विधानसभा सीट से सुभासपा के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे अब्बास अंसारी ने हेट स्पीच दिया। नगर के पहाड़पुर मैदान में जनसभा के दौरान उन्होंने मऊ जिला प्रशासन को चुनाव के बाद हिसाब-किताब करने और इसके बाद सबक सिखाने की धमकी भी मंच से दी गई थी। इसी मामले में अब्बास के साथी मंसूर अंसारी को भी सजा सुनाई गई है। धारा 120बी भादवि के तहत उसे छह माह की सजा और एक हजार रुपए अर्थदंड लगाया गया है।
धारा-120 बी, भादवि, आपराधिक षड्यंत्र, धारा- 153 ए, भादवि, धर्म, मूलवंश, जन्म स्थान, निवास स्थान, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन और सौहार्द्र बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला कार्य करना, धारा-189 भादवि, लोक सेवक को क्षति कारित करने की धमकी,
धारा-171 एफ भादवि, निर्वाचनों में असम्यक असर डालने या प्रतिपरूपण के लिए दंड, धारा-506 भादवि, आपराधिक अभित्रास के लिए दंड
जानकारों के अनुसार, जनप्रतिनिधियों को न्यूनतम दो वर्ष व उससे अधिक की सजा के स्थिति में उनको अपने निर्वाचित सदस्यता से मुक्ति मिल जाती है। सदस्यता समाप्त हो जाता है। चूंकि अब्बास अंसारी विधानसभा का सदस्य है इसलिए इस संबंध में विधानसभा अध्यक्ष नोटिफिकेशन जारी करेंगे। नोटिफिकेशन में आज की तारीख से सदस्यता रद्द होने का जिक्र रहेगा। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के अनुसार अगर सांसदों और विधायकों को किसी भी मामले में 2 साल या उससे ज्यादा की सजा हुई है तो ऐसे में उनकी सदस्यता (संसद और विधानसभा से) रद्द हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह दिशानिर्देश जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) निरस्त कर दिया है। हालांकि, कोर्ट ने प्रत्याशियों को एक राहत जरूर दी है, जिसके तहत अगर सदस्य फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाता और फैसला पक्ष में आता है तो सदस्यता स्वत: ही वापस हो जाती है।

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