‘गोद’ की आड़ में ‘रेट’ हुआ फिक्स
रामदिनेश यादव / मुंबई
राज्य की महायुति सरकार हर सरकारी संस्थानों में निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। एक तरफ जहां कर्मचारियों को ठेके पर भर्ती किया जा रहा है तो वहीं बड़े पैमाने पर टेक्निकल कार्यों को भी ठेके पर कराया जा रहा है। अब राज्य में उद्योग और रोजगार को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले आईटीआई संस्थानों को भी निजीकरण की धारा में बहाने का निर्णय सरकार ने लिया है। सरकार ने प्रदेश के ४२२ आईटीआई संस्थानों को निजी संस्थाओं को गोद देने के नाम पर बेचने की साजिश शुरू की है। ऐसा आरोप शिक्षाविदों की ओर से लगाया गया है। जानकारों की मानें तो इन आईटीआई संस्थाओं को आधुनिकीकरण के नाम पर निजी संस्थानों को दे दिया जाएगा। इन संस्थानों को १० साल के लिए १० करोड़ रुपए में और २० साल के लिए २० करोड़ रुपए में पीपीपी मॉडल के तहत देने का निर्णय लिया गया है।
मंगलवार को हुए वैâबिनेट की बैठक में यह पैâसला लिया गया है। सरकार की ओर से हवाला दिया गया है कि इन संस्थाओं के आधुनिकीकरण के लिए पीपीपी मॉडल के तहत निजी संस्थानों को दिया जाएगा। इस नीति को कल कैबिनेट की बैठक में सरकार ने मंजूरी दे दी है। इस निर्णय को लेकर सरकार पर यह आरोप लग रहा है कि सरकार आईटीआई संस्थाओं के निजीकरण की दिशा में आगे बढ़ रही है।
इस नीति के कार्यान्वयन के लिए महाराष्ट्र इंस्टीट्यूट फॉर ट्रान्सफॉर्मेशन को रणनीतिक भागीदार के रूप में नियुक्त किया गया है। औद्योगिक संगठन, कंपनियां या उनके ट्रस्ट, राज्य या केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रम और स्वयंसेवी संस्थाएं इस भागीदारी में शामिल हो सकती हैं। भागीदारी के लिए समय और राशि तय की गई है। किसी संस्था को १० वर्षों के लिए गोद लेने हेतु कम से कम १० करोड़ रुपये और २० वर्षों के लिए कम से कम २० करोड़ रुपये निवेश करने होंगे। हालांकि, आईटीआई की जमीन और इमारत का स्वामित्व सरकार के पास ही रहेगा।
खरीदारी के लिए अनुमति जरूरी नहीं
आईटीआई के आधुनिकीकरण के लिए नई तकनीक आधारित प्रशिक्षण और पाठ्यक्रम शुरू करने हेतु भागीदार कंपनियों को अतिरिक्त स्टाफ नियुक्त करने की छूट दी गई है। इसके अलावा, नए भागीदारों को उपकरण, सामग्री की खरीद और नवीनीकरण के लिए खुले बाजार से खरीदारी और निर्माण करने की अनुमति दी जाएगी और इसके लिए सरकारी निविदा प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक नहीं होगा। हर आईटीआई संस्थान में एक निगरानी समिति नियुक्त की जाएगी, जिसमें नया निजी भागीदार अध्यक्ष होगा, जबकि संस्था के प्राचार्य, उप-प्राचार्य या सरकार द्वारा नियुक्त व्यक्ति सचिव की भूमिका निभाएंगे।