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उत्तर की बात : गांधी परिवार की पुश्तैनी सीट रायबरेली से कौन मोर्चा संभालेगा!

रोहित माहेश्वरी लखनऊ

कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राजस्थान से राज्यसभा के लिए नामांकन कर दिया। इसके बाद यह साफ हो गया है कि सोनिया गांधी इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि अगर इस बार सोनिया गांधी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने वाली हैं तो रायबरेली से उनकी जगह कौन इस सीट पर चुनाव लड़ेगा? माना जा रहा है कि सोनिया गांधी की जगह गांधी परिवार के ही किसी बड़े चेहरे को मैदान में उतारा जा सकता है। इस रेस में प्रियंका गांधी का नाम सबसे आगे है। हालांकि, कांग्रेस नेता कई बार कह चुके हैं कि प्रियंका गांधी कब और किस सीट से चुनाव लड़ेंगी या नहीं इसका पैâसला वो खुद ही लेंगी।
पार्टी के अंदरखाने से छनकर खबरें आ रही हैं कि यूपी से गांधी परिवार से सिर्फ दो लोग ही लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। ऐसे में प्रियंका गांधी और राहुल गांधी यूपी से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। राहुल अमेठी से चुनाव लड़ते आए हैं। पिछली दफा वो चुनाव हार गए थे। रायबरेली से प्रियंका गांधी के चुनाव मैदान में उतरने की चर्चाएं गरम हैं। प्रियंका उत्तर प्रदेश की प्रभारी भी रह चुकी हैं।
आजादी के बाद से हुए १७ चुनावों में से रायबरेली में केवल तीन बार पार्टी की हार हुई है। गांधी परिवार से कौन लोकसभा लड़ेगा, कौन राज्यसभा जाएगा, कौन नहीं लड़ेगा इस पर परिवार में चर्चा हुई है। अगर सोनिया गांधी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी तो यूपी की रायबरेली सीट से कौन चुनाव लड़ने वाला है? पार्टी की यह सुरक्षित सीट है और ये कांग्रेस का गढ़ है। हालांकि, भाजपा ने अमेठी को कांग्रेस से छीन लिया था।
बात अगर रायबरेली सीट की की जाए तो रायबरेली संसदीय सीट गांधी परिवार का गढ़ माना जाता है। २०१४ के मोदी लहर में भी कांग्रेस इस सीट से नहीं हारी। सोनिया गांधी २००६ से लगातार इस सीट से जीतती आ रही हैं। इस सीट से फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी भी सांसद रह चुकी हैं। ऐसे में अगर प्रियंका को संसद में भेजना है तो यह सीट काफी मुफीद मानी जा रही है।
सोनिया गांधी लगातार चार बार रायबरेली से जीत चुकी हैं, पर उनके वोट प्रतिशत में गिरावट आती जा रही है। २००४ में उन्हें इस इलाके से ८०.४९ प्रतिशत वोट मिले, जो २००९ में ७२.२३, २०१४ में ६३.८० और २०१९ में ५५ प्रतिशत रह गए। २०१९ में लोकसभा सीट जीतने के बावजूद २०२२ के विधानसभा चुनाव में रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इसका मतलब है कि संगठन स्तर पर भी पार्टी में गिरावट है। २०१४ की सोनिया की बढ़त ३,५२,७१३ को २०१९ में १,६७,१७८ पर पहुंचाकर भाजपा कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बजा चुकी है। एक ओर सोनिया गांधी का अपने निर्वाचन क्षेत्र से घटता संपर्क और दूसरी ओर प्रांत-केंद्र कहीं भी अपनी सरकार नहीं होने के कारण स्थानीय कांग्रेसियों का टूटा मनोबल पार्टी के लिए २०२४ की चुनौती को और कठिन बना रहा है।
भाजपा उन सीटों पर तो ध्यान दे ही रही है, जिन पर २०१९ में उसे जीत मिली थी, साथ ही उन १४ को जीतने की योजना भी बना रही है, जहां उसे हार मिली थी। इन १४ में रायबरेली भी शामिल है, जो फिलहाल कांग्रेस का अंतिम गढ़ है। २०१९ में अमेठी में राहुल गांधी की हार के बाद से भाजपा के हौसले बढ़े हुए हैं। इंडिया गठबंधन के घटक दलों कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच सीटों को लेकर बंटवारे की बात अभी फाइनल नहीं हुई है। प्श्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख घटक दल रहे रालोद के बदले रुख के चलते भी इंडिया गठबंधन की मुश्किलें थोड़ी बढ़ी हैं।
राजनीति के जानकारों का यह कहना है कि राहुल और प्रियंका अगर यूपी से मैदान में उतरते हैं तो इससे देशभर में बड़ा मैसेज तो जाएगा ही वहीं पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। रायबरेली के वोटरों ने क्या तय किया है, यह भविष्य ही बताएगा लेकिन प्रतिद्वंद्वी भाजपा चुनौती के लिए वर्षों से तैयारी में है। सोनिया के मुकाबले २०१९ में पराजित हुए दिनेश प्रताप सिंह को योगी सरकार में मंत्री बनाया गया है। केंद्र-प्रांत की भाजपा सरकारें रायबरेली के वोटरों को रिझाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही हैं। प्रियंका को इसकी काट के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि प्रियंका गांधी अगर चुनाव मैदान में उतरेंगी तो विपक्ष के लिए भी चुनौती बड़ी हो जाएगी। प्रियंका की पहचान एक जुझारू नेता की है और युवाओं में वो काफी लोकप्रिय भी हैं।
(लेखक स्तंभकार, सामाजिक, राजनीतिक मामलों के जानकार एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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