मुख्यपृष्ठस्तंभअवधी व्यंग्य : गुमशुदा चकरोट

अवधी व्यंग्य : गुमशुदा चकरोट

एड. राजीव मिश्र मुंबई

लड़िका के समझावै के बाद भी हंसराज गाँव के चकरोट धीरे-धीरे काट के अपने खेत मा मिलाय लिहेन। एक साल बीता, दुइ साल बीता अब चकरोट के उही पार बस्ती बसै लगी। नई बस्ती में से एक लड़िका से हंसराज के पड़ोसी शाम के चाय के दुकान पे मिलि गए अउर पुछि बैठे, का भईया घर बनि गवा? हाँ चच्चा, घर तो बनि गवा पर इहै आवै जाये के रास्ता नही है। कइसौ डाँड़-मेड़ पर गिरत-परत घर पहुँचि जात हैं लोग। अरे, तुम्हरी बस्ती में तो बीस कड़ी के चकरोट है। कहाँ है चच्चा? उ तो हंसराज के खेत मा पातर छीर बा उही के सहारे केहू तरे घर मा जाए के मिलि जात है। अरे भैया जाय के नक्शा देखो लेखपाल के इहाँ, पूरे पार बीस कड़ी के चकरोट गौरमिंट दिहे है। इतना सुनतै लड़िका मानो चकराय गवा। तो चच्चा चकरोट कहाँ गवा? देखो भैया हम यहि कुल मा नही परत हैं अब तोहका बताय दिहे हैं। अब तोहार काम है गाँव के नक्शा में आपन चकरोट ढूढों जायके। लड़िका चाय के दुकान से उठा अउर और बात के बात मा गाँव के लेखपाल विष्णु नरायन के बिस्तरा पर पहुँचि गवा। लेखपाल साहेब ऊपर से नीचे तक देखिके पुछि परे, वैâसे पधार्‍यो लंबरदार? साहेब, जरा देखो हमरे बस्ती में जाये के कउनो चकरोट दर्ज है का नक्शा मा। लेखपाल साहेब तुरतय नक्शा में नजर गड़ाय के देखे तो बस्ती में बीस कड़ी के चकरोट निकला? अब सवाल ई खड़ा भवा कि दुई साल मा चकरोट कहाँ गायब हुई गवा? लेखपाल साहब धीरे से कान में कहिन, अइसा है एक ठो जनसुनवाई पे शिकायत करो तोहार चकरोट मिलि जाई। चार दिन बाद लेखपाल हंसराज के डाँड़ पे जरीब लिए खड़े रहे तब तक केहू हंसराज के बताईस कि दद्दा तोहरे खेत मा नाप होत है। एतना सुनतै हंसराज खेत पर पहुँच के लेखपाल के हड़कावय लागे। अइसा है ज्यादा पटवारीगीरी न करो, ई जरीब उठाओ अउर चलता बनो नाही तो शाम तक देखइयो न इहाँ। लेखपाल साहेब चुप्पय उहाँ से निकरे अउर थाना पे जायके हंसराज के खिलाफ भूमाफिया के केस दर्ज कराय दिहे। आज १५ दिन से हंसराज जेल में चकरोट काटि रहे हैं अउर पड़ोसी नई बस्ती में चाय-पकौड़ी उड़ाय रहा है।

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