मुख्यपृष्ठसंपादकीयप्याज निर्यात पर प्रतिबंध... मोदी सरकार का झांसा!

प्याज निर्यात पर प्रतिबंध… मोदी सरकार का झांसा!

प्याज उत्पादक किसानों ने क्या केंद्र की मोदी सरकार के घोड़े मार डाले हैं? उनका क्रूर मजाक उड़ाकर इस सरकार को कौन-सा विकृत आनंद मिलता है? अब भी कथित प्याज निर्यात प्रतिबंध अधिसूचना में गड़बड़ी कर केंद्र सरकार ने किसानों के जख्मों पर फिर से नमक छिड़कने का काम किया है। दो दिन पहले, सत्तारूढ़ दल के कुछ अति उत्साही मंडली ने घोषणा की कि प्याज निर्यात प्रतिबंध आंशिक रूप से वापस ले लिया गया है। इसका राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की। लेकिन मंगलवार को उनकी ही सरकार ने एलान किया कि ये निर्यात प्रतिबंध ३१ मार्च तक जारी रहेगा। जिसके चलते हमेशा की तरह यह मंडली अपने मुंह के बल गिर गई। उनके सिर फटने की बात छोड़िए, लेकिन प्याज उत्पादक किसानों और व्यापारियों को जो बेवजह निराशा हुई उसका क्या? क्या किसानों को यह समझना चाहिए कि सरकार ने शनिवार का अपना रुख, मंगलवार को बदल लिया? इन दो-तीन दिनों में ऐसा क्या हुआ कि केंद्र सरकार ने प्याज निर्यात पर प्रतिबंध जारी रखा? किसानों और व्यापारियों को लगा कि मोदी सरकार को उन पर दया आ गई है और इसीलिए उन्होंने ढाई महीने से उनकी गर्दन पर लटकी निर्यात प्रतिबंध की तलवार को हटाने का फैसला किया है। इसी उम्मीद से सोमवार को प्याज की दर ८०० से १,००० रुपए तक बढ़ गई। किसानों को लगा कि खरीफ के प्याज को अंत में कहीं न कहीं बढ़िया भाव मिलेगा। लेकिन हमेशा की तरह मोदी सरकार ने उसे खोखला साबित कर दिया। केंद्र सरकार के ग्राहक कल्याण विभाग के सचिव रोहित कुमार ने यह कहकर कि प्याज निर्यात पर प्रतिबंध ३१ मार्च तक जारी रहेगा, प्याज उत्पादकों और व्यापारियों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। इस निर्णय के पीछे हमेशा की तरह कारण यह बताया गया कि घरेलू प्याज की कीमतों में वृद्धि के कारण ग्राहकों को तकलीफ नहीं होनी चाहिए। सरकार आम लोगों की जेब के बारे में जरूर सोचे, लेकिन प्याज उत्पादक किसानों की जेब खाली रखी जाए, इसका अर्थ यह तो नहीं है। सरकार जनता की भी होती है और किसानों की भी। लेकिन मोदी सरकार न तो जनता की है और न ही किसानों की। आम जनता को इस सरकार ने प्याज की कीमत के बारे में जो बताया है वह भी पाखंड है। लोकसभा चुनाव सिर पर है। अब अगर इस बीच निर्यात प्रतिबंध हट गया और प्याज की कीमतें बढ़ गईं तो केंद्र के सत्ताधीशों को डर है कि प्याज उन्हें चुनाव में रुलाएगा। इसीलिए उन्होंने निर्यात प्रतिबंध बरकरार रखा, यही हकीकत है। हालांकि, लोकसभा चुनाव के दौरान ग्रीष्मकालीन प्याज के बाजार में आने की संभावना है, लेकिन इस साल रबी प्याज की खेती घटी है। इसलिए ऐन चुनावी मौसम में प्याज की कीमत और उसके साथ सत्ताधारी दल का सियासी गणित बिगड़ सकता है, ऐसा संदेह सत्ताधारियों को हुआ। जब से मोदी सरकार आई है तब से प्याज उत्पादकों को कोई न कोई जख्म देती आ रही है। आसमानी विपदा के चलते कभी प्याज फेंकने की नौबत आ जाती है तो कभी उसे औने-पौने दाम पर बेचने की नौबत आ जाती है। पिछले दस वर्षों का अनुभव यही रहा है कि प्रकृति की मार से घायल आम प्याज उत्पादक सरकार के अविवेकपूर्ण निर्णयों के ज्यादा बोझ तले दबे हुए हैं। कभी न्यूनतम निर्यात मूल्य बढ़ाना तो कभी निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर प्याज उत्पादकों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। मौजूदा निर्यात प्रतिबंध से पहले सरकार ने प्याज पर निर्यात शुल्क ४० फीसदी बढ़ाकर झटका दिया था। और उस पर निर्यात प्रतिबंध बरकरार रखकर सरकार ने अपने किसान विरोधी दांत दिखा दिए हैं। इन दो महीने के निर्यात प्रतिबंध से किसानों और व्यापारियों को करीब ढाई हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। यदि प्याज निर्यात पर प्रतिबंध हटा दिया जाता तो किसानों की झोली में खरीफ प्याज सीजन के दौरान कम से कम चार पैसे तो गिरते। लेकिन मोदी सरकार ने हमेशा की तरह किसानों की झोली खाली ही छोड़ दी है। मोदी सरकार ने हमेशा की तरह ग्राहक हित का दिखावा करने और किसानों को चोट पहुंचाने की चाल चली है और किसानों के जख्मों पर निर्यात प्रतिबंध का नमक फिर से डाल दिया है। कल किसान इसी नमक से ‘नमक सत्याग्रह’ करेंगे और वह तुम्हारे शासन का अंतिम ‘चले जाओ’ साबित होगा। प्याज निर्यात प्रतिबंध से और एक झांसा देनेवाली मोदी सरकार यह बात न भूले!

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