मुख्यपृष्ठअपराधनारीवाद की आड़ में पनपता विश्वासघात

नारीवाद की आड़ में पनपता विश्वासघात

हिमांशु राज

आज की तेजी से बदलती दुनिया में जहां एक तरफ प्रगति और आधुनिकता के झंडे गाड़े जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर समाज की नैतिक नींव धीरे-धीरे खोखली होती जा रही है। सोनम रघुवंशी जैसी घटनाएं कोई अचानक से उभरा हुआ विषय नहीं है, बल्कि ये उस सड़ांध का परिणाम है, जो लंबे समय से हमारे सामाजिक ताने-बाने में पनप रही है। जब संस्कारों की जगह भौतिकवाद ने ले ली, जब प्रेम और विश्वास की परिभाषाएं बदल गईं, तब से ऐसी विकृतियां सामने आने लगी हैं। पहले के समय में शादी को जीवनभर का बंधन माना जाता था, जहां साथ देने और सहने की भावना प्रमुख थी। आज यह बंधन महज एक अनुबंध बनकर रह गया है, जिसे किसी भी पल तोड़ा जा सकता है। रिश्तों में बेवफाई, धोखाधड़ी और हिंसा के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। कुछ लोगों के लिए शादी अब प्यार और साथ का नहीं, बल्कि पैसे और सुविधाएं हासिल करने का जरिया बन गई है। ऐसे में जब स्वार्थ ही संबंधों का आधार बन जाए, तो हत्या जैसे जघन्य अपराधों का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं रह जाती। युवाओं पर सोशल मीडिया और पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। जहां एक ओर उन्हें आजादी और खुले विचारों का पाठ पढ़ाया जाता है, वहीं दूसरी ओर उन्हें यह नहीं सिखाया जाता कि इस आजादी की भी एक सीमा होती है। नैतिकता और संयम को पुराने विचार बताकर उन्हें ताक पर रख दिया गया है। परिणामस्वरूप, आज का युवा वर्ग भ्रमित है। उसे प्यार नहीं, सिर्फ शारीरिक संबंध चाहिए, मेहनत नहीं, रातों-रात अमीर बनने का सपना चाहिए, और जिम्मेदारी नहीं, बिना रोक-टोक के जीने की आजादी चाहिए। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? क्या सिर्फ युवा पीढ़ी को दोष देना उचित होगा? शायद नहीं। समाज के हर वर्ग को अपनी भूमिका पर विचार करने की जरूरत है। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान न दें, बल्कि संस्कार और नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी दें। शिक्षा प्रणाली को चाहिए कि वह डिग्रियां देने के साथ-साथ चरित्र निर्माण पर भी ध्यान दें। सरकार और कानून व्यवस्था को चाहिए कि वह ऐसे अपराधों के खिलाफ कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान करे, ताकि दूसरों के लिए यह एक सबक बन सके। अगर समय रहते हमने इस दिशा में गंभीरता से कदम नहीं उठाए, तो आने वाले समय में ऐसी घटनाएं और भी बढ़ेंगी। सोनम रघुवंशी का मामला सिर्फ एक शुरुआत है, जिसने हमारे सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। यह सवाल सिर्फ एक अपराध या एक व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे पूरे सामाजिक ढांचे से जुड़ा हुआ है। अगर हमने अभी इस पर ध्यान नहीं दिया, तो वह दिन दूर नहीं जब ऐसी घटनाएं आम हो जाएंगी और फिर किसी के पास इन्हें रोकने का कोई उपाय नहीं बचेगा।

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