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भेलपूरी स्वादयात्रा डेढ़ सौ साल की

विमल मिश्र
मुंबई

मुंबई के स्ट्रीट फूड में वड़ा पाव के साथ पहला नाम जो आता है वह है भेलपूरी और पाव भाजी का। सैंडविच की सबसे पॉपुलर वेरायटी का तो नाम ही ‘बॉम्बे सैंडविच’ है।

मद्धिम- मद्धिम संगीत के साथ एयर कंडीशंड रेस्त्रां में टेबल पर जब थाली में तीखी-मीठी और सूखे मसाले वाली चटनियों और बारीक कटे प्याज और टमाटर के साथ सजी-संवरी भेल सामने आते ही मुंह में बरबस ही पानी आ जाता है। फोर्ट के विट्ठल भेलपूरी हाउस में यूं तो आज हर किस्म के व्यंजन मौजूद हैं, पर पहली फरमाइश होती है तो भेलपुरी की। यहां आप अपनी भेल अपने सामने बनते देख सकते हैं। यह स्वाद यात्रा जल्द ही डेढ़ सौ साल की होने जा रही है।

१८७५ में गुजरात के सूरत शहर से आकर विट्ठलदास खाडावाला ने आजाद मैदान पर शाम को सूखी भेल की रेहड़ी से इस धंधे की शुरुआत की थी। यहां सैर पर आने वाले पारसी परिवारों को यह स्वाद रुचा तो पास ही भर्डा स्कूल के पास उन्होंने इसे स्थायी रूप दे दिया। उनके बेटे प्रभुदास ने बस्तीयन मार्ग (ए. के. नाईक मार्ग) पर एक दुकान खोली। आज यह परंपरा उनके पड़पौत्र और उनके परिजन बढ़ा रहे हैं।

माटुंगा-पूर्व की विजय गुप्ता ने गुप्ताजी की भेल १९९५ में शुरू हुई। बोरा बाजार में महावीर शर्मा ने १९८८ में हरिओम भेलपूरी सेंटर शुरू किया था। आज बीकेसी में भी इसकी ब्रांच है। मालाड में एमएम मिठाईवाला, ताड़देव में स्वाति स्नैक्स, बांद्रा के हिल रोड रोड पर एल्को, विले पार्ले (पूर्व) में शर्माजी भेलपूरी हाउस, चौपाटी पर सोम, चर्चगेट पर सिडनम कॉलेज के सामने बी रोड भेलपूरी वाला, कांदिवली (पश्चिम) का जैन स्वीट ऐंड भेलपूरी हाउस। शिवाजी पार्क के गांडा (पागल) भेल वाला का चटखारा आज तक लोग भूले नहीं। स्वाद के लिहाज से यह ब्रैंड बन गया है।

पहली बार भेल कहां तैयार की गयी थी इसका स्पष्ट उल्लेख तो नहीं है, लेकिन माना जाता है कि इसकी उत्पति मुंबई के वैâफे और स्ट्रीट फूड स्टालों से हुई होगी। कच्छ से छत्रपति शिवाजी महाराज के लिए घोड़े लाने वाले साईस महाराष्ट्र की समुद्री हवा में टिक सकने वाले पदार्थ सेव-कुरमुरे और सुखड़ी से काम चलाया करते थे। यह स्वाद धीरे-धीरे महाराष्ट्रवासियों के सैनिकों की जुबान पर भी बस गया। भेल का जन्म पश्चिमी महाराष्ट्र की मसालेदार नमकीन ‘भडंग’ से भी हुआ माना जाता है। इसका का एक सूखा प्रकार आज भी बहुप्रचलित भडंग के रूप में जाना जाता है। इसके कोलकाता वर्जन को ‘झाल मूढ़ी’ और मैसूर और बेंगलुरू वर्जन को ‘चुर्मुरी’ के नाम से जाना जाता है। यह चटपटा नाश्ता आज भारत के सभी हिस्सों में मिलता है

ऐसा भी बताते हैं कि २०वीं सदी के पूर्वार्ध में उत्तर प्रदेश के लोग भेल मुंबई लाए और इसे तीखी, खट्टी व मसालेदार भेल के रूप में चौपाटी पर परोस दिया। लगभग सौ वर्ष पहले मथुरा-वृंदावन से आकर बिहारीलाल शर्मा ने यह सिलसिला जमाया चौपाटी पर। धीरे-धीरे विल्सन कॉलेज के सामने लाल छतरी के नीचे लाल डिब्बा लगाकर कई खोमचे वाले भेल बेचने खड़े हो गए। आज भेल की पहचान अक्सर मुंबई के समुद्र तटों के साथ ही की जाती है, जैसे गिरगांव या जुहू के समुद्र तट। चौपाटी के कई स्टॉलों पर आपने यहां की स्वाद यात्रा करने वाले कई फिल्म स्टार्स के फोटो लगे देखे होंगे। हाथ में मेन्यू लिए आपको तरह-तरह के मनोरंजक संबोधनों से इस तरह भरमाते हैं कि आप बरबस ही रेत पर बिछी दरियों पर आसन जमा लेते हैं। भेल खाने का मजा तिकोने कागज या पेपर प्लेट में ही है, खासकर जब इसे खाने के लिये पापड़ी का ही इस्तेमाल किया जाए। महानगर में कम से कम १०,००० भेलपूरी वाले जरूर होंगे। इनमें ८० फीसदी उत्तर भारतीय हैं। यह मुख्यत: शाम का धंधा है।
पाव भाजी

अमूल घी में तर-ब-तर पाव और घर में बने मसाले वाली जायकेदार भाजी। बड़े से तवे पर झन्न-झन्न आवाज के साथ इसे सामने बनते देखकर मुंह में पानी नहीं आए तो वैâसी पाव भाजी! फोर्ट पर वैâनन पाव भाजी, चौपाटी में सुखसागर, माटुंगा में डीपी, गिरगांव में मनोहर पाव भाजी, ताड़देव में स्वाति स्नैक्स, ताड़देव सर्किल पर सरदार… पावभाजी का जब भी जिक्र होता है, ये नाम खुद-ब-खुद जुबान पर आ जाते हैं।

दशकों पहले उत्तर प्रदेश से शिव प्रसाद मिश्र ने आकर ऑपेरा हाउस पर श्री राम पान शॉप खोली थी। पाव भाजी उस समय तक खोमचे और रेहड़ियों पर बिकने वाला मिल कामगारों का भोजन माना जाता था। शिव प्रसाद जी ने श्री राम फास्ट फूड नाम से दुकान खोलकर इसे दुकान पर बेचना शुरू किया। आज यह श्रीकृष्ण रेस्त्रां नाम से मशहूर रेस्त्रां है, जिसे उनके पड़पोते अपूर्व चलाते हैं। उनकी पाव भाजी इतनी प्रसिद्ध हुई कि यह पूरी बिल्डिंग ही श्रीराम मेंशन के नाम से प्रसिद्ध हो गई है।

मुंबई सेंट्रल स्टेशन पर १९६६ में निसार अहमद ने एक मामूली स्टाल से जो धंधा शुरू किया था वह आज…। सचिन तेंडुलकर, लता मंगेशकर और अनुपम खेर यहां के स्थायी ग्राहक रहे हैं।

मुंबई की पाव भाजी विश्व प्रसिद्ध है। पाव भाजी शब्द मराठी भाषा के ‘पाव’ और ‘भाजी’ से बना है। पाव, यानी एक प्रकार की डबल रोटी, जिसकी उत्पत्ति पुर्तगाली शब्द ‘पाओ’ से मानी जाती है और ‘भाजी’ टमाटर, फूल गोभी, शिमला मिर्च, मटर, बींस, आदि को घी अथवा मक्खन में पकाकर बनाई जाने वाली सब्जी। प्याज, टमाटर, धनिया, हरी मिर्च, अचार और चटनी की सर्विंग के साथ।

पानी पूरी और चाट

दोपहर और शाम नाश्ते के रूप में और उससे भी ज्यादा स्वाद के लिए खाया जाने वाला भोज्य पदार्थ – जिसे बनारस में ‘गोलगप्पा’, लखनऊ में ‘पानी बताशा’, हरियाणा में ‘पानी पताशी’, कोलकाता में ‘पुचका’, मध्य प्रदेश में ‘फुल्की’, असम में ‘फुस्का’, ओडिशा में ‘गुप-चुप’ जैसे नाम से जाना जाता है-मुंबई में १९५५ से ‘पानी पूरी’ नाम से प्रसिद्ध है। इसका पूरा दोना आपको २० रुपए में भी मिल सकता है और १९० रुपए (एल्को, बांद्रा) या ३३३ रुपए (एयरपोर्ट) में भी। महंगे से महंगे रेस्टोरेंट में भी मेन्यू कार्ड में आपको पानी पूरी के दर्शन हो जाएंगे। घाटकोपर के आर-सिटी जैसे मॉल पिछले कई वर्षों से पानी-पूरी फेस्टिवल का आयोजन कर रहे हैं।

उपनगरीय रेल स्टेशनों के स्टॉल पर मिलने वाली चाट की सबसे पापुलर वेराइटी है रगड़ा व समोसा पैटिस और कभी-कभी भजिया, साबूदाना वड़ा और दाल वड़ा भी। पर मुंबई में भी ‘स्ट्रीट फूड का राजा’ अगर कोई है तो पानी पूरी ही। इसे देखते ही मुंह में पानी न आए, असंभव सा है।

पानी पूरी या गोलगप्पे की उत्पत्ति लगभग १००-१२५ साल पहले उत्तर प्रदेश और बिहार में हुई मानी जाती है। ‘गोल’ शब्द आंटे से बने उस कुरकुरे आकार को संदर्भित करता है, जिसमें पानी और आलू को भरा जाता है, जबकि ‘गप्पा’ खाने की प्रक्रिया है, जिसमें पलक झपकते ही वह मुंह के अंदर घुल जाता है। पूरा का पूरा एक बार में ही खाए जाने के कारण ही इसे गोलगप्पा कहते हैं। मुंबई की पानी पूरी की पूरी अक्सर सूजी व आटे का मिक्स होती है, जबकि उत्तर भारत में आटे की। पानी पूरी २० से भी ज्यादा तरीकों से बनाई जाती है, जिनमें खट्टी पानी पूरी, मीठी पानी पूरी, तीखी पानी पूरी और दही पूरी सबसे लोकप्रिय है। खट्टी-मीठी इमली की चटनी, बूंदी, आलू, प्याज, लहसुन, मिर्ची, खट्टे आम या छोले से बने मिश्रण को पूरी में भरा जाता है और फिर ऊपर से इमली, सोंठ या आम का तीखा-खट्टा-मीठा पानी और कहीं-कहीं गुलाब जल भी डालकर परोसा जाता है। चीज कॉर्न पानी पूरी, पनीर पानी पूरी और चीज मूंग पानी पूरी इसके नए संस्करण हैं। मुंबई के कई फाइव स्टार होटलों में आप गोलगप्पे को मसालेदार पानी की जगह मिनरल वॉटर ही नहीं, स्कॉच या वाइन के साथ परोसा जाता भी देख लेंगे। स्वाद के कुछ ठिकानों पर यह मशीन से और कहीं टेस्ट ट्यूब के साथ सर्व की जाती है।

हां, अगर आपने छह गोलगप्पों की एक पूरी प्लेट खाई है तो आखिरी पूरी बोनस का लेना मत भूलिए।

(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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