प्रभुनाथ शुक्ल भदोही
हमनी के बोलेनी जा, काहे बोलेनी जा, कवना मकसद से बोलेनी जा। केकरा खातिर बोलत बानी? जब मन करे त बोलेनी जा। भले बोले के जरूरत ना होखे, तबो हमनी के बोलेनी जा। वइसे भी हमनी के समाज में ‘वात’ रोग बहुत पुरान बा। आयुर्वेद के अनुसार हमनी के शरीर में जवन भी रोग होखेला उ वात, कफ अवुरी पित्त दोष के प्रधानता के चलते होखेला। जवना के चलते हमनी के स्वास्थ्य खराब हो जाला।
आजकल हमनी के समाज में ‘बात रोग’ यानी बोलई के बेमारी तेजी से फइल रहल बा। एह बेमारी के कवनो ईलाज नइखे। लोग अचानक एह बेमारी के शिकार हो जाला। आमतौर पर सफेदपोश समाज के लोग एह बेमारी से सबसे ढेर संक्रमित होला। बात रोग के ई समस्या से समाज में नफरत फइलेला। जवना के चलते बहुत समस्या पैदा हो जाला। अयीसन लोग जिम्मेदार पद प रहला के बाद भी आपन जिम्मेदारी ना निभावले। चारण आ भक्तिकाल से प्रभावित अइसन लोग वीरगाथा काल के कविता पढ़े लागेला। एह बेमारी से पीड़ित लोग के कवनो इलाज नइखे। काहे कि जब कवनो बेमारी के संक्रमण समाज में वायरल हो जाला तब ‘वाकयुद्ध’ के स्थिति पैदा हो जाला। जब शोर-शराबा अधिक बढ़ जाला त पेट फूले के बेमारी से पीड़ित नेताजी ‘माफी’ के गोली बड़ी निर्लज्जता से निगल लेनी। जवना के नतीजा ई होला कि बेमारी के फइलल संक्रमण तनी कम हो जाला।
हमनी के कवनो बात बोले से पहिले सोचे के चाही, लेकिन जब हमनी के पद, प्रतिष्ठा अवुरी हैसियत मिलेला त फेर हमनी के सोचइ के क्षमता भी खतम हो जाला। अयीसन लोगन के रहीमदास के इ सलाह के पालन करे के चाही। ‘रहिमन जिहवा बावरी, कहि गई सरग पताल।’ आपुहि कहीं भीतर गई, जूती खात कपार।’ बोले से पहिले हमनी के सौ बेर सोचे के चाहीं कि हमनी के जवन कहे जा रहल बानी जा ओकर असर समाज पर का होई। कबीर के नीमन सलाह प भी विचार करे के चाही।’ ऐसी बानी बोलिये मन का आपा खोये, औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए।’ हमनी के एह हालात के कवनो कीमत प बचे के चाही कि ‘पोथी पढ़ी-पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर गंदे बोल कर, बड़का पंडित होय।’