नवीन सी. चतुर्वेदी
ए क घुटरूमल कम हुते जो बत्तो रानी और हमारे मत्थें मढ़ गयीं। घुटरूमल जी की दूर की रिस्तेदार हैं। मगर एक बात कहनी परैगी साब कछू कहौ बत्तो रानी हैं मन की भोरी। मन में जो होवै सो बोल मारें मतबल बोल डारें। अपनी खोपड़ी कौ कनस्तर खाली कर कें मानें। सामने वारे पै जो परै सो वौ भुगतै।
अखबार में खबर छपी कि जेल सहर’न के बीच में आय गयी हैं। अखबार उठायौ और चली आयीं हमारे पास। ढाई फुट की काया कों साढ़े चार फुट के घेरा में लहराते भये फट्ट कर कें दरबज्जौ खोलौ और झट्ट सों आय कें तखत पै बैठ गयीं। तखत हू हमारी तरें अब प्रौढावस्था कों प्राप्त है रह्यौ है। बत्तो रानी की या हरकत पै हम कुनमुनाय कें रह गये और तखत चरमराय कें रह गयौ। गनीमत है कि चारों खाने चित्त नाँय भयौ।
वे बोलीं गुरूजी, एक बात बताऔ यै तौ एकदम गलत खबर छपी है कि जेल सहर’न के बीच में आय गयीं। हमनें पूछी लाली ऐसौ क्यों लग रह्यौ है तोय? बोलीं, गुरूजी जेल सहर’न के बीच में नाँय आयीं, सहर’न नें आगें बढ़ कें जेल’न कों अपने आगोस में लै लीनों है। न केवल सहर जेल’न तक पहुँचे हैं, बल्कि सहर जेल’न कों क्रॉस कर कें वैसें ही आगें बढ़ गये हैं जैसें आज कौ समाज सब लाज-मरजाद’न की सीमा लाँघें जाय रह्यौ है।
हमनें कही लाली तेरी बात कछू-कछू सही लग तौ रही है, मैं अपने पत्रकार मित्र’न तक बात पहुँचाय दंगो। वैसें लाली एक बात कहों सहर’न नें जेल’न कों अपने बाहुपाश में जकड़ लियौ या जेल सहर’न के बीच में आय गयीं, या बात कौ अब का मतलब? लोग होंय कि लुगैया, आजकल अपुन सबन्ह कौ जीवन काहु जेल ते कम है का? जा तू इन बात’न में मूड़ मत मार और हाँ, अखबार पढ़ती रहियो, तू पढैगी तभी तौ अपने बालक’न कों पढवौ सिखावैगी। जैसें मूँगफली कों गरीब’न की बदाम कह्यौ जावै वैसें हु अखबार गरीब’न की तलवार होवै है। अखबार पढवौ भौत जरुरी है।