नवीन सी. चतुर्वेदी
ब्राह्मण’न के बारे में बहुधा पूर्वाग्रह सों ग्रस्त रहवे वारे घुटरूमल जी जब बोले कि गुरूजी जो मजा पंडिताई में है वौ कहूँ नाँय तौ हमें रामचरित मानस के सुंदरकांड कौ लंकादहन सों पहले कौ वौ सीन याद आय गयौ जामें लंकापति रावण बोलै कि ‘तेल बोरि पट बाँधि पुनि, पावक देहु लगाय’ और हनुमान जी मन ही मन बोलें ‘भई सहाय सारद मैं जाना।’ घुटरूमल जी एक वार जो ठान लेंय वौ कर कें ही मानें। सो हम मौन ही रहे।
कछू महीना बाद फिर भेंट भई तौ हमनें पूछी और साब पंडिताई वैâसी चल रही है। वे बोले छोड़ दीनी पंडिताई। हमनें पूछी क्यों? बोले गुरूजी दूर के ढोल सुहाने लगें, कान सटाय कें सुनों तब समझ आवै। हम एक ब्याउ करायवे गये। ग्यारह बजें बुलायौ मगर हम पौने ग्यारह बजे ही पहोंच गये। का देखें कि घर की बैयरबानी बूटीपार्लर वारी कौ इंतजार कर रही हैं। हमारौ पहलौ एक्सपीरियंस ही खराब है गयौ।
जैसें-तैसें वे तैयार भर्इं तौ वीडियो वारे आय धमके। दो घंटा बूटीपार्लर वारी की लीला चली और घंटा भर वीडियो वारे’न कौ डंका बजौ। का बतामें साब दियो कौ घी आधौ है गयौ मगर इनकौ जी न भरौ। वीडियो के बाद मंडप में आये और बैठते ही बोले पंडितजी भौत लेट हो गयी है सो प्लीज फटाफट। हमनें सोची पूजा न भई डॉक्टर कौ इंजेक्शन है गयौ, यहाँ लगौ वहाँ औषधि रक्त में प्रवाहित। बूटीपार्लर वारी कों टैम है, वीडियो वारे कों टैम है बस पूजा-पत्री कों टैम नाँय नें? मगर हमनें कूल रहते भए पूजा के फूल चढ़वाये।
दक्षिणा दैवे कौ टैम आयौ तौ सब एक-दूसरे कों ऐसें देखन लगे जैसें कोउ रियासत दान करनी होय। आँख’न-आँख’न में एक-दूसरे सों बतियाय बड़े ही मरे भए मन सों हमें ग्यारह सौ पकड़ाये। भौत महरबानी करी साब।
हम सोचें बूटीपार्लर वारी कों साल भर पहलें बुक करी, वीडियो वारे कों छह महीना पहलें बुक करौ। दौनों’न कों खुसी-खुसी हजार’न दिये और हमें झींक-पीट कें कुल्ल ग्यारह सौ, वौ हू महरबानी के संग! जा संस्कार के लिएं सबरौ ताम-झाम है रयौ है वाकी कोउ बखत ही नाँय? इत्तौ ही नाँय घुड़चढ़ी में बाजे वारे’न पै सौ-सौ के नोट बरसायवे वारे’न नें पूजा में रोते-पीटते दस-दस रुपा रखे।
गुरूजी मानस की वा चौपाई कौ मरम हमें अब समझ में आयौ है ‘सीता कें अति विपति विसाला, बिनहिं कहें भलि दीनदयाला।’ ब्राह्मण’न की दसा कोउ ब्राह्मण ही समझ सकै।