मुख्यपृष्ठस्तंभब्रेकिंग ब्लंडर : मैं बिहार का पुल हूं

ब्रेकिंग ब्लंडर : मैं बिहार का पुल हूं

राजेश विक्रांत

मैं बिहार का पुल हूं। गिरना, ध्वस्त होना, जलसमाधि लेना मेरी आदत है। ये मेरे जन्मसिद्ध उर्फ निर्माणसिद्ध अधिकार हैं। ११ दिनों के अंदर पांच पुल इस स्थिति को प्राप्त हो चुके हैं। मैं समय व स्थान से परे हूं। दिन हो या रात जब मर्जी तब गिरूंगा। मैं सप्ताह में एक बार भी गिर सकता हूं और चार बार भी, ये मेरी मर्जी पर निर्भर है। गिरने का दिन मैं खुद तय करता हूं। भले उसकी घोषणा बाद में की जाए। मधुबनी का मेरा बंधु पुल २४ जून से पहले ही ध्वस्त हो चुका था। लेकिन तब इसकी घोषणा करने के रास्ते में तकनीकी खामियां आ गई तो पुल गिरने की घोषणा तीन चार दिन बाद की गई।
मोतिहारी, सिवान, सुपौल, मधुबनी, अररिया, मोतिहारी, सुल्तानगंज, सारण, दरभंगा, बिहटा, पूर्णिया, कटिहार, नालंदा, सहरसा, फतुहा, भागलपुर खगड़िया मैं कहीं भी गिर सकता हूं। मुख्य नदी का पुल हूं, सहायक नदी का यहां तक कि नहर का भी, मुझे गिरने में कोई एतराज नहीं है।
मेरे गिरने का कारण मत पूछिए। नहर की सफाई के दौरान मिट्टी का कटाव भी हो सकता है तथा नेपाल में भारी बारिश के कारण जलस्तर बढ़ना भी। मेरा मोतिहारी संस्करण तो असामाजिक तत्वों की वजह से शहीद हो गया था।
अब देखिए न, सिवान में न बारिश आई न आंधी तो भी नहर पर बना हुआ मैं ध्वस्त हो गया। मुझे भरोसा है कि ठेकेदार ने उत्कृष्ट निर्माण सामग्री का शीलभंग करना उचित न समझा हो। किशनगंज के मेरे भाई को बनाने वाले संभवत: दिलविहीन रहे होंगे, जो उपयोगकर्ताओं को घटनास्थल पर ही पंचतत्व प्राप्त कराने की इच्छा रखते होंगे। मैं बन गया हूं तो भी, निर्माणाधीन हूं तो भी। मोतिहारी का पुल निर्माण कार्य के दौरान ढहा था। उद्घाटन हुआ है तो भी नहीं उद्घाटन हुआ है तो भी, पुराना हूं तो भी, नया हूं तो भी मैं तो गिरता रहूंगा। अररिया के सिकटी में बकरा नदी पर बना पुल उद्घाटन से पहले ही धवस्त हो गया। पुल का निर्माण लगभग पूरा हो गया था। सात करोड़ रुपए से भी अधिक की लागत से बने इस पुल का निर्माण, पहले बने पुल की एप्रोच कट जाने के बाद कराया गया था।
मैं बिहार का पुल हूं। गिरने में मुझे मजा आता है और संतोष भी मिलता है। दरअसल, संहार उत्पत्ति का मूल कारण है। मैं गिरूंगा तो ही दूसरा बनेगा न। इसमें रोजगार का सृजन होगा। मजदूर, ठेकेदार, इंजीनियर, ओवरसियर, अधिकारी आदि वर्ग को काम मिलेगा, इनकी आय बढ़ेगी। हकीकत ये भी है कि जब भी कोई पुल गिरता है तो इसी वर्ग को ही आनंद की झीनी-झीनी अनुभूति होती है। भ्रष्ट रस और अनैतिक रस मिलकर दिव्यांग रस व मृत्यु रस की सृष्टि करते हैं। पुल आत्महत्या के प्रत्याशियों का दिल खोलकर स्वागत करता है। पुल के वीरगति के प्राप्त होते ही इंजीनियर आदि अनुभवी अपराधियों की तरह भूमिगत हो जाते हैं। ठेकेदार मौन की मच्छरदानी तान लेते हैं और सरकार सभी पुलों का स्ट्रक्चरल ऑडिट करवाने की घोषणा करती है। इसका मतलब यह है कि अगर मेरे गिरने के बाद महकमा सक्रिय होता है तो मैं क्यों न गिरता रहूं?

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