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सिटीजन रिपोर्टर : ग्रांट रोड स्टेशन के पास शेयरिंग टैक्सी चालक मालामाल, बेस्ट बस कंगाल!

भ्रष्ट शासन और भ्रष्टाचार का जीता-जागता नमूना ग्रांट रोड यूनियन हॉल और जगदीश अजमेरा हॉल के पास रेलवे स्टेशन से बाहर और अंदर जाने के मार्ग पर है। यहां भारी मात्रा में शेयरिंग टैक्सियों की भीड़ होती है। टैक्सी चालक पर सीट १० रुपए में यहां से यात्रियों को उनके गंतव्य स्थान पर ले जाते हैं, जबकि आरटीओ द्वारा यहां नो पार्किंग का बोर्ड लगाया गया है, जिसमें यहां गाड़ी पार्क करने पर १,५०० रुपए फाइन लिखा हुआ है। ‘दोपहर का सामना’ के सिटीजन रिपोर्टर राजेश बी. गुप्ता ने इस विषय पर प्रकाश डालते हुए बताया है कि यहां बस की कतार में भारी संख्या में लोग घंटों खड़े रहते हैं। यात्री धूप में खड़े होकर बसों का इंतजार करते हैं। बस का किराया ४-६ रुपए है, लेकिन अपनी रोजी-रोटी की खातिर लोग टैक्सी से १० रुपए किराया देकर जाने के लिए मजबूर हैं। आजकल मुंबई की बेस्ट बसें, जो मुंबई की दूसरी लाइफलाइन हैं की हालत इस कदर बिगड़ी हुई दिखाई दे रही है, जिसे लेकर लोगों में काफी आक्रोश है। आम जनता ने बेस्ट प्रशासन को काफी लताड़ लगाई है। जब राजेश ने लोगों से इस बारे में बात की तो काफी लोगों ने जमावड़ा लगाकर बेस्ट बस प्रशासन को काफी खरी-खोटी सुनाई। लोगों ने बेस्ट कर्मचारियों के प्रति गुस्सा जाहिर करते हुए इसे टैक्सी चालकों के साथ मिलीभगत होने की जानकारी दी। प्रशासन के कर्मचारियों के साथ-साथ लोगों ने महाराष्ट्र की शिंदे सरकार को भी कोसा और कहा कि इससे पहले महाविकास आघाड़ी सरकार में बेस्ट की हालत काफी सही थी। जब से सरकार बदली है, तब से आम लोगों का जीना मुश्किल हो गया है। लोग इस सरकार से काफी ऊब गए हैं। बेस्ट प्रशासन अक्सर लोगों से लुभावने वादे करता है, लेकिन वो सब कागजी ही रह जाता है। बेस्ट प्रशासन की लापरवाही से बेस्ट दिन-ब-दिन घाटे में जा रही है। हिंदी में एक कहावत है, ‘अंधेर नगरी चौपट राजा टका सेर भाजी टका सेर खाजा।’ लोगों ने बेस्ट कर्मचारियों के दिवाली बोनस पर भी सवालिया निशाना लगाते हुए कहा कि इस बार महाराष्ट्र की शिंदे सरकार ने बिन मांगे ही सरकारी कर्मचारियों को बोनस ऐसे दे दिया, जैसे अपनी जायदाद से दिया हो। बिना किसी मोर्चा और विरोध प्रदर्शन हुए जिसकी बिन मांगे झोली भर दी गई, वो फिर भी ऐसी लापरवाहियां कर रहे हैं। काम करो या मत करो पेंशन, पगार और बोनस तो बिन मांगे मिल ही रहा है तो काम करने की क्या जरूरत। जनता अगर मरती है तो मरे हमें क्या। अब तो शिंदे सरकार ने पुरानी पेंशन भी देने का मन बना लिया है।

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