नगर की डगर

हथकड़ी लिए खड़ी थी दहलीज पर
गुमनाम गलियों का इशारा कर रही थी
दिल की दुकान बंद कर दी थी
दिमाग ने दरवाजा खटखटाया
जाना था किसी और नगर
लड़खड़ाए कांपे कदम
आगे का सवेरा कैसा होगा
इठलाती बलखाती तितली बोली
बेफिक्र चल आगे सब कुछ तेरा होगा
बस आत्मविश्वास रख, तत्पर मत रख
धीरे-धीरे अनजाने से
सब कुछ जाना पहचाना होगा
पर उस डगर को पार करना होगा
बीच में कुछ रुकावट होगी
दुःख सुख की मिलावट होगी
अपना पराया कोई नहीं होगा
पग जरा संभल कर रखना
ये भी तेरा नहीं वो भी तेरा नहीं
चलना है तुझको अपने गुजारे पर
उतनी ही उड़ान भरना
जितनी तुझमें क्षमता हो।
-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

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