कुदरत के रंग

कुदरत की खूबसूरती के
रंग कितने अनोखे हैं
वो सबसे बड़ा कलाकार है
उसके उपजाए फूल तो
फूल कॉंटे भी चोखे हैं
नहीं सानी इस धरा पर
कोई सृष्टि के मालिक का
वो तो खारे आंसू में भी
खुशी के रंग भर देता है, वो भी निःशुल्क!
जल उसने तो मुफ्त में हमें दिया है
आदमी का लालच इतना
कि बोतलों में भरकर माया ऐंठ रहा है
ये जल भी कितना निर्मल है
रामभरोसे हम घटक रहे हैं।
पैसे देकर तरह-तरह के रोग खरीद रहे हैं,
नीले / पीले / काले / संतरी रंगों को
केमिकल मिश्रित सॉफ्ट ड्रिंक के नाम से
मशहूर पेय जल पीकर हम
अपना स्वास्थ्य बिगाड़ रहे हैं।
क्योंकि ये आविष्कार कुदरत का नहीं,
चतुर आदमी की पैसे कमाने की जुगती है।
जहां किसी की प्यास बुझाना पुण्य का कार्य है
वहीं प्यासा आज पानी का दाम चुका रहा है।
और हमारी सरकारें भी इसे फास्ट अर्निंग
के नाम से प्रमोट कर रही हैं।
जिस देश में पानी बिकता हो,
वहां रोटी कैसे मुफ्त मिल सकती है, गुरुद्वारों के सिवा!
लंगर यानी गुरु नानक देव जी के
सच्चे सौदे के नाम से परोसा गया निःशुल्क भोजन,
जो आज तक गुरुद्वारों में प्रचलित है
और आगे भी बरकरार रहेगा।
एक पंक्ति में बैठकर गरीब खाएं, अमीर खाएं
हिंदू खाएं, ईसाई या मुस्लिम खाएं,
कोई भेदभाव नहीं है
ये भी कुदरत का देखने लायक
नज़ारा है और छकने लायक भी।
-त्रिलोचन सिंह अरोरा

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