सामना संवाददाता / मुंबई
सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास का नारा देकर सत्ता में आई महायुति सरकार के राज में आम आदमी न्याय के लिए भी तरस गया है। आलम यह है कि तारीख पर तारीख प्रक्रिया के कारण राज्य की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। महाराष्ट्र में ८८ लाख से अधिक मामले पिछले दस सालों से लंबित हैं। खासकर भाजपा-शिंदे सरकार के राज में दस लाख से अधिक मामले पैâसले का इंतजार कर रहे हैं और बरसों से न्याय की गुहार लगाए लोगों को अदालत से समय पर न्याय नहीं मिल रहा है। ऐसे में आम नागरिकों का अदालतों पर भरोसा कम होता जा रहा है।
बता दें कि न्याय पाने के लिए आम नागरिक न्यायालय का रुख करते हैं। वे मजिस्ट्रेट कोर्ट, जिला सत्र न्यायालय, उच्च न्यायालय और अन्य न्यायिक अधिकारियों में याचिका दायर करते हैं। हालांकि, कुछ मामलों को छोड़कर अन्य मामलों की सुनवाई ही नहीं होती है। इसके विपरीत अदालत में विभिन्न मामलों में सिर्फ तारीख पर तारीख दी जाती है, जिससे पीड़ित को न्याय नहीं मिल पाता है। याचिकाकर्ता वकीलों को लाखों रुपए देकर कोर्ट में केस और याचिका दायर करते हैं, लेकिन सालों बाद भी कोर्ट में याचिका सुनवाई के लिए नहीं आती। कभी सुनवाई के दौरान किसी पक्ष के वकील नदारद रहते हैं, कभी जज अनुपस्थित रहते हैं तो कभी वकीलों द्वारा अपना पक्ष रखने के लिए समय लिया जाता है। इसके अलावा कई अन्य कारण भी मामलों के लंबित रहने के लिए जिम्मेदार हैं।
आपराधिक मामले हैं ज्यादा
पिछले पांच से दस सालों से लंबित मामलों की संख्या ८८ लाख ५८ हजार ३ तक पहुंच गई है, जिनमें से १९ लाख १४ हजार २४४ मामले सिविल के हैं, जबकि ६९ लाख ४३ हजार ७५९ मामले आपराधिक हैं। खबरों के मुताबिक, महाराष्ट्र में २०२१ में ४ लाख ६७ हजार ४६७ मामले लंबित थे। २०२२ में ६ लाख ५० हजार ४०८ मामले लंबित थे। २०२३ में ८ लाख ३९ हजार ९०९ मामले लंबित थे, जबकि २०२४ में १० लाख ८९ हजार २५ मामले लंबित थे।