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लज्जित कर रही बेटियां!

भूल गई बेटियां क्या, यह भारत की धरती है
यहीं मां सिया, सावित्री, शकुंतला जन्मी हैं।
प्रजा की शंका पर मां सिया
धरती में समाई हैं
गंधर्व विवाह किया था
दुष्यंत शकुंतला ने
पुत्र भरत को पाला अकेले उसने
नारी थी पूजनीय यहां सदा से
परंतु कुछ सदियों से बहुत सहा नारी ने।
आज समाज दे रहा समान अधिकार नारी को
हो रही आत्म निर्भर आर्थिक दृष्टि से।
किंतु सामाचार आ रहे बहुत बदतर
स्वछंदता, स्वतंत्रता का गलत अर्थ लगा कर
कुछ बेटियां चल पड़ीं गलत राह पर
समाज बेटे, बेटी का अंतर मिटा रहा है
बेटियों के जन्म पर खुशियां मना रहा।
प्रेम विवाह करना हो तो
पहले परिवार को विश्वास में लाओ
पवित्र प्रेम पर कलंक न लगाओ
विवाह वेदी पर किसी और के नाम का
मांग में सिंदूर न सजाओ
पतिघातिनी बनने का पाप न कमाओ
अपने मां पिता, भाई बहन को समाज में न लज्जाओ।
सहनशील बन पारिवारिक जीवन सुखद बनाओ
भाड़े के कातिल लेने कि हिम्मत न जुटाओ
विवाह से पहले अपनी सहमति की
स्थिति पूरी तरह समझाओ।
एक अशोभनीय कदम का परिणाम
परिवार को भुगतना पड़ता है।
कभी लुटेरी दुल्हन बनकर
कभी सास ने दामाद संग भाग कर
नारित्व को बदनाम किया है
कलंकित जीवन जीने से
सीमाओं में रह कर परिवार के साथ जीना अच्छा है।
-बेला विरदी

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