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जांच एजेंसियों की लेटलतीफी खत्म कर रही न्याय की उम्मीद, दिल्ली हाई कोर्ट ने जताई चिंता

सामना संवाददाता / नई दिल्ली

लड़की से सामूहिक दुष्कर्म मामले में सबूतों की अहमियत पर जोर देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा है कि जांच एजेंसी की कमी, देरी और न्यायालयों के तकनीकी दृष्टिकोण के कारण एक बार जो साक्ष्य नष्ट हो जाते हैं, वो हमेशा के लिए खो जाते हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि ऐसे मामलों में साक्ष्य न मिलने से न्याय की उम्मीद भी खत्म हो जाएगी। कोर्ट ने निचली अदालत की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
गौरतलब है कि सीसीटीवी पुâटेज को संरक्षित करने की पीड़िता की मांग को स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि किसी भी आपराधिक मामले में घटना की तारीख महत्वपूर्ण होती है। ऐसे में निचली अदालत द्वारा सबूतों को संरक्षित करना उतना ही महत्वपूर्ण था, जितना ही न्यायिक व्यवस्था में उसके विश्वास को बचाना था।
कोर्ट ने कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए अदालत घटना के दिन दो मई २०२३ के याचिकाकर्ता के घर के आसपास के सीसीटीवी पुâटेज संरक्षित करने का अदालत आदेश देती है। अदालत ने साथ ही यह भी आदेश दिया कि आरोपित व्यक्तियों के जनवरी से मई २०२३ के बीच के कॉल डिटेल रिकॉर्ड भी जांच अधिकारी द्वारा एकत्रित किया जाएगा। इस टिप्पणी और आदेश के साथ ही अदालत ने निचली अदालत के १८ अक्टूबर २०२३ के आदेश को निरस्त कर दिया है।

१०० में से सिर्पâ २७.४ मामलों में ही मिल रही सजा

हिंदुस्थान की पुलिस रेप जैसे गंभीर अपराधों में भी सजा दिलाने में काफी फिसड्डी साबित हो रही है। हालिया एनसीआरबी की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ था। रिपोर्ट के मुताबिक, हिंदुस्थान में रेप के मामलों में सजा दर सिर्पâ २७.४ प्रतिशत है। आसान भाषा में कहें तो बलात्कार के १०० में से सिर्पâ २७.४ मामलों में ही बलात्कारियों को सजा मिल रही है। महिलाओं के खिलाफ अपराध भी बढ़ रहे हैं, जहां २०२२ की एनसीआरबी रिपोर्ट में महिलाओं के खिलाफ अपराध के तहत ४,४५,२५६ मामले दर्ज किए गए। वहीं २०२१ में यह संख्या ४,२८,२८७ थी। एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक, २०२१ में २०२० के खिलाफ अपराधों में १५.३ प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी।

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