सामना संवाददाता / नई दिल्ली
ऑपरेशन सिंदूर के बाद बीते १ सप्ताह से भारत में पाकिस्तान के लिए जासूसी करनेवाले कई अभियुक्तों को पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश से गिरफ्तार किया गया है। ये सभी पाकिस्तानी उच्चायोग में पोस्टेड आईएसआई के हैंडलर्स एहसान-उर रहीम उर्फ दानिश या फिर मुजम्मिल हुसैन उर्फ सैम हाशमी के संपर्क में थे। इन आरोपियों को पकड़ने के बाद सामने आया है कि पाकिस्तानी उच्चायोग में पोस्टेड आईएसआई के एजेंट दानिश और मुजम्मिल ने जासूसी करनेवाले इन अभियुक्तों से भारतीय सिम कार्ड मंगवाई थी। दिल्ली पुलिस की जांच में यह भी खुलासा है कि दानिश भारत में खतरनाक जाल बिछा रहा था।
बता दें कि १३ मई को भारत ने पाकिस्तानी हाई कमीशन के अधिकारी दानिश को देश छोड़ने को कहा था। ऐसे में खुफिया सूत्रों ने जानकारी दी कि वीजा के बदले सिम कार्ड मांगने का धंधा पाकिस्तानी उच्चायोग में काम करने वाले आईएसआई के हैंडलर्स बीते ५ सालों से लगातार चला रहे हैं। इनका टारगेट कम पढ़े-लिखे और ग्रामीण इलाके में रहनेवाले भारतीय होते हैं, जिनके रिश्तेदार पाकिस्तान में रहते हैं और वो पाकिस्तान जाने के लिए वीजा चाहते हैं। उनसे पाकिस्तानी उच्चायोग में पोस्टेड आईएसआई के एजेंट सिम कार्ड मंगवाते थे और पिछले २ सालों में हजार से ज्यादा भारतीय नंबरों के सिम कार्ड मंगाए जा चुके हैं।
क्यों चाहिए भारतीय सिम कार्ड
अब बड़ा सवाल उठता है कि आखिर भारतीय नंबरों के सिम कार्ड का आईएसआई के पाकिस्तानी उच्चायोग में बैठे हैंडलर्स करते क्या थे? इस रैकेट की जांच करने वाले भारत की खुफिया एजेंसी के एक सूत्र ने जानकारी दी कि भारतीय नंबरों के सिम का आईएसआई और उसके हैंडलर्स तीन तरह से प्रयोग करते थे। पाकिस्तानी उच्चायोग में काम करनेवाले आईएसआई के हैंडलर्स अपने खुद के भारतीय नंबर से कभी भी अपने जासूसों से बात नहीं करते थे। वो हमेशा अपने जासूसों से बातचीत उन्हीं भारतीय नंबरों से करते थे, जो उन्हें या तो वीजा आवेदक ने मुहैया करवाया या फिर उनके ही किसी जासूस ने, क्योंकि अगर उनका जासूस पकड़ा जाता है तो उनके पास ऑप्शन रहता है कि नंबर उनका नहीं है और जांच एजेंसी के आरोप निराधार हैं।
सामने आए कई उदाहरण
खुफिया सूत्रों के मुताबिक, चूंकि नंबर +९१ कोड का होता है और आईएसआई का हैकर या फिर हैंडलर शुद्ध हिंदी में कभी भारतीय रक्षा विभाग का अधिकारी बनकर तो कभी किसी अन्य विभाग का अधिकारी बन बात करता था, ऐसे में सैनिक या फिर पुलिसकर्मी की उसके झांसे में फंसने की संभावना बढ़ जाती थी। उदाहरण के लिए अभी बीते दिनों पहलगाम हमले के बाद की स्थिति देख लें तो जब सरहद पार बैठे आईएसआई के एजेंट्स ने कई भारतीय सैनिकों और उनके परिवारवालों को फोन कॉल करके सेना के मूवमेंट की जानकारी मांगी थी। ये सभी कॉल सैनिकों को और उनके परिजनों को +९१ कोड के भारतीय नंबर से ही आई थी और व्हॉट्सऐप पर आई थी।
भारतीय सेना और पुलिस की जासूसी
उच्चायोग में पोस्टेड आईएसआई के हैंडलर्स इस्लामाबाद में आईएसआई के साइबर कमांड सेंटर में बैठे हैकरों को इन नंबरों से व्हॉट्सऐप लॉग इन करवाते थे, ताकि भारतीय सेना और पुलिस की जासूसी की जा सके और उनका फोन हैक किया जा सके। तीसरा और सबसे बड़ा प्रयोग इन भारतीय सिम कार्ड का आईएसआई सैनिकों और जम्मू-कश्मीर के पुलिसकर्मियों के फोन को हैक करने या फिर उनसे गुप्त जानकारी इकट्ठा करने के लिए करती है।