द्रुप्ति झा / मुंबई
यह सच है कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों और मरीजों की सुरक्षा को लेकर अक्सर चिंताएं उठती रही हैं। कई बार पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं होने के कारण डॉक्टर और मरीज दोनों ही असुरक्षित महसूस करते हैं।
पिछले आठ महीने से विलेपार्ले स्थित कूपर अस्पताल में एंट्री गेट पर लगी बैग स्कैनर मशीनें बंद पड़ी हुई हैं, लेकिन अस्पताल प्रशासन को इसकी कोई परवाह ही नहीं है।
सवाल उठता है क्या सरकारी अस्पतालों द्वारा इसी तरीके से सुरक्षा के इंतजाम किए जाते है। ऐसी स्थिति उस जगह की है, जहां रोजाना आने वाले लोगों की संख्या हजारों में होती है। इनमें कुछ ऐसे लोग भी शामिल हो सकते हैं, जिनका उद्देशय सिर्फ अस्पताल में मौजूद लोगों को नुकसान पहुंचाना हो सकता है। अस्पताल की इसी लापरवाही से आतंकी हमला भी होने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे में लोगों की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है।
अस्पताल में बैग स्कैनर मशीनों के बंद होने से मरीजों और कर्मचारियों के लिए सुरक्षा चिंताएं बढ़ रही हैं। बैग स्कैनर मशीनों के बंद होने से अनधिकृत व्यक्तियों के अस्पताल में प्रवेश की आशंका बढ़ सकती है। बिना सुरक्षा जांच के अस्पताल में चिकित्सा उपकरणों, निजी सामान और अन्य मूल्यवान वस्तुओं की चोरी का खतरा बढ़ सकता है। सुरक्षा जांच मशीनों के बंद होने से अन्य सुरक्षा उल्लंघनों जैसे कि साइबर खतरे और कर्मचारियों के विरुद्ध हिंसा का भी खतरा बढ़ सकता है।
दांव पर अस्पताल की सुरक्षा
अस्पताल के कर्मचारियों का कहना है कि बैग स्कैनर मशीन आठ महीनों से बंद पड़ी हुई है, जिस कंपनी की मशीन है वह इस बंद मशीन को नहीं लेकर जा रही है और न नई लेकर आ रही है। आईसीयू में भर्ती पत्नी की देखरेख करने वाले एक शख्स ने बताया कि जिस तरीके से घटनाएं घट रही हैं, डर तो लगता है। क्योंकि किसी के चेहरे पर लिखा तो नहीं होता है कि वो क्या करने वाला है। ऐसे में अस्पताल को लोगों की सुरक्षा के लिए बैग स्कैनर मशीनों को चालू करवाना चाहिए या नई मशीनें लगवानी चाहिए।