मत कर अभिमान…

मत कर अभिमान
दो पल भी नहीं मिलते हैं
फिर क्यों इतना उड़ रहा है तू
जमीन पर ही रहें, मत कर अभिमान।
जीवन में क्यों इतनी मोह-माया कर रहा है
जबकि मौत कब आ जाए, पता ही नहीं तुझे
मत कर अभिमान।
हर एक चीज पर तेरा अधिकार
हो चुका है ऐ मानव
हर जगह तेरी ही सत्ता का हो रहा गुणगान
पर जिंदगी और मौत ऐसी कहानी कहती हैं
कि मिट जाता है सब गुमान
मत कर अभिमान।
ऐ मिट्टी है, जिसमें मिल जाएगा तू
लाख महल चौबारे बना ले
कभी साथ नहीं जाएगा, यह काया क्षणभंगुर है
मत कर अभिमान…।
-हरिहर सिंह चौहान
इंदौर, मध्यप्रदेश

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