मुख्यपृष्ठसमाचारतुर्की में आर्थिक संकट... सीरियाई शरणार्थी दोषी!

तुर्की में आर्थिक संकट… सीरियाई शरणार्थी दोषी!

राशाद की आंखें खुलीं। उसका सिर बुरी तरह दर्द से फट रहा था। उसने फिर आंखें बंद कर लीं। अपना दाहिना हाथ उठाया और अपना सिर दबाने की कोशिश की। यह क्या उसके सिर पर पट्टी बंधी हुई थी। उसने फिर आंखें खोली। यह तो उसका घर नहीं था। उसे हल्की सी याद आई। वह मोबाइल पर मैसेज पढ़ रहा था। उसके साथ जोबान भी था। वह कहां है? उसने चारों तरफ देखा। यह अस्पताल का कमरा था। लेकिन वह यहां पहुंचा तो कैसे और कब? उसने उठने की कोशिश की। सारे शरीर में दर्द की लहर दौड़ गई। उसके बाएं हाथ में भी पट्टी बंधी हुई थी।
नर्स ने उसे सहारा देकर उठाया। उसने गहरी सांस ली। पीठ के सहारे बैठते हुए उसने अंदर से पूछा, `मैं यहां कैसे आया…?’
नर्स ने उसे शांत रहने का इशारा किया। उसने दाहिनी ओर नजर घुमाई। पट्टियों में बंधा जोबान दिखाई दिया। फिलहाल नींद में था। ड्रिप के जरिए उसे दवाई दी जा रही थी। अब उसकी नजर बायीं ओर गई । यासेर, यह जोबान का दोस्त था जो कुछ दिन पहले उनके साथ रहने आया था अंकरा से। उसकी बीबी प्रेग्नेंट थी। उन्हें अंकारा से वापस सीरिया जाने के लिए कहा गया था। वह इससे मदद लेने आया था। शुक्र था उसे ज्यादा चोटें नहीं थी। उसके दिमाग में सब कुछ क्रिस्टल क्लियर हो गया था। उसे समझ में आ गया कि अस्पताल में क्यों है। उस वार्ड में सिर्फ वे तीन नहीं, बल्कि काफी लोग एडमिट थे जो सीरिया के थे।
वह एक ऐसे एनजीओ से जुड़ा हुआ था जो तुर्की में रह रहे सीरियाई लोगों की मदद करता था इसलिए वह जानता था कि हकीकत क्या है।
तुर्की में वैसे भी सीरिया के लोगों को न जाने क्यों अच्छी निगाह से नहीं देखा जा रहा था। और तुर्की में आए भूकंप के बाद तो हालात और भी खराब हो गए थे। तुर्की में कुछ ऐसे लोगों का समूह भी था जिनका मानना था कि प्रवासी सीरियाई लोगों की वजह से उन्हें नौकरियां नहीं मिल रही हैं। कुछ तुर्की लोगों ने सीरियाई लोगों की पिटाई भी की थी।
उनका आरोप था कि वे लोग मलबे से कीमती सामान चुरा कर ले जा रहे थे। चोर तो कोई भी हो सकता है! और ऐसे हालात में जब उनके देश में भी भूकंप ने तबाही मचा रखी है कोई चोरी क्यों करेगा? लेकिन समझाए तो कौन? किसे? और जिन्होंने अपना नजरिया बदल दिया है वह क्यों समझेंगे?
राजनीतिक उठापटक के चलते तुर्की आर्थिक संकट समेत कई समस्याओं से दो-चार हो रहा था। पिछले दिनों उसने एक अखबार में रिपोर्ट पढ़ी थी जिसे देखकर उसे हंसी आ गई थी। रिपोर्ट की कुछ पंक्तियां उसके जेहन में थीं, `सर्वेक्षणों से पता चलता है कि तुर्की के कुछ लोग अपनी खराब हो रही अर्थव्यवस्था के लिए सीरियाई शरणार्थियों को दोषी मानते हैं। वो लोग सीरियाई शरणार्थियों पर तुर्की की नौकरियां लेने का आरोप लगाते हैं। कुछ महीने पहले हुए आम चुनाव में अप्रवासी विरोधी भावनाओं ने एक राजनीतिक बहस को आकार दिया है। जो फिलहाल बढ़ते जा रहा है और कुछ लोग अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस मुद्दे पर और घी डालते जा रहे हैं।
राशाद जानता था कि कुछ सीरियाई शरणार्थियों ने तुर्की भाषा सीखते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी और नौकरियां हासिल कीं। लेकिन तर्कियों को रोका किसने? वे भी पढ़-लिख कर उस मुकाम तक पहुंच सकते थे। लेकिन इस मसले पर बहस करना मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालना जैसा था। दूसरी बात यह थी कि ये सीरियाई लोग अलग-अलग हिस्सों में पैâले हुए थे। अधिकांश हिस्सों में उनमें एकता नहीं थी, वे हाशिए पर थे और उनकी कोई आवाज नहीं थी।
नर्स ने उसे पुकारा। वह विचारों की दुनिया से बाहर निकल आया। उसने अपनी दायीं बांह आगे की। नस में इंजेक्शन लगाया। उसके मुंह से `आह’ निकला। `दर्द हुआ क्या?’ नर्स ने पूछा। यह इंसान भी तो तुर्क के ही हैं। उसने सोचा कितना फर्क होता है इंसान और इंसान में। एक वे लोग थे जिन्होंने उन्हें अस्पताल पहुंचा दिया और एक यह है जो उनका इलाज कर रहे हैं। दुनिया में इंसानियत है खत्म नहीं होती। यही इंसानियत तो ऊपर वाले की देन है।
यह रहा आपका मोबाइल। दो दिन आप बेहोश थे। आज आपको इस वॉर्ड में लाया गया। उसका शुक्रिया अदा करते हुए उसने मोबाइल लिया। कई मिस्ड कॉल थे। सबसे ऊपर पांच कॉल थे। वैसे भी कॉल एन्ना के थे। एक बारगी के लिए उसे अपनी आंखों पर एतबार नहीं हुआ। उसने तुरंत कॉलबैक किया। `हैलो’ उसने हल्के से कांपते हुए स्वर में कहा। राशाद बेसब्री से एन्ना की आवाज का इंतजार कर रहा था। आज तकरीबन एक हफ्ते के बाद उसे एन्ना की आवाज सुनाई देनेवाली थी।
`माफ कीजिए आप फोन बाद में कीजिए। यह आपसे मिलने आए हैं।’ नर्स की सुरीली सीr आवाज सुनाई दी। राशाद उठ कर देखा सामने पुलिस वाले खड़े थे।

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