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संपादकीय : ‘रक्तरंजित’ भ्रष्टाचार …सरकार को आरोपी बनाएं!

पुणे में ‘हिट एंड रन’ मामले को दबाने के लिए सत्ताधारी और सरकारी तंत्र कितना भयानक प्रताप कर रहे हैं, ये आए दिन सामने आ रहा है। भयानक खुलासा हुआ है कि ससून अस्पताल के डॉक्टर ने मुख्य आरोपी बिल्डर के बेटे के ब्लड सैंपल के साथ फेरफार की और सैंपल को सीधे कूड़ेदान में फेंक दिया। इस मामले में ससून अस्पताल के फॉरेंसिक विभाग के प्रमुख डॉ. अजय तावरे और डॉ. श्रीहरि हलनोर समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है। लेकिन ये मामला यहीं पर ही नहीं थमा। गिरफ्तार डॉ. तावरे ने धमकी दी है, ‘मैं सबके नामों का खुलासा करूंगा।’ आरोपी डॉ. तावरे के खुलेआम धमकी देने का मतलब है कि इस मामले में ‘अप्रत्यक्ष सह-अभियुक्तों’ की पूंछ काफी लंबी हो सकती है। चाहे इस मामले के आरोपी हों, उन्हें बचाने के लिए दौड़-धूप कर रही सरकारी-पुलिस तंत्र हो या इन सभी के पर्दे के पीछे के मास्टरमाइंड, ये सभी मंडली न केवल भ्रष्ट हैं, बल्कि ‘खून से रंगे’ भी हैं। आरोपियों के खून के नमूने को कूड़ेदान में फेंकने वाले को और क्या कहें? पुणे का ससून अस्पताल ‘अपराधियों को बचाने वाला अड्डा’ बन गया है और राज्य का स्वास्थ्य विभाग भ्रष्टाचार और धांधली के आरोपों के लिए बदनाम हो गया है। अभी दो दिन पहले पुणे महानगरपालिका के निलंबित स्वास्थ्य विभाग प्रमुख डॉ. भगवान पवार ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार को उजागर करते हुए सीधे मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था। डॉ. पवार ने अपने पत्र में कहा, ‘उन्हें केवल इसलिए निलंबित कर दिया गया क्योंकि उन्होंने अवैध टेंडर जारी करने से इनकार कर दिया था। मंत्री महोदय ने उन्हें अवैध टेंडरिंग, खरीद कार्यों और अन्य कार्यों के लिए बार-बार कात्रज स्थित अपने कार्यालय में बुलाया और उन पर दबाव डाला।’ डॉ. पवार ने पत्र में किसी का नाम नहीं लिया है। हालांकि, आपको यह बताने के लिए किसी ज्योतिषी की आवश्यकता नहीं है कि उनका इशारा राज्य के स्वास्थ्य मंत्री की ओर है। जनता के स्वास्थ्य की देखभाल करना स्वास्थ्य विभाग की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है, लेकिन वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री का जनता के स्वास्थ्य से कोई लेना-देना नहीं है। अनियमित स्थानांतरण-पदोन्नति और उसके परिणामस्वरूप आर्थिक टर्नओवर स्वास्थ्य क्षेत्र में एक बड़ा उद्योग बन गया है। ये आरोप महात्मा ज्योतिराव फुले योजना में अवैध कार्यों के चलते हुए हैं। एंबुलेंस खरीद में ६,००० करोड़ रुपए का घोटाला, कॉन्ट्रैक्ट कामगार भर्ती के नाम पर ३,२०० करोड़ रुपए के ‘टेंडरों’ में धांधली जैसे स्वास्थ्य विभाग के भ्रष्ट शासन के उदाहरण अब तक सामने आ चुके हैं। इसमें ससून अस्पताल में अमानवीय भ्रष्टाचार भी जुड़ गया है। पुणे ‘हिट एंड रन’ मामले ने न केवल ससून अस्पताल या स्वास्थ्य विभाग, बल्कि शासकों के ‘खूनी’ भ्रष्टाचार को भी सरेआम कर दिया है। जांच में शुरू से ही घपले-घोटाले, राजनीतिक हस्तक्षेपों का खुलासा, आरोपी के खून के नमूने कूड़े में फेंके जाना और इस तरह की जांच के लिए नियुक्त एसआईटी को उस अधिकारी को जांच सौंपना, जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं यह सब कुछ खतरनाक है। गुनाह करने से आरोपी तो गुनहगार है ही, लेकिन उसको बचाने के लिए जद्दोजहद करनेवाला सरकारी तंत्र और सरकार में उनके नुमाइंदे भी गुनहगार ही हैं। मीलॉर्ड, इस मामले में सरकार को ही आरोपी बनाएं!

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