पूरे देश में भारत-पाक तनाव का वातावरण है। सवाल यह है कि पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद अब भारत क्या करेगा? बुधवार को भारत ‘मॉक ड्रिल’ यानी युद्ध अभ्यास का प्रत्यक्षीकरण करने जा रहा है। गृह मंत्रालय ने ‘मॉक ड्रिल’ के आदेश दिए हैं। इसके लिए हवाई हमले के सायरन बजाए जाएंगे। दुश्मन के विमान हमारे इलाके में घुसेंगे तो उन्हें गुमराह करने के लिए ‘ब्लैकआउट’ किया जाएगा। सरकार ने छात्रों को असली हमले की स्थिति में खुद का बचाव करने का प्रशिक्षण देने का भी पैâसला किया है। आज ऐसा ही युद्ध अभ्यास होगा और उसके बाद असली युद्ध छिड़ेगा, ऐसा सरकार ने तय किया है। १९७१ के भारत-पाकिस्तान युद्ध का अनुभव जिन्होंने लिया है, वह पीढ़ी अभी भी जीवित है और तब भी पंद्रह दिनों तक सायरन बजाना, ब्लैकआउट करना आदि होता रहा था। उस समय पूरे देश में देशभक्ति का बुखार चढ़ा हुआ था और इंदिरा गांधी आकाशवाणी पर देश को प्रेरित करने वाले भाषण दे रही थीं। तब टीवी या सोशल मीडिया नहीं था। ऐसे में जैसे-जैसे युद्ध होता गया, उसे उसी तरह अखबारों के जरिए लोगों तक पहुंचाया जाता रहा। आज युद्ध अभ्यास से पहले ही ‘मीडिया’ ने युद्ध शुरू कर दिया है। मजाक में कहा जा रहा है कि ‘आजतक’ न्यूज चैनल ने अभी-अभी लाहौर पर कब्जा कर लिया है। अडानी के एनडीटीवी ने रावलपिंडी पर कब्जा किया है तो इस्लामाबाद पर एबीपी ने अपना झंडा फहराते हुए आगे बढ़ गया है। तो फिर जी न्यूज वैâसे पीछे रह सकता है? इस ‘जी’ ने कराची में धावा बोलकर दाऊद इब्राहिम के दरवाजे पर दस्तक दे दी है। इन सबके इस तरह धावा बोलने की वजह से पाकिस्तान थर-थर कांप रहा है और पाकिस्तानियों ने घुटने टेक दिए हैं, ऐसी तस्वीर अब निर्माण हो गई है। इसे सच मान लें तो प्रधानमंत्री मोदी को
तीनों सेनाओं के
सेनापति, रक्षा सचिव आदि से बात करने की बजाय इन न्यूज चैनलों से युद्ध पर चर्चा करनी चाहिए। सैन्य अधिकारियों की अपेक्षा ‘मीडिया’ के सेनापतियों का ही युद्ध अभ्यास और अनुभव अधिक है और यही लोग देश के लिए युद्ध जीतेंगे। कारगिल युद्ध के दौरान, ऐसे कई अति उत्साही युद्ध पत्रकारों का युद्ध के मैदान में जमावड़ा हो गया था और इससे बाधाएं और समस्याएं निर्माण हो गई थीं। युद्ध का अनुशासन टूट गया था। इजराइल-पैलेस्टाइन युद्ध के दौरान यूक्रेन की युद्धभूमि में कई पत्रकारों ने अपनी जान गवां दी। क्योंकि ये पत्रकार युद्ध के मैदान में सेना के कवच-कुंडल का उपयोग नहीं कर रहे थे और उनके कारण ही ‘गाजा’ पट्टी की असली तस्वीर दुनिया के सामने आई। क्या भारत में ऐसा कभी हुआ है? अभी भी प्रधानमंत्री के युद्ध की घोषणा करने से पहले ही ‘मीडिया’ ने युद्ध की घोषणा की और कई रहस्यों को उजागर कर दिया। बाबा रामदेव ने तो लाहौर में पतंजलि की एक पैâक्ट्री लगाने का भी पैâसला कर लिया है। यानी वास्तविक युद्ध शुरू होने से पहले, पाकिस्तानियों की संपत्ति का बंटवारा यहां के व्यापार मंडल ने कर लिया है। लड़ें दूसरे और जीती हुई जमीन व्यापारी लूटें, यह नीति अभी से दिखाई दे रही है। युद्ध कोई सामान्य बात नहीं है। वास्तविक युद्ध की अपेक्षा युद्ध के बाद का परिणाम अधिक घातक होता है। कई सैनिकों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ती है। उनके परिवार बेसहारा हो जाते हैं। सीमा पर के अनगिनत गांवों को विस्थापित होना पड़ता है और उनके घरों को नुकसान पहुंचता है। देश की अर्थव्यवस्था नष्ट हो जाती है। मंदी की मार पड़ती है। कई बार अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए कर्मचारियों के वेतन में कटौती करके उस पैसे को राष्ट्रीय कार्यों में लगाना पड़ता है। बैंकों में जमा राशि सरकार ले लेती है। इससे लोगों को आर्थिक नुकसान होता है। अगर पाकिस्तान जैसे बदमिजाज देश ने फिर भारतीय शहरों पर
बम या मिसाइल
दाग दिया तो भारी नुकसान होगा। यह सब युद्ध अभ्यास में दिखाई नहीं देता। प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री शाह और उनके मंत्रिमंडल की सुरक्षा के लिए अभी से ही सुरक्षित बंकर तैयार कर रखे गए होंगे। उन सभी के बाल-बच्चे विदेश में सुरक्षित बैठकर युद्ध में उनका मार्गदर्शन करेंगे, लेकिन युद्ध के दुष्परिणाम भारतीय जनता को भुगतने होंगे। इसलिए आज के युद्ध अभ्यास को गंभीरता से देखा जाना चाहिए। दुनियाभर के कई देश विभिन्न प्रकार के युद्ध अभ्यास करते हैं। भारत और अमेरिका के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास होते हैं। इन अभ्यासों में युद्ध कौशल का आदान-प्रदान होता है। युद्ध सिर्फ बंदूकों और तोपों का नहीं होता। यह कई संकटों का होता है। ‘कोरोना’ एक युद्ध ही था और यह लंबे समय तक चला। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा था कि कोरोना एक युद्ध है। महाभारत का युद्ध १८ दिनों तक चला। कोरोना युद्ध २१ दिनों में खत्म कर देंगे, ऐसा तब मोदी ने कहा था, लेकिन वैसा नहीं हुआ। कोरोना को हराने के लिए लोग अपने घरों से बाहर निकलकर थाली बजाएं, ऐसा मोदी का प्रयोजन था। थालियां और घंटी बजाने से कुछ हासिल नहीं हुआ। मोदी सरकार के पास इस प्रकार का युद्ध लड़ने का ‘अभ्यास’ नहीं था। अब पाकिस्तान के खिलाफ लड़ने का ‘अभ्यास’ मोदी ने शुरू कर दिया है, यह अच्छा हुआ। वह लोगों की मानसिकता तैयार कर रहे हैं। मोदी सरकार की नीति पाकिस्तान से लड़ने और उन्हें मिट्टी में मिला देने की है। यह युद्ध कम से कम नुकसान और जनहानि हुए बिना लड़ा जाना चाहिए। कारगिल युद्ध में भारत की १,५०० से अधिक ‘सेना’ भारतीय भूमि पर तैनात थी। १९७१ के युद्ध में पाकिस्तान ने इंदिरा गांधी के सामने घुटने टेक दिए थे। युद्ध में नेतृत्व का महत्व है। मोदी सरकार को युद्ध में सबसे आगे रहना चाहिए। देश में जनता का युद्ध अभ्यास जारी ही रहेगा! देश लड़ने के लिए तैयार है। चिंता नहीं होनी चाहिए!