आज देशभर में ७८वां स्वतंत्रता दिवस सामान्य हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। हमारे देश को यह आजादी स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों के रक्तरंजित संघर्ष से मिली है। हजारों ज्ञात-अज्ञात वीरों ने इसके लिए बलिदान दिया, अपना सर्वस्व होम कर दिया। ऐसे सभी वीरों और उनके त्याग और बलिदान की पुण्यस्मृति ही हर साल मनाया जाने वाला स्वतंत्रता दिवस है। स्वतंत्रता दिवस नई पीढ़ी को देशभक्ति की प्रेरणा देने का दिन है। यह वर्षों से मनाया जाता रहा है। लेकिन पिछले दस सालों में इसे भी एक ‘इवेंट’ का रूप दे दिया गया है। क्योंकि मौजूदा सरकार और इवेंट एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसलिए दिन, कार्यक्रम, घोषणा कोई भी हो, उसे ‘ग्रैंड इवेंट’ बनाने की लगातार कोशिश की जाती रही है। यहां तक कि दो साल पहले मनाया गया आजादी का ‘अमृत महोत्सव’ भी इससे नहीं बच पाया। असली देशभक्ति और उसे व्यक्त करना कोई इवेंट की बात नहीं है। लोगों में देश के प्रति बहुत प्यार है। हर साल वह अपने तरीके से उत्साह के साथ स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। तो उसका इवेंट क्यों? मूलत: ७७ साल पहले जिन चीजों के लिए हमें यह आजादी मिली थी, उनकी आज हकीकत क्या है? क्या साढ़े सात दशक बाद भी आजादी का लक्ष्य हासिल हो सका? यदि यह हासिल नहीं हुआ है तो एक शासक के रूप में सरकार उस संबंध में क्या कदम उठा रही है? हुक्मरानों को इन सवालों का जवाब देना चाहिए। इसके लिए आत्ममंथन करना चाहिए, लेकिन उसके बजाय स्वतंत्रता दिवस को भी एक ‘इवेंट’ बनाकर इसमें आम लोगों को गाफिल कर फंसाने की कोशिश की जा रही है। ‘हर घर तिरंगा’ अभियान पर आपत्ति की कोई वजह नहीं है, लेकिन क्या उन घरों में रहने वाले परिवारों को आजादी का लाभ मिल रहा है? मिल रहा है तो कितना, यदि कोई हो? या फिर सच्ची आजादी अब भी उनसे कोसों दूर है? क्या पिछले साढ़े सात दशकों में देश की प्रगति का लाभ सचमुच अंतिम व्यक्ति तक पहुंच रहा है? अगर ७८वें स्वतंत्रता दिवस पर भी इतने सारे सवाल अनुत्तरित रह जाएं तो क्या होगा? जिन्हें इन प्रश्नों का उत्तर देना है और यह पता लगाने का प्रयास करना है कि स्वतंत्रता का लाभ आम लोगों तक वैâसे पहुंचाया जा सकता है वे शासक ही इन सवालों को अनदेखा कर रहे हैं। देश का विकास आजादी के बाद नहीं, बल्कि २०१४ के बाद हुआ है इस तरह की शेखी बघारी जा रही है। आज हम ७८वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, लेकिन देश के लोगों को आज भी सच्ची आजादी की तलाश है। क्योंकि उसके बदले में अलग ही चीजें उन पर थोपी जा रही हैं। कथित राष्ट्रवाद और धर्मवाद की आग भड़काकर देश में पारंपरिक धार्मिक स्वतंत्रता और सद्भाव को कमजोर किया जा रहा है। सर्वधर्मसमभाव के मूल सिद्धांत पर संदेह के घेरे में डालने का प्रयास किया जा रहा है। सार्वजनिक उपक्रमों को निजी उद्योगपतियों को बेचा जा रहा है। हालात कुछ ऐसे बन रहे हैं कि जैसे नए पूंजीवाद के चंगुल में जनता की आर्थिक स्वतंत्रता कैद होने जा रही है। केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर राजनीतिक विरोधियों और आलोचकों के हक और ताकत छीनने का प्रयास किया जा रहा है। देश की वर्तमान स्थिति यह है कि विपक्ष, आलोचकों और लोकतंत्र के चारों स्तंभों के संवैधानिक अधिकार खतरे में हैं और केंद्रीय जांच एजेंसियों को अप्रतिबंधित स्वतंत्रता है। हालांकि, ‘चार सौ पार’ के नारे को देश की जनता ने लोकसभा चुनाव में हरा दिया। इसलिए ‘संविधान की स्वतंत्रता’ आज भी जीवित है। अन्यथा वह भी खतरे में थी। हालिया लोकसभा चुनाव के दौरान लोगों ने इस खतरे को पहचाना। सोच-समझकर वोट किया और सच्ची आजादी की ओर मजबूत कदम बढ़ाया। नि:संदेह, अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है। इसी चुने हुए सही मार्ग पर बिना डगमगाए चलने का संकल्प जनता को आज के ७८वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लेना चाहिए।