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संपादकीय :  रामसभा की पवित्रता!

अयोध्या में राम मंदिर के प्रथम तल पर भव्य राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है। यह धार्मिक समारोह गुरुवार को आयोजित किया गया था। इसके साथ ही राम जन्मभूमि क्षेत्र में आठ नवनिर्मित मंदिरों में भी मूर्तियां स्थापित की गर्इं। २२ जनवरी २०२४ को राम मंदिर में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा हुई। यह प्राण प्रतिष्ठा प्रधानमंत्री मोदी के हाथों हुई। इसके लिए भाजपा ने दुनियाभर से बड़े-बड़े मेहमानों को आमंत्रित किया था। राम मंदिर के उद्घाटन और प्राण प्रतिष्ठा को राष्ट्रीय समारोह के रूप में आयोजित करने पर कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने इसे निजी राजनीतिक समारोह में बदल दिया और इसकी पवित्रता नष्ट कर दी। २२ जनवरी २०२४ के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद सबसे बड़े राम दरबार का बड़ा आयोजन किया गया। इस समारोह में प्रधानमंत्री मोदी शामिल नहीं हुए। श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मोदी दोबारा अयोध्या फिरके ही नहीं हैं। क्योंकि जिस श्रीराम के नाम पर मोदी ने लोकसभा चुनाव का प्रचार किया था, उसमें भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। श्रीराम ने मोदी को उत्तर प्रदेश में रोक दिया। मोदी ने नारा दिया था ‘अबकी बार चार सौ पार’, लेकिन मोदी लोकसभा में बहुमत खो बैठे। भाजपा २४० पर अटक गई। भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मोदी ने जैसे-तैसे बैसाखियों पर सरकार बनाई। वह दूसरों की मेहरबानियों पर चल रहे हैं इसीलिए मोदी श्रीराम की उंगली पकड़कर अयोध्या ले आए (ऐसा उनके भक्त कहते हैं) उन श्रीराम ने खुद अयोध्या की पवित्र भूमि में
मोदी की उंगली छोड़ दी
और भाजपा की नाव सरयू नदी में हिचकोले खाने लगी। श्रीराम मंदिर का उद्घाटन समारोह हिंदुत्व और प्रचार का मुद्दा नहीं बन सका इसलिए इस बार राम दरबार का उत्सव संक्षिप्त और साफ-सुथरा मनाया गया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राम दरबार का विधिवत प्राण प्रतिष्ठा की। इस समय वैदिक मंत्रों का मंगलमय घोष हर जगह चल रहा था। मंत्रोच्चार, शंखनाद, मंत्रपाठ और होम-हवन के कारण अयोध्या क्षेत्र का वातावरण ऐसा हो गया, मानो श्रीराम अयोध्या में निवास कर रहे हों। राम दरबार को बड़ी भव्यता के साथ सजाया गया है। राम दरबार के लिए हीरे, सोने और चांदी के आभूषण सूरत के रामभक्त व्यवसायी मुकेश पटेल ने दान किए। इन आभूषणों में क्या है? १,००० कैरेट का हीरा, ३० किलो चांदी, ३०० ग्राम सोना और ३०० कैरेट माणिक से बने ११ मुकुट हैं। इसके अलावा प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के लिए हार, कर्णफूल, माथे पर सुवर्ण तिलक, धनुष और बाण हैं। इससे यह भव्य राम दरबार सुंदर, जगमगाता और भव्य है। इतना कुछ होने के बावजूद राम मंदिर का निर्माण कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है। श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन उन पर प्रतिबंध है। दीपोत्सव के बाद मंदिर पूरी तरह दर्शन के लिए खुल जाएगा। राम दरबार भव्य आकर्षण होगा। राम दरबार में भगवान राम धनुषसहित सिंहासन पर विराजमान हैं। माता सीता भी उनके साथ हैं। बाईं ओर हनुमान और दाईं ओर भरत वीरासन मुद्रा में बैठे हैं। पीछे श्री लक्ष्मण और शत्रुघ्न शान से खड़े हैं। मंदिर के
गर्भगृह की दीवारों पर
भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियां उकेरी गई हैं। यह सब राम दरबार का हिस्सा है। राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा अभिजीत मुहूर्त पर की गई। राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा के लिए गंगा दशहरा के दिन १७ मिनट का विशेष अभिजीत मुहूर्त चुना गया था। इसका कारण यह है कि ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीराम का जन्म अभिजीत मुहूर्त में हुआ था इसलिए उसी मुहूर्त पर राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। यह है राम दरबार का धार्मिक और वैदिक विश्लेषण, लेकिन अयोध्या में जो राम दरबार सजा हुआ है उसे दरबार कहना हिंदू धर्म एवं संस्कृति के अनुसार योग्य है? ‘दरबार’ मुगल राजाओं और बादशाहों का लगता था। प्रभु श्रीराम उसके पूर्व के अवतारी पुरुष हैं। मुगल दरबार पांच से छह सौ साल पहले का है इसलिए यह भगवान श्रीराम दरबार नहीं है। यह ‘राम सभा’, ‘राम बैठक’ हो सकता है। श्रीराम का पूरा परिवार राम सभा में विराजमान है और वे अपने भक्तों को आशीर्वाद दे रहे हैं। दरबार में राजनीति, व्यापार और न्याय होता है। रामसभा की पवित्रता है। अयोध्या नगरी में इसे बचाकर रखना चाहिए। रामराज्य और रामसभा को आपस में जोड़ना चाहिए। देश में रामराज्य नहीं बचा है। श्री राम सत्यवादी थे, एकवचनी थे। आज के शासन में वह सत्य हर दिन पराजित हो रहा है। उसे देखकर श्री राम भी रामसभा में बेचैन हो रहे हैं। जो लोग असत्य के मार्ग पर चलकर भारत में सत्ता पर विराजमान हैं, ऐसे लोग रामसभा की महत्ता और पवित्रता को कभी नहीं समझ पाएंगे।

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