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संपादकीय : अयोध्या में श्रीराम, बिहार में ‘पलटू’राम!

देश में ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाए जा रहे हैं। लेकिन बिहार में ‘जय श्री पलटूराम’ का नारा सुनाई दे रहा है। ये पलटूराम ‘इंडिया’ गठबंधन के कर्ताधर्ता रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार हैं। नीतिश कुमार ने एक बार फिर पलटी मारी है और भारतीय जनता पार्टी के साथ नई जिंदगी की शुरुआत की है। लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल से तलाक लेकर इस उम्र में फिर से भाजपा के साथ जिंदगी की शुरुआत करना यह नीतिश कुमार के राजनीतिक जीवन का अंत है। नैतिकता और सिद्धांतों की राजनीति की बात करनेवालों द्वारा ही नैतिकता की ऐसी की तैसी कर दी जाए तब भारतीय जनता पार्टी को क्यों दोष दिया जाए? भाजपा के लोग इस समय बाजार में सबसे बड़े खरीददार हैं। जब विक्रेता सामान बेचने के लिए तैयार है तो खरीददार और ठेकेदार बोली लगाएंगे ही। महाराष्ट्र का माल पचास-पचास खोकों में बिक गया। बिहार के माल की क्या कीमत लगाई गई, यह भी देश की जनता को समझ में आना चाहिए। नीतिश कुमार को देश की राजनीति में एक केस स्टडी के तौर पर देखा जाना चाहिए। राजनीति में कोई व्यक्ति कम समय में कितनी बार रंग बदल सकता है, यह शोध का विषय है। बिहार में इसे ‘पलटूराम’ और हरियाणा में आयाराम-गयाराम कहना होगा। जय प्रकाश नारायण के आंदोलन और तानाशाही विरोधी आंदोलन से शुरू हुई नीतिश कुमार की यात्रा मोदी-शाह की तानाशाही के आगे घुटने टेकने के चलते मसान में खत्म हो गई है और इसके लिए उनकी आज तक के करियर को श्रद्धांजलि अर्पित करके जनता को आगे बढ़ना चाहिए। नीतिश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी के साथ दोबारा सत्ता स्थापित करने का पैâसला किया है। वैसे उनकी उम्र रिटायर होकर वानप्रस्थ आश्रम में जाने की है, लेकिन वहां श्रीराम के अयोध्या में आगमन होते ही नीतिशबाबू भाजपा के वनवासी आश्रम में चले गए हैं। कुछ महीने पहले नीतिश कुमार ने भाजपा छोड़ दी थी, क्योंकि भाजपा एक बहुत खतरनाक और घाती पार्टी थी। भाजपा उनके साथ सत्ता में रहकर कुमार की ‘जेडीयू’ पार्टी को तोड़ रही थी। इसलिए क्रोध से लाल होकर कुमार ने यह कहते हुए कि उन्होंने भाजपा की संगत छोड़ दी है और वह कभी भी भाजपा के साथ नहीं जाएंगे, पुराने साथी लालू यादव के साथ सरकार बना ली। उन्होंने यह भी घोषणा कर दी कि मैं अब के बाद मुख्यमंत्री नहीं बनूंगा। तेजस्वी यादव ही राज्य का नेतृत्व करेंगे। लेकिन कुमार हर दिन नया सेहरा बांधकर घोड़े पर चढ़ रहे हैं। ‘इंडिया’ गठबंधन के गठन के बाद कुमार राष्ट्रीय नेतृत्व करेंगे, ऐसा लग रहा था। विपक्षी दलों को एकजुट होकर भाजपा की तानाशाही के खिलाफ लड़ना चाहिए। इसके लिए कुमार ने सभी को एक साथ लाने की पहल की और सभी देशभक्त भाजपा विरोधियों की पहली बैठक पटना में बुलाई और इसे सफल बनाया। उस बैठक में कुमार का भाषण एक राष्ट्रीय चिंतन जैसा था। ‘देश संकट में है। संविधान खतरे में है। केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है और यह राष्ट्रीय हित में है कि हम सभी को अपने मतभेदों को दूर करना चाहिए और लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक साथ आना चाहिए।’ ऐसे अलौकिक विचार कुमार ने पटना में प्रस्तुत किए थे। बाद में उन्होंने बैंगलोर, मुंबई, दिल्ली की बैठकों में भाग लिया। भाजपा और संघ परिवार से अंत तक लड़ते रहने का उनका निश्चय था, लेकिन उस निश्चय की धोती अब खुल गई और नीतिश कुमार ने पलटी मार ली है। बेशक, इन सभी मामलों में वस्त्रहरण भारतीय जनता पार्टी का ही हुआ है। नीतिश कुमार के लालू प्रसाद यादव के साथ सरकार बनाने की घोषणा करते ही गृहमंत्री अमित शाह पटना में आए और उन्होंने बिहार की जनता को वचन दिया कि वह नीतिश कुमार को दोबारा अपने साथ नहीं लेंगे। अमित शाह ने घोषणा की थी, ‘इसके आगे भले ही नीतिश कुमार हाथ जोड़कर भाजपा के दरवाजे पर आएं फिर भी उनके लिए दरवाजे बंद हैं। नीतिश कुमार को एनडीए गठबंधन में कभी भी स्वीकार नहीं किया जाएगा।’ और कुमार ने भी घोषणा की थी कि वह कभी बीजेपी के दरवाजे पर नहीं जाएंगे। लेकिन दोनों अपने वचनों को भूल गए। भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में राजनीति का स्तर काफी गिर गया है। लोकतंत्र और नैतिकता शब्द हवन में स्वाहा हो गए हैं। जब देश संकट में था तो नीतिश कुमार जैसे भरोसेमंद लोगों ने बेईमानी की इसका रिकॉर्ड हमेशा इतिहास में दर्ज रहेगा। भारतीय जनता पार्टी को २०२४ के लोकसभा चुनाव का डर है। उन्हें यकीन हो गया है कि प्रभु श्रीराम और ‘ईवीएम’ भी उन्हें हार से नहीं बचा पाएंगे। ‘अब की बार, चार सौ पार’ ये मोदी-शाह का नारा खोखला है। यदि उन्हें अपने काम और नेतृत्व क्षमता पर इतना भरोसा होता तो उन्हें तोड़-फोड़ के ऐसे खेल खेलकर सत्ता का लालच दिखाने की कोई जरूरत नहीं थी। लेकिन जब उन्हें सीधे तौर पर सत्ता नहीं मिल पाई तो उन्होंने महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश में तोड़-फोड़ की, लेकिन इन सबके बावजूद २०२४ में भारतीय जनता पार्टी के दोबारा बहुमत के साथ सत्ता में आने की कोई संभावना नहीं दिखती। यह तय है कि मोदी-शाह की राजनीतिवâ नैया डूब रही है। बिहार में अब नीतिश कुमार, बीजेपी, चिराग पासवान आदि एक साथ आकर चुनाव लड़ेंगे, लेकिन भाजपा की तानाशाही से अकेले लड़ने वाले तेजस्वी यादव, कांग्रेस और अन्य छोटे दलों का गठबंधन बिहार में पलटूराम की राजनीति को सफल नहीं होने देंगे। तेजस्वी यादव अब अधिक स्वतंत्र होकर काम कर सकेंगे। बिहार ही नहीं, बल्कि देश के क्षितिज से नीतिश कुमार का काला युग अब हमेशा के लिए मिटता जा रहा है। इसका श्रेय भारतीय जनता पार्टी को दिया जाना चाहिए। ‘इंडिया’ गठबंधन में नीतिश कुमार का बड़ा कद था। उन्होंने ही ‘इंडिया’ गठबंधन की शुरुआत की। नीतिश कुमार का कहना था कि मोदी-शाह की जकड़ में दम घुटते देश को बचाने की जरूरत है। इस नीतिश कुमार के शारीरिक एवं मानसिक रूप से विकलांग हो जाने का फायदा आज भाजपा ने उठाया। ईडी, सीबीआई के डर से इस दौरान अच्छे-अच्छे लोगों ने ‘पलटी’ मार ली है। नीतिश कुमार ने पलटी क्यों मारी, यह शोध का विषय है। पलटूरामों का शासन ही देश पर आ गया है। अयोध्या में राम और देश में पलटूराम! अजीत पवार के ७० हजार करोड़ के घोटाले का पर्दाफाश खुद प्रधानमंत्री मोदी करते हैं और फिर महज दो दिन में उन्हीं अजीत पवार को भाजपा के साथ लेकर उपमुख्यमंत्री बना देते हैं। नीतिश कुमार के साथ भी ऐसा ही है। जब प्रधानमंत्री पलटूराम बन गए तो अयोध्या के राम क्या करेंगे? पलटूरामों के आगे अयोध्या के राम भी बेबस हो गए हैं।

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