महाराष्ट्र में फडणवीस, शिंदे और अजीतदादा की महागठबंधन सरकार में इस समय जोरदार नाराजगी की नौटंकी चल रही है। प्रचंड बहुमत वाली सरकार में ये लात-घूंसे, आरोप-प्रत्यारोप और रूठना-मनाना देखकर महाराष्ट्र की जनता का मुफ्त में मनोरंजन हो रहा है। मंत्रिमंडल का शिंदे गुट वित्त मंत्री यानी अजीत पवार से नाराज है। नाराजगी का मुख्य कारण ‘पैसा’ या ‘निधि’ बताया जा रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो पुरानी बीमारी ने एक बार फिर सिर उठा लिया है। शिंदे गुट का यही असंतोष और शिकायत शिवसेना को तोड़ने और महाविकास आघाड़ी सरकार को गिराने के समय भी थी और आज भी जारी है। नाराजगी के उसी बवासीर ने शिंदे के मंत्रियों को फिर से परेशान कर रखा है। उस समय मूल शिवसेना के साथ बेईमानी करते हुए शिंदे के लोगों ने अजीत पवार को ‘विलन’ ठहराया था। हालांकि, जेल जाने की बजाय वही अजीत पवार शिंदे के पदचिह्नों पर चलते हुए सरकार में शामिल हो गए और वित्त मंत्री भी बन गए। मंत्रिमंडल में सभी विभागों की नब्ज वित्त विभाग या कहें अजीतदादा के पास आती है और दादा के पास ये नब्ज होने की वजह से कई लोगों की जान बिलबिलाने लग गई। मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक के बाद फंड की कमी से परेशान मंत्रियों की नाराजगी फूट पड़ी। ‘दादा पैसा नहीं देते भाई’, यह रोना रोते हुए शिंदे गुट के मंत्रियों ने असंतुष्टों के सरदार से मुलाकात की। ‘सह्याद्रि’ गेस्ट हाउस में हुई बैठक में फंड की कमी से परेशान मंत्रियों ने शिंदे के सामने अजीत पवार की शिकायतों का पिटारा खोल दिया। ‘वित्त मंत्री अजीतदादा हमारे विभाग के विकास कार्यों में रोड़ा डाल रहे हैं। अगर वित्त विभाग और वित्त मंत्री हमें पैसा नहीं देंगे, तो हम विकास कार्य कैसे करेंगे?’ ऐसी
व्याकुलता कहें या तिलमिलाहट
इन मंत्रियों ने व्यक्त किया। ऐसा कहा जाता है कि यह बैठक अजीत पवार को टार्गेट बनाने के लिए आयोजित की गई थी। इस बैठक में उप मुख्यमंत्री शिंदे ने अपने गुट के सभी मंत्रियों के विभागों की स्वतंत्र समीक्षा की। उन्होंने प्रत्येक मंत्री को बुलाकर उनके विभागों के काम के बारे में जानकारी ली। तब, ‘अजीतदादा हमारे विभाग को पैसे नहीं देते हैं। फिर काम कैसे होगा और अगर काम नहीं हुआ, तो हम चुनाव का सामना कैसे करेंगे और जनता को क्या जवाब देंगे?’, ये सवाल इस बैठक में जनहित के मुद्दे को लेकर व्याकुल मंत्रियों ने उठाए। चूंकि सभी की शिकायतों की प्रकृति और ‘लक्ष्य’ एक ही थी, इसलिए असंतुष्ट लोगों के सरदार ने उन्हें यह समझाते हुए समय काटा कि वे इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री फडणवीस और उप मुख्यमंत्री अजीत पवार से बात करके कोई रास्ता निकाल लेंगे। दरअसल, महायुति सरकार में शिंदे खुद ही मुंह दबाए पिट रहे हैं जिसके चलते इस असंतोष पर स्यापा करने का कोई रास्ता भी नहीं बचा है। हो सकता है इसलिए असंतोष होने पर सातारा के गांव में जाकर खेतों में स्ट्रॉबेरी गिनने जैसे मसले का हल निकलने का रास्ता उन्होंने अपने साथी मंत्रियों को दिया होगा। इस समय महाराष्ट्र में इस बात को लेकर बड़ी चर्चा है कि घोड़बंदर से वसई तक सड़क निर्माण के तीन हजार करोड़ का आटा कौन सा घोड़ा खा गया। इस मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार की सुप्रीम कोर्ट में काफी फजीहत हुई। आटा खाने वाले टेंडर रद्द करने पड़े। मुख्यमंत्री फडणवीस ने
वह फैसला
मेरे समय का नहीं था कहकर अपने हाथ झटक लिए। यह अब छिपा नहीं है कि मुख्यमंत्री का इशारा किस ओर था और टेंडर रद्द करने के पीछे किसका अदृश्य हाथ था। इस महागठबंधन सरकार के असंतोष, कलह और नाराजगी की नौटंकी का अंत जो भी होना हो, होगा, लेकिन तब तक महाराष्ट्र की जनता को तीन दलों के इस तमाशे को मजबूरी वश सहना पड़ेगा। बीच में, भाजपा विधायकों ने गृहमंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की थी और वित्त मंत्री अजीत पवार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। भाजपा विधायकों ने अमित शाह से मुलाकात कर शिकायत की कि अजीत पवार को समझाया जाना चाहिए। इस पर अमित शाह ने अपने विधायकों को डबल इंजन सरकार का आदर्श कानमंत्र दिया, ‘उनके पीछे इतना पड़ जाओ कि अजीत पवार खुद मेरे पास शिकायत लेकर आएं।’ यह महाराष्ट्र में महागठबंधन सरकार में ऐसा मनोरंजक महानाट्य चल रहा है। अगर अजीत पवार १३२ विधायकों वाली भाजपा और अमित शाह द्वारा बनाई गई शिंदे पार्टी को नचा रहे हैं, तो यह कहना पड़ेगा कि इस सरकार में सिर्फ अजीत पवार ही खुश हैं और यह अजीत दादा का कौशल्य है। सरकार किसी भी पार्टी की हो, लेकिन सरकार में असंतुष्टों की कोई पार्टी नहीं होती। शिंदे गुट उद्धव ठाकरे की सरकार से भी असंतुष्ट था और अब फडणवीस सरकार से भी उनका असंतोष जारी है। असंतोष की बीमारी की जड़ सत्ता, पद, धन, अहंकार और राजनीतिक महत्वाकांक्षा में है। असंतोष की इस बीमारी की कोई दवा नहीं है। एक बार जब यह जड़ पकड़ लेती है, तो और मजबूत होती जाती है। ऐसा न हो कि फडणवीस सरकार में असंतोष का जो तीन पार्टियों का तमाशा चल रहा है, उससे भविष्य में मंत्रिमंडल में गुटों की लड़ाई न भड़क उठे!